आज रिलीज़ हुई है फिल्म आयशा| फिल्म की कहानी पर ध्यान दें तो यह एक आमिर लड़की की अपनी ज़िंदगी और सोच के इर्द गिर्द घूमती कहानी नज़र आती है|आयशा एक आमिर और स्टाइलिश लड़की है , और वह एक इवेंट मैनेजमेंट के तौर पर दिलों को जोड़ने का काम करती है,रूप सज्जा मे काफ़ी कृत्रिम,बनावटी और अप्राकृतिक चीज़ें साफ साफ नज़र आती हैं,कहानी मे कोई खास दम नही है, सिर्फ़ और सिर्फ़ कहानी आयशा के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है|कभी वो सेल्फिस नज़र आती है तो कभी दोस्तों की मदद कर उनपर चुपके चुपके अधिकार जमाने की कोशिश भी करती है|एक दोस्त पिंकी के रूप मे इरा दूबे ने अच्छा अभिनय किया है,शेफाली के रूप मे मिडिल क्लास फैमिली की लड़की होने का अहसास अमृता पूरी ने देने मे कोई कोताही नही बरती है, वो पूरी तरह से इस रोल मे फिट बैठ रही हैं,सीमित संसाधनों के बीच सोनम और अभय देओल ने अच्छा काम किया है, इसमे कोई शक नही|इस छोटी सी स्टोरी मे भी दिल्ली की झलक मिल रही है|पता नही क्यों आजकल के फिल्मों मे दिल्ली के सीन कुछ ज़्यादा ही नज़र आ रहे हैं |मैने पिछली लगभग 10 फिल्मों पर नज़र दौड़ाई तो मुझे सबमे एक ही समानता नज़र आई और वो यही की सबमे दिल्ली की भूमिका किसी ना किसी बहाने से मजबूत रूप मे है| आख़िर कुछ बात तो है इस शहर मे|आयशा एक लव स्टोरी है, लेकिन फिल्म में प्यार के क्षण ही नहीं आ पाते। कभी लड़ाई तो कभी फ्लर्ट यही सब दिखता है|कभी भी प्यार का अहसास ही नही हो पाता,प्यार का इज़हार भी एक बालकनी मे खड़ा होकर सीधी के उपर से करना थोड़ा कामेडी लगता है,मगर इसका क्या औचित्य है समझ मे नही आता|इस फिल्म मे प्यार कम नौटंकी ज़्यादा है| हाँ ये ज़रूर दिख जाता है की अगर आपको किसी दूसरे का इस्तेमाल करना है तो आप कैसे इस काम को अच्छी तरह से कर सकते हो |मिडिल क्लास पर तरस भी खाने वाली बात मुझे समझ मे नही आई|आख़िर सबकी एक अपनी ज़िंदगी है| आप उसमे कैसे इंटेरफेयर कर सकते हैं?,अपनी मर्ज़ी कैसे आप दूसरों पर थोप सकते हैं? कुल मिलकर यह एक ताम झाम वाली और लड़की प्रधान फिल्म है,अगर आपकी कोई गर्लफ़्रेंड है तो उसके साथ आप ये फिल्म देखने जा सकते हैं|वीकेंड के लिए छुट्टी मनाने का अच्छा ज़रिया साबित हो सकता है|किरदारों के स्टाइलिश लुक देने के चक्कर मे उनका असली किरदार सही रूप मे सामने नही आ पाया है|आयशा इस नये दौर की एक कैरेक्टर है, जिसकी बनावट से अधिक सजावट पर ध्यान दिया गया है।और इसमे सोनम पूरी तरह से चमक दमक मे निखर भी रही हैं|फिल्म का निर्देशन अच्छा है,मगर अमित त्रिवेदी का संगीत बहुत ही लाजवाब और प्यारा है,इसमे बिल्कुल मिलावट नही है, इसमे नयापन झलकता है, फिल्म के अंत मे गीत अच्छा लगता है,कुल मिलकर अनिल कपूर की ये फिल्म ऐसे लोगों के लिए है जो ज़्यादा सजने सवरने मे, पिकनिक मे और सिर्फ़ मस्ती मे मगन रहते हैं,फिल्म से कुछ खास शिक्षा नही मिलती है,बस दिल्ली की इस भाग दौड़ भारी ज़िंदगी मे भी कुछ युवा दिलों की मस्ती नज़र आएगी|आपको कुछ समय के लिए ऋषिकेश की पहाड़ी वादियों का लुत्फ़ उठाना हो तो फिर ठीक है,निर्देशक : राजश्री ओझा ने सीमित कहानी और ढीली पटकथा के बावजूद दर्शकों को बाँधने की भरपूर कोशिश की है|सोनम कपूर सुंदर तो हैं ही, इसमे तो कोई शक नही है , मगर इस फिल्म मे तो वो सेक्सी और नये मॉडलके कपड़ो मे वो बिल्कुल परी जैसी दिखती हैं, इसमे रूप सज्जा करने वाले और निर्देशक राजश्री ओझा ने भरपूर मेहनत की है|अभिषेक तिवारी|
मेरी नज़र मे ये फिल्म (ठीक ठाक) है