"OBO लाइव विश्व भोजपुरी कवि सम्मेलन" प्रारंभ
अरुण कुमार पाण्डेय
(१) गीत – बलम हमरो जवनिया
बलम हमरो जवनिया जियान होत बा
रहिया ताकत ताकत सुबह से साम होत बा |
कहके तू गईल बालम सावन में आइब ,
साया साड़ी चोली चूड़ी पायल ले आइब
सईयाँ अब तब हमरो परान होत बा
तहिया ताकत ताकत सुबह से साम होत बा |
ननदी रेघावे ले देवरा सतावे
बोली मारे सासू जी ससुरा डेरावे
तोहरी पीठ पीछे दुसमन जहां होत बा
रहिया ताकत ताकत सुबह से साम होत बा |
तीज तेवहार आवे लोग कजरी फाग गावे
आडर पे सोनरा हंसुली आ हांर लावे
खाली हमरे जिनिगिया में घाम होत बा
रहिया ताकत ताकत सुबह से साम होत बा |
कसम बरम बाबा के कसम सत्ती माई के
तोहके बोलवा भेजी आज किरिया खाई के
आके देख केतना सेजिया पे मान होत बा
रहिया ताकत ताकत सुबह से साम होत बा |
बलम हमरो जवनिया जियान होत बा
रहिया ताकत ताकत सुबह से साम होत बा |
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पंडित हरी राम द्विवेदी
(२) "बाजे हो महराज बधईया बाजे "
सुत जनमें सुख आस पुराईल
अंचरा भरलें कोख जुडाईल
गीतन भरी अंगनईया बधईया बाजे
बाजे हो महराज बधईया बाजे
ममता हुलसे अति सुख पावे
नाचै गावै नेग लुटावै
गावे सगुनी चिरईया बधईया बाजे
बाजे हो महराज बधईया बाजे
कवन प्रीति-रस पागे बखरी
नन्द भवन अस लागे बखरी
जनमे कुंवर कन्हईया बधईया बाजे
बाजे हो महराज बधईया बाजे
सुघर बंस के बिरवा फूलै
नैन पुतरियन सपना झूलै
सबहीं लेत बलईया बधईया बाजे
बाजे हो महराज बधईया बाजे |
(३) "हरी भईया क एगो अउरी गीत "
गंगा जमुनवा की रेती गरमियाँ दह्कली जाले
जरि जरि होई अंगार करीं अब केकरे हवाले
जईसे तपनीया के रहिया उबेने गोड जरै
वईसे गरमियाँ कि आगि जिनिगी हर मोड जरै
दलित जनन केरी पीर नीर बनी नैनन टपके
धूरिन में मिली जाय हाय रे कलपि कलपि के
जांगर पिटी कुआं खनी खनी तैयार करे
तरसी तरसी रही जाये कबहूँ ना नीर भरे
सगरी उमेर खटत कटी जात ना पेट भरे
अस दुखियन के कहूना दुःख दूर करे |
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मनोज भाउक
(4) ग़ज़ल
वक्त के ताप सहहीं के बाटे
बर्फ से भाप बनहीं के बाटे
पाप के केतनो तोपी या ढ़ाँपी
एक दिन ओकरा फरहीं के बाटे
जवना ‘घर’ में विभीषण जी बानी
ओह लंका के जरहीं के बाटे
चाँद-सूरज बने के जो मन बा
तब त गरहन के सहहीं के बाटे
चार गो नाव पर जे चढ़ल बा
डूब के ओकरा मरहीं के बाटे
अइसे मुस्का के कनखी से देखबू
तब त परिवार बढ़ही के बाटे
(5)ग़ज़ल
वक्त रउओ के गिरवले आ उठवले होई
छोट से बड़ आ बड़ से छोट बनवले होई
अइसे मत देखीं हिकारत से एह चिथड़ा के
काल्ह तक ई केहू के लाज बचवले होई
धूर के भी कबो मरले जो होखब ठोकर तs
माथ पर चढ़ के ऊ रउआ के बतवले होई
जे भी देखियो के निगलले होई जीयत माछी
अपना अरमान के ऊ केतना मुअवले होई
काश ! अपराध के पहिले तनी सुनले रहितीं
आत्मा चीख के आवाज़ लगवले होई
जिंदगी कर्म के खेला ह कि ग्रह-गोचर के
वक्त रउओ से त ई प्रश्न उठवले होई
जब मेहरबान खुदा ,गदहा पहलवान भइळ
अनुभवी लोग ई लोकोक्ति बनवले होई
अइसहीं ना नू गजल-गीत लिखेलें भावुक
वक्त इनको के बहुत नाच नचवले होई
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आशीष यादव
(6)
छोट रहे तब जख्म अब नासूर बन गईल|
तड़प-तड़प के जीयल अब दस्तूर बन गईल|
केतना सुघर लागे तब उ ज़माना,
संगे-संगे बीते जब मौसम सुहाना|
कईसे बिसारे से बिसरी समईया,
रहे मोर बांह जब तोहरो ठिकाना||
तू का गईलू, कूल्ह ख़ुशी मोर दूर चल गईल|
तड़प-तड़प के जीयल अब दस्तूर बन गईल|
काहें के तोहें मो दिल में बसवलीं,
आई जुदाई कबों, ना सोच पवलीं|
हर घरी नैना के सम्हने तू रहलू,
तोहरे हो फोटो के दिल में सजवलीं||
काहो विधाता, हमारा संगे ई का भईल|
तड़प-तड़प के जीयल अब दस्तूर बन गईल|
(7)काहें लागल तोहसे सनेह, ए गोरी एह पापी संसार में|
हमनी के प्यार के न बुझलस ज़माना,
बाड़े जवन प्यार के हो दुश्मन पुराना|-
उडी परान छोड़ के देह, ए गोरी एह पापी संसार में|
काहें लागल तोहसे सनेह, ए गोरी एह पापी संसार में|
धधक-धधक जाले हियरा के अगिया,
जब याद आवे हमके तोहरो सुरतिया|-
आतमा हो जाले विदेह, ए गोरी एह पापी संसार में|
काहें लागल तोहसे सनेह, ए गोरी एह पापी संसार में|
कईसे के दिहल तोहार चिट्ठी जरा दीं,
जा के कईसे दरिया में फोटो बहा दीं|-
कईसे मिटा दीं तोहसे नेह, ए गोरी एह पापी संसार में|
काहें लागल तोहसे सनेह, ए गोरी एह पापी संसार में|
भलहीं तू हमके न दिल से भुलईहा,
बाकी अपना सजना के घरवा सजईहा|-
रखिहा लगा के उनसे नेह, ए गोरी एह पापी संसार में |
काहें लागल तोहसे सनेह, ए गोरी एह पापी संसार में |
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रत्नेश रमण पाठक
(8) भईया लईका पर बहुते पिटाइल बानी जा
भईया लईका पर बहुते पिटाइल बानी जा||
दिन भर में तीन बेर बनावल रहे टाइम
भोरे-भोरे पापा जी मारस,सांझी के चाचा,
आ दुपहरियो में छड़ी रहत रहे धरायिल
भईया लईका पर बहुते पिटाइल बानी जा ||
गुली-डंडा खेलत खेलत हाथ रहे छिलायिल
बरसात के मौसम होखे चाहे, जेठ के दुपहरिया
शाम-सुबह दुआर पर ओरहन रहत रहे आईल
भईया लईका पर बहुते पिटाइल बानी जा ||
उ चुरा दही के स्वाद आजो याद ह आईल
लेकिन चौमिन आ डोसा में सब बा भुलाइल
पढ़े के डरे पुली में लूकाइल बानी जा
भईया लईका पर बहुते पिटाइल बानी जा ||
स्लेट-पेंसिल छप्पर पर रोजे रहत रहे फेकाइल
हितगन आइतन त पूरी-पुआ भेटाइत
इहे सोच के मन रहत रहे अकुलाइल
आ चाचा के अगुआ के सोझा भी बानी जा मराइल
भईया लईका पर बहुते पिटाइल बानी जा ||
इ कविता में उहे कुल लिखल बा जवान हमनी पर बीत चुकल बा ......जवन जवन बदमासी कईले बानी जा.एगो छोटा सा कोसिस बा ..उम्मीद बा अच्छा लगी पढ़ के .
ब्रिज भूषण चौबे
(9)
एह घरी देश में आपन चरचा कुछ आम बा ,
चरचा में चरचा करीना खाश जेकर नाम बा ,
घोटाला घपलाबजी में राजनीत भी गर्माइल बा ,
सबसे बड घोटाला काइल स उ रजा धराइल बा ,
करजा में डुबल खेतिहर फशरी लगा के मरेला,
लुट में लुटल पईसा स्विस बैंक में सरेला ,
भ्रष्टाचार के फैलत अजबे नया महामारी बा ,
पेट्रोल ,डीजल के बात छोड़ी सोना ,चाँदी भइल तरकारी बा
मुद्दा बना के महंगाई के रोज सडक होत जाम बा,
चरचा में चरचा करीना खाश जेकर नाम बा ,
देश के निति नियम में होत नया बदलाव बा ,
आरक्षण,योन शिक्ष पर होत रोज बवाल बा
करे परमाणु पाक परिक्षड़ चिंता बड़ी सतावेला ,
अरुणाचल में आधा चीन काहें बतावेला ,
उल्फा उग्र वादी ,मावोवादी में गोली होत जियान बा ,
चरचा में चरचा करीना खाश जेकर नाम बा ,
चलत राही में देवी देश के छेडल जाली ,
कर्म कुकर्म के करतब बदता हाली हाली ,
दान दहेज़ जस चलन से बाप मन मधुआइल बा ,
पइसा खातिर जारल गइली ह खबर अइसन आइल बा ,
अइसन घटना में पइसेवाला के ऊपर नाम बा ,
चरचा में चरचा करीना खाश जेकर नाम बा ,
मचल लड़ाई घरही में बा दम कतना कवना पाटी में ,
सोचेवाला भी नइखन सोचत मरे जवान रोज घाटी में ,
नेता लोग मस्त मगन बन अपने में अझुराइल बा ,
जनता भी देखनहरू बन के अपने में भुलाइल बा ,
होता जवान होखे केकरा केकरा से काम बा ,
चरचा में चरचा करीना खाश जेकर नाम बा ,
मेला बड़का लागल बा देश में खेल तमाशा के ,
चरचा बड़ा जोर के होला बिकनी अउर बिपाशा ,
कुछ किरण के ज्योति कबो कबो चमकेला ,
हिंदुस्तान के माती से जब ज्वाला बामकेला,
बड ना होला कबो केहू सबसे बड इमान बा ,
चरचा में चरचा करीना खाश जेकर नाम बा ,
-बृज
(10) कई शब्दन के मिल के एगो गीत बनेला
बात क इ ले से भईया प्रीत बनेला
जइसे कई शब्दन के मिल के एगो गीत बनेला ,
ना चाही बोले के बोली ,
मुह से निक ना लागे ठिठोली ,
कडुआ बात लागेला अइसन
जइसे मारल ह केहुवो गोली ,
एगो दुसर आदमी बतिय से आपन मित बनेला ,
माया नगरी ह झंझट के ,
मानुष मोह माया में भटके ,
पार ना लगब देके गारी
गठरी बांध राम नाम रट के ,
बिना करम कांड सुघर ना कवनो रित बनेला .
दोहा सुर , कबीर पढ़वले ,
अक्षर प्रेम के बतवले ,
तुलसी दास रहन हरिहर के
मिलन गीत मिथिला में उ गवले ,
बिना बाजा के ना कवनो संगीत बनेला ,......
भईया हाथ से हाथ मिलाव ,
एगो अइसन डोर बनाव ,
साथै लेके सबका के
डूबकी गंगा में लगाव ,
जग में जगरनाथ से बढ़ी के ना केहू हित बनेला ,
जइसे कई शब्दन के मिल के एगो गीत बनेला ,
-बृज
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राणा प्रताप सिंह
(11)
नया कवनो गीत गावल जाव,
लड़ाई प्रीत के अब जीतल जाव,
घटल जात बा मीठ बोली,
बोलत बा लोग तीत बोली,
ना लउके अब शालीनता,
चरुवोर बढ़ल जाला अश्लीलता,
बहुत कईनी जा बात करुवा,
चली कुछ बात मीठ कईल जाव,
कहे से पहिले तोल लिही,
अउरो के बात के मोल दिही,
प्यार दिही प्यार पाई,
दरवाजा दिल के खोल दिही,
दुनिया बा भीड़ भरल,
चली नया मित खोजल जाव,
जीवन बड़ा संघर्ष बा,
कष्ट मे भी कुछ हर्ष बा,
जग इ झमेला बा,
दुःख सुख के मेला बा,
बासंती के झोका छोड़ी,
आई शिशिर के शीत लेवल जाव
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रवि कुमार "गुरु"
(12)
सात समुन्दर पार के भाई संग जूरी ,
नेट पर भोजपुरी इ कईलस कम दुरी ,
अब नेटवा के हमार सत सत प्रणाम ,
इ हमार भोजपुरी के करी दिहलस आम ,
जे सुरु में एकरा के नेट पर लेआइल ,
ओकरा के गुरु देस सत सत बधाई ,
हम ना करब अब केहू के जी हजुरी ,
बाकिर भोजपुरी के बाटे कुछ मज़बूरी ,
एकर लाल लजाले सभा में अक्सर जा के ,
बोलेले इंग्लिश हिंदी अपनों लोग के पाके ,
नेटवा पर निक लागे सूरत ना दिखेला ,
लगत बा की इहे कारन इह चमके ला ,
बोलs भोजपुरी भईया नहीं चढ़बा सूली ,
सबसे मीठा भासा हमार बाटे भोजपुरी,
(13)
रूप अच्छा लागेला शालीनता से
बल अच्छा लागेला गंभीरता से ,
बुद्धि अच्छा लागेला ज्ञान से ,
धन अच्छा लागेला दान से ,
मुह अच्छा लागेला पान से ,
मान अच्छा लागेला सम्मान से ,
घर अच्छा लागेला आँगन से ,
द्वार अच्छा लागेला दालान से ,
अन अच्छा लागेला खलिहान से ,
मुस्कान अच्छा लागेला पहचान से ,
(14)
एगो सपना बा हमार एगो सपना ,
ना जानी कब पूरा होई इ सपना ,
एगो सपना बा हमार एगो सपना ,
हर तरफ रहे एकरे बोल बाला ,
प्यार से रहे सब संगे भोजपुरीवाला ,
ना कोई में बैर ना कवनो ज्वाला ,
मन कहे सब कोई खुश रहे ,
हम भोजपुरीयन के बेवहार से
भोजपुरिया राज करी दुनिया पर ,
भाई हो बारा प्यार से इहे सपना .
एगो सपना बा हमार एगो सपना ,
बैर भाव सब भूल जाई ,
आई हाथ मिलाई जी ,
भोजपुरिया हम सब बानी ,
भोजपुरिया के गुण गई जी ,
मत भूली कुंवर के रौआ ,
भिखारी ठाकुर के बतिया ,
महेंदर मिसिर के गितवा ,
आउर राजेंदर बाबु के अपना ,
एगो सपना बा हमार एगो सपना
(15)
मनवा के बतिया केकरा से बताई ,
दिलवा के खुशिया केकरा के दिखाई ,
एतना जे दूर बानी ,
हमू मजबूर बानी ,
तहरा सिवा आउर कही केकरा से ,
माई नईखी जाके पूछ ओकरा से ,
केतना खुश बा, बाड़ी जेकर माई ,
माई के अचरा में स्वर्ग सुख पाई ,
माई के याद में आशु ना बहाइब ,
हमरा सपनवा में आइह तुहू माई ,
मनवा के बतिया केकरा से बताई ,
दिलवा के खुशिया केकरा के दिखाई ,
सब कुछ बाटे माई तुही खाली नईखु ,
लागेला उजार सपनों में तुहू आइतु ,
माई गमगीन बानी ,
हमू बड़ा दिन बानी ,
फाटल करेजवा केकरा से दिखाई ,
मनवा के बतिया केकरा से बताई ,
दिलवा के खुशिया केकरा के दिखाई ,
(16)
छोड़ी चिंता करी मौज ,
दोस्तन के बन जाई फ़ौज ,
सब कोई से एक एक लाइन लिआई ,
बड़ा बढ़िया कविता लिखाई ,
सब कोई के सुनावल जाई ,
अब इहो बता दी ,
चिंता चिता लावे ले ,
मौज जिए के सिखावे ले ,
त हमार राउर बनत बा फर्ज ,
दुनिया से भगाई चिंता ,
मस्ती करी मजा आ जाई ,
दोस्तन के समझाई ,
कविता के चार लाइन ,
सब कोई लिखो ,
संगे वाह वाही केहू मत भूलो ,
इ कवि सम्मलेन लाजवाब हो जाई ,
जे राउआ लोगीन के साथ हो जाई |
(17)
हम भोजपुरिया भाई हम भोजपुरिया ,
नाम हटे रवि घर छपरा शहरिया,
सोच में बाटे हमरो चाह में बाटे ,
हम चाही, रहे सभे एके साथे ,
केहू नाहि बांटे हमनी के डगरिया ,
हम भोजपुरिया भाई हम भोजपुरिया ,
हमरो राजेंदर बाबु देसवा के शान हो ,
महेंदर, भिखारी पर बाटे गुमान हो ,
झासी के रानी कइली मन के उतान हो ,
मंगल पाण्डेय चवड़ा कइले छतिया ,
हम भोजपुरिया भाई हम भोजपुरिया ,
देशवा के राह त हमनी देखवनी ,
असहयोग आन्दोलन चलअवनी ,
गाँधी जी एहिजा जा से भईले महान हो ,
एइजे से बुद्ध सबके कईले कल्याण हो ,
आज अलग अलग राग, का बा मजबुरिया ,
हम भोजपुरिया भाई हम भोजपुरिया ,
(18)
मौसम आइल बा क्रिकेट के ,
हवा गरम भइल बा देश के ,
हर कोई सपना देखत बा ,
की अबकीर कप हमार बा ,
इहे बात अगर हमनी के ,
खिलारी लोग के बुझाइत ,
त हमनी के मन में ,
ये लेखान तूफान ना आइत ,
भइल बात क्रिकेट के अब ,
राउआ OBO पर ध्यान दी ,
लाइव विश्व भोजपुरी कवि सम्मलेन ,
कल के आगाज सुन्दर रहे ,
आज ओहू से सुन्दर बिराम दी
कुछ अपनो कालम के खोली ,
कुछ दुसरो के सबासी दी ,
हमू आ गइल बानी ,
संगे राउओ तनी दाऊर ली ,
(19)
इस कविता में कही भी मात्रा के उपयोग नइखे भइल
गरबर भइल समझ भइल ,
उनकर घर जर गइल ,
उ लगवलन जवन अनल ,
तब उनकर घर अन्दर गइल ,
तब समझ बढ़ गइल ,
हम गलत कर गइल ,
पर घर जलल क वजह बनब ,
त अपन घर जरत नजर पड़ गइल ,
अब हम इ कहब ,
पर घर पर गलत नजर मत कर ,
तब उ नजर तहर घर पर पड़ ,
तब मन कह इ मत कर ,
(20)
आज हर तरफ लुट मचल बा ,
हर कोई देत बा गाली ,
केकरा के का बोलल जाव ,
मौका मिली ता जानेम ,
जेकरा मौका मिलल उ लुटलस,
जेकरा ना मिलल उ साधू बा ,
जेकरा मिलल उ खुश ,
जेकरा ना मिलल उ बेकाबू बा ,
का कही केकरा पर बिश्वास करी ,
गाली जे आज देत बा ,
का काल्ह हमनी के उ ना लुटी ?
ह केहू केहू अपवाद हो जाला ,
बाकिर ओतने से बिवाद ना रुकेला ,
सोची समझी कुछु करी ,
जवन चलत बा उ चले दी ,
कारण जे बनावत बा उ आउर बनाई,
जेकरा रास्ता मिलल बा ओकरे भेटाइ ,
इ हिंदुस्तान ह इहा ओकरे सुनल जाला ,
जेकर सरकार होखे ,
या जेकरा लगे मॉल (पैसा ) होखे ,
या जे करत बवाल होखे ,
रउआ बीच के आदमी मत बनी ,
ना त राउर केहू ना सुनी ,
गनेश जी "बागी"
(21)
विधना के लिखल कोई बदल नाही पाईल,
चाहे कोईee कतनोoo कर लेवे चतुराईe,
धन दौलत, जर जमीन सब एहिजे रह जाई,
जहवा से आईल जीवss वोहिजे चल जाईe ,
कतो होखे लुट पाट कतो इज्जत लुटाता,
कोई क मांग लुटल कोई क गरदन कटाता,
एके घर क बेटवा निकल बहरी भुलाईलs,
विधना के लिखल कोई बदल नाही पाईल,
खात खात कोई मरेee कतो पड़े फाँकाss,
बच्चा के दूध नाss कोई दूध मे नहाताss,
एक ही मालिक के बंदे फरक कईसे आईल,
विधना के लिखल कोई बदल नाही पाईल,
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आर. के. पाण्डेय "राज"
(22) अपने कभी देखले बानी
अपने कभी देखले बानी
एक बाप के आपन औलाद के
अपना गोदी में उठा के
सरकारी अस्पताल के
एक कोना से दोसर कोना तक
पागल के अईसन दौड़त-धुपत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
गोदी से बाहर लटकत आ झुलत
असहाय छोट-छोट हाथ और गोड़,
आ ओकरा के बार-बार
सम्भालत आ समेट के गोदी में रखत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
कभी बच्चा के मुँह के देखत
कभी ओकर नाक पर
आपन गन्दा हथेली रख के
ओकर सांस के नापत,
अस्पताल में भगवान् बनल डाक्टर के
बेचैन आँख से तलाशत आ खोजत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
कभी अपने आप के सम्भालत
कभी तेज कदम से चलत भा दौड़त
कभी गोदी से बाहर लटकत जिस्म के
अपना गोदी में समेटत आ सम्हारत,
बेचैन आँख से दवाई के पर्चा लेके
दवाई के दोकान तलाशत
आ पाकिट के रोपेया गिनत,
बेचैन आंख से अपना बेमार बबुआ के देखत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
जिनगी आ मौत के पतला लकीर के बीच से
ओह नान्ह जिंदगी के खींचत आ निकालत
यमराज के गति से बहुत आगे
निकल जाए के कोशिस करत आ बचत
बेचैन आँख से अपना बचवा के निहारत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
केतना बेदर्द हो जाला इंसान
जब सुनेला आ जानेला की
यह गरीब बाप के गोदी में
लुकयिल आ मौत से डेरायिल
ओह नन्हका ज़िन्दगी के
अपना कब्ज़ा में लेके
अट्टहास कर रहल बा स्वायिन-फ्लू,
त केतना दूर भाग जाला इंसान
अपना आप के बचावे खातिर.
न केहू करे के तैयार होला
ओह असहाई बाप के मदद.
इंसान के नफरत के गंध से बचत
यमराज के पकड़ से छुरावत आ बचावत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
कभी देखले बानी अपने
रोवत आ बिलखत महतारी के ?
अपना बबुआ के झुलत हाथ पैर के
सोहरावत आ सम्हारत
आँख में आंसू भरले
डाक्टर के पीछे पीछे दौड़त आ
देवीजी के मनौती मनावत ?
अपना बबुआ के सम्हारत
आ मेहरारू के झूठ सांत्वना देके
रोवे से बार बार चुप करावत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
शायद अपने देखले ना होखब
शायद अपने देखले ना होखब
जब नन्हका ज़िन्दगी हार जाला मौत से
तब ओकरा ओहिजावे सड़क पर लेटा के
महतारी के बिलाप करत आ बाप के
दुनो हाथ से छाती पिट-पिट के
पिता परमेश्वर के कोसत आ बिलखत
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
अपने शायद देखले होखब
महतारी के अपना नन्हका के
खेलावत आ पुचकारत.
लेकिन का अपने देखले बानी
अपना बबुआ के लाश के चेहरा के
चुमत आ पुचकारत ?
बार बार उठत आ पछार खात
कौनो बाप के अपने कभी देखले बानी ?
नईखी देखले ता आयीं, हमरा साथे
चली कौनो मलीन बस्ती में
जहां ज़िन्दगी बसेला
हज़ार बेबसी के बीच
जहाँ होखेला रोज मौत के तांडव
जहाँ बढ़ेला बचपन बीमारी के बीच,
जहां इंसान, इंसान के तरह ना
बल्कि चालत फिरत लाश के तरह
उठेला गिरेला आ फिर खड़ा होके चलेला
चलीं हमरा साथे तनी
जहाँ मौत खट-खटावेला
रोज एक नया घर के कुण्डी
फिर शुरू हो जाला
विलाप के कन-फ़ोडुआ आवाज़.
चलीं मान ले तानी की अपने नईखी देखले
ओइसन कौनो बाप के अपना ज़िन्दगी में कभी.
लेकिन ई त बताईं की अपने कभी
ज़िन्दगी के ईहो रूप कभी देखले बानी ?
(23) निर्गुण गीत-- "दुवरा पर डोलिया"
दुवरा पर डोलिया, सज गईल भईया हो
जाए के बा पियाजी के द्वारे.
ओढ़ी के चदरिया, हम जईब ससुररिया हो
चार कहंरवा के, कंधवा सहारे.
दुवरा पर डोलिया, सज गईल भईया हो
जाए के बा पियाजी के द्वारे.
रोवेले भईया अउरी रोवेली बहिनिया हो
रोवेली माई होके निढाल ,
रोवेले हित-नात, साथी-संघाती हो
मिलल अब होई मोहाल.
दुवरा पर डोलिया, सज गईल भईया हो
जाए के बा पियाजी के द्वारे.
नौ मन लकड़ी के, बनल पलंगिया हो
ओही में उठत बाते ज्वाल.
माया के ओढनिया त, जरी जाई हमरो हो
लोभ-मोह के जब, फूटी कपाल.
दुवरा पर डोलिया, सज गईल भईया हो
जाए के बा पियाजी के द्वारे.
नश्वर शरीरवा त, धुवां बन जयिहें हो
उड़ जयिहें गगन विशाल,
हित-नात-मितवा त, पीछे छुटी जयिहें हो
टूट जयिहें बंधन के जाल.
दुवरा पर डोलिया, सज गईल भईया हो
जाए के बा पियाजी के द्वारे.
सुभग निर्गुण हम, पिया घरे पहुंचब हो
लिहें हमरा छतिया लगाई,
पिया के अंगनवा में, सब सुख भोगब हो.
हमरा त मुक्ति मिल जाई,
हो भईया, हमरा त मुक्ति मिल जाई.
दुवरा पर डोलिया, सज गईल भईया हो
जाए के बा पियाजी के द्वारे.
(24) एक ही बंदरवा काफी बा
एक बंदरवा देखि सुनी
लेकिन कुछुवो ना बोली.
एक बंदरवा बोली सुनी
लेकिन कुछुवो ना देखि.
एक बंदरवा देखि बोली
कुछुवो ना सुनी.
एकर मतलब ईहे भईल नू ?
दुई बंदरवा बोली
दुई बंदरवा सुनी
आ दुई बंदरवा देखि ?
फिर कहंवा से छुपी बुराई ?
ना सुनी वाला बंदरवा के
सुनी वाला दुनो बंदरवा
जे बुराई के सुनले रहे
चटखारा लेके सुनाई.
फिर कहंवा से छुपी बुराई ?
ना देखे वाला बंदरवा के
देखे वाला दुनो बंदरवा
जे बुराई के देखले रहे
आँखों-देखि हाल बतायी.
फिर कहंवा से छुपी बुराई ?
ना बोले वाला बंदरवा
काफी देर से जे चुप रहे
दुनो बंदरवा के बुरा चर्चा पर
खूब जम के गरियाई.
गाँधी जी के तीनो बन्दर के
सन्देश तबहिये काम में आई.
जब तीनो बंदरवा के
आँख, मूंह आ कान हमेशा
एक साथ ही तोपल जाई.
बुराई के प्रति दुराव के
अगर दूर राखे के बा,
एकरा खातिर एक ही बंदरवा
जान जायीं की काफी बा.
एक ही बंदरवा के भाई हो
आँख, कान आ मूंह के
एक साथ ही तोपल जाओ.
तीन बन्दर काहे के भईया
एक ही बन्दर से
बुराई से दुराव के शिक्षा लिहल जाओ.
बुरा त हरदम बुरा ही होला
देखीं, सुनीं भा बोलीं,
जब दुराव करे के बा बुराई से
आँख, कान आ मूंह के भईया
एके साथ में बंद कर लिहीं.
(25) हम ना रहब नईहरवा
हम ना रहब नईहरवा
हम त जायिब ससुररवा.
'माया' महतारी से मिलल सुख बाटे
चमक-धमक इहंवा खूब बाटे,
हम त धरब, सनातन के डगरिया
हम ना जायिब ससुररिया.
हम ना रहब नईहरवा
हम त जायिब ससुररवा.
'स्वार्थ' भईया हमके हरदम टोकें
लालच देखा के हमके ऊ रोकें,
हम ना सुनब कवनो बतिया
हम त जायिब ससुररिया.
हम ना रहब नईहरवा
हम त जायिब ससुररवा.
'मोह' बहिनिया हमके अगिन में झोंके
पिया के नगरिया जाए से रोके,
हम ना मानब उनकर बतिया
हम त जईब ससुररिया.
हम ना रहब नईहरवा
हम त जायिब ससुररवा.
काया मलिन भईल
मन भईल मयिला,
इहे दुखवा में हम
रात-दिन जरिला.
का हमरा कहिहें, मोरे पियवा
हम त जायिब ससुररवा.
(26) चैता गीत-- "आईल बसंती बहार हो"
आईल बसंती बहार हो,
सखी मन में चढ़ल फगुनवा.
देवर ढीठ मोरे बतिया ना माने
हमरी दुखवा वो तनिको ना जाने,
ई ना की आयीं अन्वाहियाँ
ले के जायीं ससुररिया.
आईल बसंती बहार हो,
सखी मन में चढ़ल फगुनवा.
जेठवा हमार मरम, तनिको ना जाने
पिया बिना हमरा मनवो ना लागे,
ई ना की भेजीं पवनियां
हमके बोलवायीं ससुररिया.
आईल बसंती बहार हो,
सखी मन में चढ़ल फगुनवा.
ससुर हमार इतनो ना जाने
फगुनवा में सजन बिना मनवो ना लागे
ई ना की भेजीं डोलिया-कहांर हो
हमके ले जावो ससुररिया.
आईल बसंती बहार हो,
सखी मन में चढ़ल फगुनवा.
जाड़ बीतल लेकिन फगुआ ना बीती
विरह-दुःख मन-घट से रीती
चल जईब, चल जईब
अकेले ही पियवा दुआर हो
चली जायिब ससुररिया.
आईल बसंती बहार हो,
सखी मन में चढ़ल फगुनवा.
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शशि रंजन मिश्र
(27) चेहरा बेईमान के...
(महँगाई के मार से घवाहिल जनता के भोजपुरी साहित्य के सृंगार कईसे सुनायीं ? देश के एह दशा देख के कलम भी मुस्मात लेखा लोर ढा रहल बिया... केकर करनी, केकर भरनी | पढ़ीं आ आपन कपार धुनी...कवि प्रदीप के गीत "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ.." के तर्ज पर)
आव बबुआ तोहरा देखाईं चेहरा सब बेईमान के
घोर के पियत लाज शरम, देख सब हैवान के
कहाँ बा शरम, कहाँ बा शरम...
इ देख स्विस बैंक के खाता, करिया नोट से भरल बा
उज्जर उज्जर कपड़ावालन के इ करनी करल बा
चारा-हवाला-बोफोर्स-आदर्श, सबके एहिजा खाता बा
आंखी के सोझा देश के पईसा, एहिजे सब लपाता बा
देश के देह में घुन बनल, करनी सब शैतान के
घोर के पियत लाज शरम, देख सब हैवान के
कहाँ बा शरम, कहाँ बा शरम...
इ देख राष्ट्रमंडल के खेला, कलमाड़ी आ चेला के
सत्तर हजार करोड फूँकाइल, ना बाचल अधेला के
भईल छिछालेदर दुनिया में, रंगत अईसन मेला के
पीठ थपथपावत आपन देख, इज्जत डूबइला के
नाम हंसाई करवा देहले, इ भारत महान के
लाज शरम घोर के पियत देख सब हैवान के
कहाँ बा शरम, कहाँ बा शरम...
राजा के भी राज अजीब बा, हर हाथे मोबाईल बा
सस्ता भईल अब बात करल, एही में अझुरायिल बा
दूरसंचार के मायाजाल अनोखा, लमहर घोटाला बा
जेने देख ओने टू-एस टू-जी के बोलबाला बा
कईसन राज चलवलस देख राडिया सुल्तान के
लाज शरम घोर के पियत देख सब हैवान के
कहाँ बा शरम, कहाँ बा शरम...
देख जनता भुलायिल नईखे, उ चारा घोटाला के
आदमी कईसे खा गईल देख, जानवर के निवाला के
कबो कबो अबहुओं उठत बा धुंआ, करिया हवाला के
कईसन दिवाली मनत बाटे देश के दिवाला के
आँख मुंद के सभे भुला जा, सब करनी भगवान के
लाज शरम घोर के पियत देख सब हैवान के
कहाँ बा शरम, कहाँ बा शरम...
गीतकार -सतीश मापतपुरी
(28) जिनिगी संवर गइल
जब ले लागल नेह तोहसे -जिनिगी संवर गइल.
दरपन भइल हैरान -अइसन रूप रंग निखर गइल.
एकरा से पहिले हमार जिनिगी बीरान रहे.
धड़केला दिल अइसन बात से अनजान रहे.
जब ले तू भरलs अन्कवारी- रात-दिन ठहर गइल.
दरपन भइल हैरान-अइसन रूप रंग निखर गइल.
होंठवा के तू पिया हंसेके सहुर देलs .
डहकत जियरा के मरहम हुजुर देलs .
मनवा में तोहके बसवली- रहिया में फूल पसर गइल.
दरपन भइल हैरान-अइसन रूप रंग निखर गइल.
रतिया में तुही-हमरी बतिया में तुही.
मनवा में तुही-पिया अंखिया में तुही.
जब-जब गरवा लगवल-देहिया सिहर गइल.
दरपन भइल हैरान-अइसन रूप रंग निखर गइल.
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राजीव कुमार पाण्डेय
(29) गर्व से सारा दुनिया में भोजपुरिया कहावल जाव......
जय भोजपुरी जय भोजपुरिया,सबके हम बोलावत बानी ,
स्वर्णिम बा इतिहास आपन ई सबका के बतावत बानी ,
नालंदा के धरती के पुकार आज रऊआ सबके सुनावत बानी,
बाबा गोरखनाथ के बुलावा आज सबके हम सुनावत बानी,
लखनऊ के शाम से लेके,पटना के भी नाम के लेके ,
मारीशस के धरती पर बानी या बीजी बानी दुबई में कौनो काम के लेके ,
सबके आज हम नेवता एक पेठावत बानी ,
भोजपुरिया धरती के एक निमंत्रण सबके हम पहुँचावत बानी ,
एह धरती के जन्म के रऊआ एगो कर्ज चुका दीं
आज रऊआ भोजपुरी पे आइल कलंकित आंच बुझा दीं ,
भोजपुरी के जे बा दुश्मन ओकरा के रऊआ आज बता दीं
आज रऊआ माँ समान एह भाषा के लाज बचा दीं ,
आरा और छपरा से होके , बलिया और चंपारण लेके
बेतिया , बक्सर , पडरौना से , सब ओर से कौनो कारण लेके ,
सबके साथ- साथ में आज आगे आवे के होई
धन, धर्मं जाति के बंधन आज सबके मिटावेके होई ,
कब तक राजेंद्र बाबु धरती के लाल सुतल रहिहें ?
कब तक वीर कुवंर के धरती के सपूत सुतल रहिहें ?
अभी जिन्दा बानी जा ऐ भोजपुरिया माटी के सपूत आज सबके बतावे के बा,
हर गलत ऊँगली जवन उठल बा ऐ संस्कृति पर सबके काट गिरावे के बा ,
आज भिखारी ठाकुर के भोजपुरी के लाज बचावे के बा,
आज सारा विश्व के भोजपुरिया के एक साथ कदम बढ़ावे के बा,
जे गोपालगंज , सिवान , छपरा से बा, ओकरो आगे आवे के होई
लुधियाना, दिल्ली , सूरत और मुंबई से भी लोग के बुलावे के होई .
केहू मजदुर बा त केहू आई एस आफिसर बा ,
केहू इंजिनियर त केहू वेल्डर , केहू फीटर बा
आज सबका एक साथ कदम मिला के चले के परी ,
अपना संस्कृति के खातिर सबके साथ आज निकले के परी ,
कब अक हमनी के माई- बहिन अपना कान पर हाथ रखिहें ?
कब तक भोजपुरी के तरफ सब लोग नफरत से तकिहें ?
कब तक द्विअर्थी गीतन पर नंगा नाच चलत रही ?
कब तक लोग अपना के बिहार आ यु पी के कहला से बचत रही ?
डाक्टर बानी , इंजिनियर बानी और रऊआ आई एस ऑफिसर बानी
रऊआ भी ऐ धरती के लाल बानी रऊआ नाही दुसर तीसर बानी.
आई सब लोग मिल के दुनिया के दिखावल जाव
थोडा सा सुतल रहनी जा जरूर, मरल नाही, ई सबके सिखावल जाव ,
आंख निकाल लियाई , हाथ काट दिहल जाई अगर इरादा नापाक होई,
एक बार फिर से हमरा ऐ भोजपुरी धरती माई के आँचल साफ होई ,
सब लोग आयीं एक साथ मिलके प्रेम के दीपक जलावल जाव
जय भोजपुरी ,जय भोजपुरी के नारा लगावल जाव
भोजपुरी संस्कृति के प्रति आपन सर झुकावल जाव
गर्व से सारा दुनिया में भोजपुरिया कहावल जाव ......
(30) हम ना आएब :- भगवान के कथन
हम ना आएब ,
आखिर काहें आएब हम ,
केकरा-केकरा के समझायेब हम,
केकरा के न्याय के बात बताएब हम,
केकरा के शांति के पाठ पढायेब हम,
दू भाई के तांडव नृत्य
देखत रही जाएब हम ,
का एही खातिर आएब हम ,
केकर शांति दूत बन के जाएब
का भगवान वाला आपन छवि
खुद बचा पाएब हम ???
हम कौना-कौना रावण के मार गिरायेब
कौना- कौना कंस के मौत के नींद सुलायेब ?
अब शांति संदेस कहाँ सुनायेब ?
कौना कौना दुर्योधन के पास जाएब ?
का खुद बिना स्वार्थ के रह पाएब ????
जब चारू ओर हो रहल होखे चीर हरन ,
पुकारत होखसन द्रौपदी सब ,
हम कौना-कौना कौरव दरबार में जाएब ,
केकर केकर लाज बचायेब हम ,
जब चारो ओर मचल बा चीख पुकार,
का कौनो द्रौपदी के पुकार सुन पाएब हम ,
आखिर इतना वस्त्र -वसन कहा से लायेब हम ,
बहिर- गूंगा दर्शक बन के देखत रही जाएब हम ,
एहिसे सोचतानी नाही आएब हम ,
काहे से कि लूटत-बिलखत ऐ मानवता के ,
बचा ना पाएब हम , हाँ बचा ना पाएब हम ..
(31) रऊआ काहे इतना गुरुर में रहीले
रऊआ काहे इतना गुरुर में रहीले
जब हम जागिले परेसान होके,
रऊआ चैन से सोइले
पर इ जान लीं कि कुछ लोग बा,
जे हमके पावे खातिर,
आपन सारा नींद खोवेला.
हमार एक झलक पावे खातिर,
उ दिन रात रोवेला,
कही अईसन ना होके जे,
हम हमेसा खातिर अब चैन से सो जायीं
और रऊआ सारी उमर खातिर,
बेचैन से हो जायीं .........
"OBO लाइव विश्व भोजपुरी कवि सम्मेलन" समाप्त
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