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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक्यावनवाँ आयोजन है.

 

ओबीओ का मंच शास्त्रीय छन्दों के संवर्द्धन और प्रचार-प्रसार के क्रम में महती एवं संयत भूमिका निभाता आ रहा है. शास्त्रीय छन्दों के मूलभूत विधान में बिना अनावश्यक परिवर्तन के रचनाकर्म करना-करवाना तथा इस हेतु सदस्यों को सुप्रेरित करना इस मंच के उद्येश्यों में से एक महत्त्वपूर्ण विन्दु रहा है. किन्तु यह भी उतना ही सही है कि कोई मंच अपने सदस्यों के अनुरूप ही प्रवृति अपनाता है.

ओबीओ का नित नवीन मंच आज ऐसे सदस्यों से आबाद है जो छन्द पर हुए तमाम अभ्यासों और प्रयासों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं. इन्हें यह भी भान और गुमान नहीं है कि इस आयोजन के क्रम में ऐसा भी दौर आया है जब सदस्य प्रस्तुत हुई छन्द-रचनाओं की प्रतिक्रिया भी उसी छन्द में देने लगे थे !

 

किन्तु, यह भी सही है, कि इस दृश्य-जगत में सतत होता सर्वस्तरीय परिवर्तन ही स्थायी है.

 

यह हमेशा महसूस किया जाता रहा है कि रचनाकार-पाठक आमजन की तरह विधाजन्य आयोजनों में भी नवीनता चाहते हैं. हम इस नवीनता की चाह का सम्मान करते हैं. हिन्दी साहित्य स्वयं भी, विशेष तौर पर पद्य-विभाग, छान्दसिक प्रयास तथा गीत में व्यापी नवीनता को ’नवगीत’ के तौर पर सम्मानित कर मान देता है.

नवगीत छन्दों पर आधारित गीत ही हुआ करते हैं जिनके बिम्ब और इंगित आधुनिक, सर्वसमाही होते हैं तथा भाषा सहज हुआ करती है. इसी क्रम में हमारा सोचना है कि हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा नवगीत प्रयोग दोनों को साथ-साथ मान दें.

 

 

इस बार हम तीन छन्दों को साथ ले रहे हैं – दोहा छन्द, रोला छन्द और कुण्डलिया छन्द.

इन तीनों छन्दों में से किसी एक या दो या सभी छन्दों में प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द रचना करनी है. 

इन छन्दों में से किसी उपयुक्त छन्द पर आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

 

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो तीनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  17 जुलाई 2015 दिन शुक्रवार से 18 जुलाई 2015 दिन शनिवार तक

 

 

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

 

[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]

 

जैसा कि विदित ही है, छन्दों के विधान सम्बन्धी मूलभूत जानकारी इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

दोहा छन्द की मूलभूत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.

 

रोला छ्न्द की मूलभूत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

 

कुण्डलिया छन्द की मूलभूत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

********************************************************

दोहा छन्द पर आधारित गीत के उदाहरण केलिए यहाँ क्लिक करें.

 
दोहा छन्द आधारित नवगीत के उदाहरण केलिए यहाँ क्लिक करें.

 

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 17 जुलाई 2015  से 18 जुलाई 2015 यानि दो दिनों के लिए  रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

 

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies to This Discussion

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, प्रदत्त चित्र पर सभी विधाओं मैं रचित सुन्दर प्रस्तुतियां महोत्सव मैं चार चाँद लगा रही हैं,हार्दिक नमन आपको ! 

आ० सचिन जी

आपे स्नेह को प्रणाम .

आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी प्रस्तुतियाँ मनभावन तो होती ही हैं, उनका गूढ़ार्थ विशेष रूप से मन मोहता है.
जहाँ प्रदत्त चित्र को शब्दबद्ध करना इस आयोजन की सीमा तय करता है, वहीं इस सीमा को संतुष्ट करते हुए भावजन्य अलोत आयाम को सापेक्ष करना रचनाकर्मियों केलिए चुनौती भी रही है. आप सदा ही इस चुनौती से सिर भिड़ाते रहे हैं. यही आपकी उन्नत वैचारिकता तथा रचनाधर्मिता का प्रमाण है. प्रस्तुत दोहा-गीत भी अपवाद नहीं है.

विशेषकर, दोहा-गीत के अन्तिम दोनों बन्द इह-जीवन और पराजीवन को साधते हुए सफलता से सामने आते हैं.
झूले की प्रतियोगिता / झूले का संसार  इन दो चरणों में आपने जीवन की अनवरत चलती चक्करघिन्नी को कितनी कुशलता से शाब्दिक कर दिया है ! वाह !! या, जिसकी जितनी पेंग है / उतना ही व्यापार  जैसी अभिव्यक्ति मानव को कर्मफल के सिद्धांत के अलावा संचालक भाग्य के वैशिष्ट्य और उसकी समझ के प्रति भी नत होने को आश्वस्त करता है. तभी तो सुध-बुध खोकर देखता / मानव  आत्म-विभोर जैसी पंक्तियाँ सहज लगती हैं.

जो है वह मिथ्या है और यह जग आभासी जीवन का पर्याय है - हवा थमेगी एक दिन / बीतेगी बरसात / झूला जायेगा उतर / रह जायेगी बात .. वाह ! और आगे शाश्वत नही हिलोर !
बहुत खूब आदरणीय ! भाव लालित्य के संप्रेष्य इंगितों से जीवन के मूल    --’निर्लिप्तता’--   के संकेत को पकड़ना गहन ज्ञान का परिचायक है.
आपकी प्रस्तुति ’दोहा-गीत’ की भाव दशा के लिए हार्दिक धन्यवाद.


किन्तु, शैल्पिक दृष्टि से आप जब छूट लेते है और वाचन-प्रवाह में ’किचकी’ लगती है तो मन झन्ना भी उठता है. आप शब्द-कलों की महत्ता से अब खूब वाकिफ़ हैं. फिर भी आपका इनको निभाये बिना ’चला लेना’ या शब्दकलों को ’मटिया देना’ कुछ समझ में नहीं आता.
आप और कसकती हृदय में   या  हवा खेलती सलिल से  जैसे चरणों को कैसे मान्यता दे सकते हैं ?
आप बताइये तो मैं बताऊँ !!

आयोजन में सहभागिता और प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ
सादर

आ० गुरुवर

अब जानी बूझी गलती के लिए क्या कहूं  ?  छमा  निवेदित है ,संशोधन  की दरख्वास्त बाद में करूंगा . सादर

सादर धन्यवाद आदरणीय गोपाल नारायनजी..

आदरणीय गोपाल नारायनजी,

आपने रोला छ्न्द तो प्रस्तुत किया, लेकिन ढाई छन्द ही क्यों प्रस्तुत किये यह स्पष्ट नहीं हुआ.

रोला चार पदो का छन्द होता है जिसकी दो-दो पदों की तुकान्तता चलती है. छन्द के विधान में हम कोई परिवर्तन न करें आदरणीय, यदि हम छन्द आधारित रचना नहीं कर रहे हैं.
फिर भी प्रस्तुति पर अपनी बातें कहने से नहीं रोक पा रहा हूँ --

बहती मस्त बयार  झूमती तरु की काया
लेकर मन्मथ मार  विहंसता सावन आया..  मन्मथ मार लेकर सावन का आना ! वाह !

झूले पर हैं  नार   लाल -पीली है सारी
यौवन मद का भार देखती दुनिया न्यारी....... आपकी दृष्टि की नमन आदरणीय !

पेंग बढ़ाती एक   लहर उठती है प्यारी
उड़ते हैं परिधान   फहर उठती है सारी......... ललित दृष्टि से उकेरे गये इस  शब्द-चित्र ने मुग्ध कर दिया !

यौवन का उल्लास दूर अम्बर तक फैला
सोलहवां  है साल वपुष हो  रहा विषैला......... वपुष के विषैला होने का ज़वाब नहीं आदरणीय !

आता है प्रति वर्ष जगत में सावन प्यारा
जन मानस संतप्त  झूम उठता है सारा......... सही बात !

हार्दिक शुभकामनाएँ

आ० सौरभ जी

इस कमी की पूर्ति का भी निवेदन बाद में  करूंगा . सादर

:-)))

सादर धन्यवाद आदरणीय .. जय हो..

अत्यंत सुन्दर प्रस्तुतियां तीनों ही आ. डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।

आदरणीया

आपका आभार

आया सावन डाल पर   झूले का आनन्द
बिखर गया है वात मे जीवन का मकरंद  
वाह ! बहुत खूब !

जीवन का मकरंद  चार तरुणी मतवारी
गाती  सावन  गीत   उर्ध्व  की है तैयारी
प्रकट हुआ उल्लास अहो यौवन की माया
पीड़ा मन्मथ-मार  साथ मे  लेकर आया
आपकी कुण्डलिया छन्द प्रदत्त चित्र की सीमा में बढिया भाव उकेरते साझा हुए हैं आदरणीय गोपाल नारायनजी.

इस प्रस्तुति की भाषा काव्यात्मक भाषा  होने से ’वात में बिखरना’ या ’मतवारी’ या ’उर्ध्व’ आदि शब्द सहज ही नत्थी हो जाते है.
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय
सादर

आ० गुरुप्रवर

आश्वस्त हुआ . सादर .

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