गति
उच्चरित ध्वनि के प्रवाह को लय कहते हैं लय एक संयत व्यवस्था है जो स्वर के चढ़ाव उतार से जन्म लेती है. स्वर या तो धीरे से उच्चारण करते हैं या जोर से इसी कम ज्यादा चढ़ाव उतार को लय कहते हैं.यही लय छंद की जान है यही छंद की गति है,इस गति की रक्षा काव्य की प्रथम कसौटी है गति का भंग होना कवि की असफलता की निशानी है गति भंग एक ऐसा दोष है जिससे काव्य पाठ का सारा मजा किरकिरा हो जाता है.
यति
इसी गति की रक्षा के लिए यति का विधान किया गया है छोटे छोटे छंदों में यति की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि इन छंदों की छोटी छोटी लाइनें एक ही प्रवाह में पढ़ी जा सकती हैं किन्तु जिन छंदों के चरण की लाइनें लंबी होती हैं उनमे प्रायः बीच में विश्राम की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि इन्हें एक ही साँस में नहीं पढ़ा जा सकता. लंबी लाइन वाले छंद के चरण में जहाँ विश्राम की आवश्यकता पड़ती है इसे ही यति कहते हैं. किन्ही किन्ही छंदों के चरणों में दो-दो या तीन तीन यति होती हैं --
जैसे.....
जिसे पूजते किन्नर नर,यक्षेस धरा धर.
उपरोक्त पंक्ति में नर शब्द पर जिव्ह्या कुछ विश्राम लेती है इसे ही यति कहते हैं यति का चिन्ह (,) है. जब छंद के किसी चरण में यति के स्थान पर कोई शब्द आधा इधर आधा उधर हो जाता है तो यति दोष कहा जाता है .
जैसे.....
इसी विपिन में मानस की आ / शा का कुसुम खिला.
यति पर यहाँ आशा शब्द बट गया यह यति दोष है.
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