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पर्यटन दिवस विशेष ( श्रीमती जया शर्मा )

(आदरणीया जया शर्मा द्वारा प्राप्त लेख हुबहू पोस्ट किया जा रहा है)

भारत की हृदय स्थली मध्यप्रदेश, भारत के ठीक मध्य में स्थित है। अधिकतर पठारी हिस्से में बसे मध्यप्रदेश में विन्ध्या और सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाएं इस प्रदेश को रमणीय बनाती हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएं हैं कई नदियों के उद्गम स्थलों को जन्म देती हैं, ताप्ती, नर्मदा, चम्बल, सोन, बेतवा, महानदी जो यहांॅ से निकल भारत के कई प्रदेशों में बहती हैं।
मध्यप्रदेश बेहद खूबसूरत और हराभरा है। जैसे एक हरे पत्ते पर ओस की बूंदों सी झीलें, एक दूसरे को काटकर गुजरती नदियांॅ। विहंगम है मध्य प्रदेश जहांॅ, पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। 1956 में मध्यप्रदेश भारत के मानचित्र पर एक राज्य बनकर उभरा था, यहां की संस्कृति प्राचीन और ऐतिहासिक है। असंख्य ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरें, शिल्प और मूर्तिकला से सजे मंदिर, स्तूप, और के अनूठे उदाहरण यहांॅ के महल और किले। यहांॅ उत्पन्न हुए राजाओं और उनकी वैभवशाली कला की याद दिलाते हैं। महान योद्धाओं, शिल्पकारों , कवियों, संगीतज्ञों के साथ हिन्दु, मुस्लिम, जैन और बौध्द धर्म के साधकों की याद दिलाते हैं। नाटककार कालिदास और प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन ने इस तपोभूमि पर जन्म ले इसका गौरव बढ़ाया ।
जबलपुर मध्य भारत के महाकौशल क्षेत्र में मॉ नर्मदा के पावन किनारे स्थित प्राचीन स्थल है । इसके नाम से संबंधित कई किवदंतियां प्रचलित हैं । इनमें से एक कल्चुरी समय की पान्डुलिपी पर आधारित नाम जाउलीपट्टन है । एक अन्य मान्यता के अनुसार इसका नाम जबालि ऋषि पर आधारित है जिन्होंने नर्मदा किनारे वर्षों तपस्या की थी । अन्य मान्यता अरबी के जबल शब्द से जोड़ती है जो यहॉ की पर्वतमालाओं के लिये प्रयुक्त किया माना जाता है और मध्यपूर्व से संबंधों की ओर इंगित करता है ।
इस क्षेत्र का सम्रद्ध और विविध प्राचीन एवं सांस्कृतिक महत्व है । आचार्य विनोबा ने तभी तो ओशो रजनीश और महर्षि महेश योगी की इस भूमि को संस्कारधानी नाम दिया ।
जबलपुर क्षेत्र अपने विशिष्ट ज्ञान के लिये जाना जाता है और शिक्षा का बड़ा केन्द्र है । इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन इसे पर्यटन के लिये उपयुक्त बनाते हैं । यह शांत तथा दीर्घकालीन उद्देश्य के लिये अच्छा स्थान है ।

पाषाण युग से आज तक के इतिहास से परिपूर्ण इस क्षेत्र का अपना विशिष्ट महत्व है । यहां पर मध्य प्रदेश का उच्च न्यायालय तथा राज्य विज्ञान संस्थान है । थल सेना की छावनी के अलावा यहांॅ भारतीय आयुध निर्माणियों का कारखाना तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है ।
भेड़ाघाट में संगमरमरी चट्टानों की सुरम्य घाटियों के दृश्य देखते हुए लोगों की आँखें आश्चर्य चकित हो जाती हैं। पास ही प्रकृति की अनोखी धरोहर ‘धुआँधार‘ नामक जलप्रपात के रूप में दिखाई देती है। पहाड़ी पर बना चैसठ योगिनी मन्दिर प्राचीन शिल्पकला का अनूठा उदाहरण है। एक चक्र के आकार में 86 से भी अधिक देवी, देवताओं एवं योगिनियों की मूर्तियों में अद्भुत शिल्पकला के दर्शन होते हैं। भेड़ाघाट के समीप ही नर्मदा के ही लम्हेटाघाट में पाई जाने वाली चट्टानें विश्व की प्राचीनतम चट्टानों में गिनी जाती है। भूगर्भशास्त्रियों द्वारा इनकी उम्र लगभग 50 लाख वर्ष बताई गई है तथा विश्व की भूगर्भीय भाषा में इन चट्टानों को लम्हेटाईट नाम से जाना जाता है।
मध्यप्रदेश का एक तिहाई हिस्सा वन संपदा के रूप में संरक्षित है। जहाॅं पर्यटक वन्यजीवन को पास से जानने का अद्भुत अनुभव प्राप्त करते हैं। कान्हा नेशनल पार्क, बांधवगढ, शिवपुरी, पेंच, वन-विहार आदि ऐसे स्थान हैं जहांॅ आप बाघ, जंगली भैंसे, हिरणों, बारहसिंघों को स्वछंद विचरते देख सकते हैं।यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं। मध्य प्रदेश अपने राष्ट्रीय पार्को और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता और वास्तुकला के लिए विख्यात कान्हा पर्यटकों के बीच हमेशा ही आकर्षण का केन्द्र रहा है। कान्हा शब्द कनहार से बना है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ चिकनी मिट्टी है। यहां पाई जाने वाली मिट्टी के नाम से ही इस स्थान का नाम कान्हा पड़ा। इसके अलावा एक स्थानीय मान्यता यह रही है कि जंगल के समीप गांव में एक सिद्ध पुरुष रहते थे। जिनका नाम कान्वा था। कहा जाता है कि उन्हीं के नाम पर कान्हा नाम पड़ा।

कान्हा जीव जन्तुओं के संरक्षण के लिए विख्यात है। यह अलग-अलग प्रजातियों के पशुओं का घर है। जीव जन्तुओं का यह पार्क 1945 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की भी प्रेरणा इसी स्थान से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है।
भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ कई छोटे-बडे़ ताल हैं । भोपाल में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) का एक कारखाना है। हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ने दूसरा मास्टर कंट्रोल फैसिलटी स्थापित किया है। भोपाल मे ही भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भी है जो भारत में वन प्रबंधन का एकमात्र संस्थान है।
यहांॅ का छोटा तालाब, बड़ा तालाब, भीम बैठका, अभ्यारण्य तथा भारत भवन देखने योग्य हैं। भोपाल के पास स्थित सांची का स्तूप भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। भोपाल से लगभग २८ किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर मन्दिर एक एतिहासिक दर्शनीय स्थल है।

बिरला मंदिर के नाम से विख्यात लक्ष्मीनारायण मंदिर, अरेरा पहाड़ियों के निकट बनी झील के दक्षिण में स्थित है। शहर के बीच बनी मोती मस्जिद को कदसिया बेगम की बेटी सिकंदर जहां बेगम ने 1860 ई. में बनवाया था। ताज-उल-मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल शहर के बीचोंबीच चैक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। बड़ी झील के किनारे गौहर महल है। यह शौकत महल के पीछे स्थित है।

पुरातात्विक संग्रहालय
बानगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। भारत भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय संग्रहालय शामला की पहाड़ियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।
साॅंची का पता सन् १८१८ ई. में सर्वप्रथम जनरल टायलर ने लगाया था। विश्वप्रसिद्ध बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, विदिशा से ४ मील की दूरी पर ३०० फीट ऊँची पहाड़ी पर बसा है। प्रज्ञातिष्य महानायक थैर्यन के अनुसार यहाँ के बड़े स्तूप में स्वयं भगवान बुद्ध के तथा छोटे स्तूपों में भगवान- बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत्र तथा महामौद्ग लायन समेत कई अन्य बौद्ध भिक्षुओं के धातु रखे हुए हैं। निर्माण- कार्य में राजा तथा श्रद्धालु- जनता की सहभागिता रही है।
यहाँ स्तूपों का निर्माण विभिन्न काल में चरणबद्ध तरीके से हुआ। सर्वप्रथम इसका निर्माण मौर्यकाल में अशोक के समय किया गया। अशोक ने ही विदिशा के स्थानीय निवासियों को स्तूप- निर्माण का आदेश दिया।
इन्दौर विकास की राह पर तेजी से अपने कदम बढ़ाता एक शहर। कोई अमीर हो या गरीब, इस शहर ने हर एक को अपनाया है।

क्या नहीं है यहाँ? मराठों का इतिहास, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और उससे जुड़े कई शिक्षण संस्थान।
भारत के कोने-कोने से आकर यहाँ कितनी ही पीढ़ियों से लोग बसे हैं। मराठी, सिंधी, दक्षिण भारतीय, पंजाबी, मारवाड़ी, राजस्थानी और मालवा के मूल निवासी तो हैं हीं। खान-पान भी सभी प्रकार का, सभी प्रकार के भारतीय व्यंजन। इतनी विविधता है, इसीलिये तो इसको अक्सर मिनी-मुंबई कह दिया जाता है.

इन्दौर से एक घण्टे की दूरी पर हैं सतपुड़ा की पहाड़ियाँ, नर्मदा की घाटी तथा ओंकारेश्वर और महाकाल के मन्दिर। ओंकारेश्वर का धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही यहां की प्राकृतिक भी छटा देखते ही बनती है। यहाँ नर्मदा नदी की आकृति बनाती है।

इन्दौर को मध्य भारत की वाणिज्यिक राजधानी भी कहा जाता है और यहाँ सबकी पसंद और जेब के हिसाब से बहुत से बाजार हैं। ग्लोबस और रेडियो मिर्ची सबसे पहले यहीं आरम्भ हुये थे, और अब सेज और कई अन्य सूचना प्रौद्योगिकी पार्क भी शहर का मुख्य हिस्सा हो गये हैं। इन्दौर का आधुनिक सड़क परिवहन तंत्र किसी भी विकसित देश को टक्कर देता है। बस स्थानकों पर इलेक्ट्रानिक सूचना पट लगे हैं जिन पर यह देखा जा सकता है कि कौन सी बस कहां है, और कितनी देर में अमुक स्थान तक पहुंचेगी। बसें समय पर आती हैं और विभिन्न मार्गों के हिसाब से अलग-अलग रंगों की हैं। बसों के रख-रखाव पर तो विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

उज्जैन मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा अत्यन्त प्राचीन शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर १२ वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है । उज्जैन मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर से ५५ कि मी पर है। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मन्दिरों की नगरी है।
महाकालेश्वर की मान्यता भारत के प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों में है। महाकालेश्वर मंदिर का माहात्म्य विभिन्न पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है। महाकाल उज्जैन के अधिपति आदिदेव माने जाते हैं।
श्री बडे गणेश मंदिर
श्री महाकालेश्वर मंदिर के निकट हरसिद्धि मार्ग पर बड़े गणेश की भव्य और कलापूर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर परिसर में सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान प्रतिमा के साथ-साथ नवग्रह मंदिर तथा कृष्ण यशोदा आदि की प्रतिमाएं भी विराजित हैं।
मंगलनाथ मंदिर
पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहाँ पूजा-पाठ करवाने आते हैं। यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।
उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर प्रमुख है। चिन्तामण गणेश मंदिर से थोडी दूर और रूद्रसागर तालाब के किनारे स्थित इस मंदिर में सम्राट विक्रमादित्य द्वारा हरसिद्धि देवी की पूजा की जाती थी। धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है।
गोपाल मंदिर उज्जैन नगर का दूसरा सबसे बडा मंदिर है। यह मंदिर नगर के मध्य व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित है। मंदिर में कृष्ण (गोपाल) प्रतिमा है। मंदिर के चांदी के द्वार यहां का एक अन्य आकर्षण हैं।
गढकालिका देवी का यह मंदिर आज के उज्जैन नगर में प्राचीन अवंतिका नगरी क्षेत्र में है। कालयजी कवि कालिदास गढकालिका देवी के उपासक थे। कालिका के मंदिर में माँ कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है। इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। भर्तृहरि की गुफा ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर का अवशेष है, जिसका उत्तरवर्ती दौर में जीर्णोध्दार होता रहा । मंदिर के अंदर काल भैरव की विशाल प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में राजा भद्रसेन ने कराया था।

सागर मध्य प्रदेश का एक संभाग है । संभाग का मुख्यालय सागर है । संभाग में सागर के अतिरिक्त चार अन्य जिले हैं, जिनमें से सागर भी एक है। अन्य चार जिले दमोह, छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ हैं। इसका नाम सागर इसलिए पड़ा क्योंकि यह एक विशाल झील के किनारे स्थित है। इसे आमतौर पर सागर झील या लाखा बंजारा झील भी कहा जाता है। सागर नगर इस झील के उत्तरी, पश्चिमी और पूर्वी किनारों पर बसा है। दक्षिण में पथरिया पहाड़ी है, जहां विश्वविद्यालय कैंपस है।
डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर जिले में स्थित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। इसेे सागर विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना डॉ हरिसिंह गौर ने १८ जुलाई १९४६ को अपनी निजी पूंजी से की थी। स्थापना के समय यह भारत का १८वाँ विश्वविद्यालय था।किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है। इसके उत्तर-पश्चिम में सागर का किला है। गढ़पहरा के अब भी कुछ ऐतिहासिक अवशेष बाकी हैं।यह महाराजा छत्रसाल और धामोनी के मुगल फौजदार खालिक के बीच हुए एक युद्ध का साक्षी था. मराठा सूबेदार गोविंदराव पंडित ने रानगिर को अपना मुख्यालय बनाया था। समीप की पहाड़ी पर हरसिद्धी देवी का एक मंदिर है, जहांॅ आश्विन और चैत्र के महीनों में देवी के सम्मान में मेला लगता है। यहाॅं हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। नौरादेही वन्य जीव सेंक्चुरी का स्थान सबसे अलग है। सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिलों में फैली इस वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी में ट्रैकिंग, एडवेंचर और वाइल्ड सफारी का आनंद लिया जा सकता है। यह करीब 1200 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है। इस सेंक्चुरी में वन्यजीवों की भरमार है, जिनमें तेंदुआ मुख्य है। एक समय यहां कई बाघ भी पाए जाते थे लेकिन संरक्षण नहीं मिलने के कारण लुप्त हो चुके हैं। तेंदुआ भी इसी हश्र की ओर अग्रसर है। चिंकारा, हरिण, नीलगाय, सियार, भेड़िया, जंगली कुत्ता, रीछ, मगर, सांभर, चीतल तथा कई अन्य वन्य जीव इस क्षेत्र में पाए जाते हैं।सागर से करीब 90 किमी दूर स्थित एरण ऐसा ही एक स्थान है. यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग के अलावा ट्रेन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सागर-दिल्ली रेलमार्ग के एक महत्वपूर्ण जंक्शन बीना से इसकी दूरी करीब 25 किमी है।
यहाँ से प्राप्त ध्वंसावशेषों में गुप्तकाल की भगवान विष्णु का मंदिर तथा उसके दोनों तरफ वराह तथा नृसिंह का मंदिर प्रमुख है. वराह की इतनी बड़ी प्रतिमा भारत में कहीं नहीं है. इसके मुख, पेट, पैर आदि समस्त अंगों में देव प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गई है. विष्णु मंदिर के सामने 47 फुट ऊँचा गरुड़-ध्वज खड़ा है।
मध्यप्रदेश के हर इलाके की अपनी संस्कृति है और अपनी धार्मिक परम्पराएं हैं जो उनके उत्सवों और मेलों में अपना रंग भरती हैं। खजुराहो का वार्षिक नृत्यउत्सव पर्यटकों को बहुत लुभाता है और ओरछा और पचमढी के उत्सव वहाॅं कि समृद्ध लोक और आदिवासी संस्कृति को सजीव बनाते हैं। ग्वालियर, शिवपुरी, ओरछा एक त्रिकोण के स्पष्ट तीन बिंदुओं की तरह स्थित हैं। इनकी ऐतिहासिक संस्कृति भी एक त्रिवेणी सी है।

ग्वालियर शहर सदियों से राजपूतों की प्राचीन राजधानी रहा है। इस शहर प्राचीन चिन्ह स्मारकों, किलों, महलों के रूप में मिलते हैं । सहेज कर रखे गए अतीत के भव्य स्मृति चिन्हों ने इस शहर को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है। ग्वालियर शहर के इस नाम के पीछे भी एक इतिहास छिपा हैय आठवीं शताब्दि में एक राजा हुए सूरजसेन, एकबार वे एक अज्ञात बीमारी से ग्रस्त हो मृत्युशैया पर थे, तब ग्वालिपा नामक संत ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया। बस उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पडी ओर इसे नाम दिया ग्वालियर।

आने वाली शताब्दियों के साथ यह शहर बडे-बडे राजवंशो की राजस्थली बना। हर सदी के साथ इस शहर के इतिहास को नये आयाम मिले। महान योध्दाओं, राजाओं, कवियों संगीतकारों तथा सन्तों ने इस राजधानी को देशव्यापी पहचान देने में अपना-अपना योगदान दिया। आज ग्वालियर एक आधुनिक शहर है और एक जाना-माना औद्योगिक केन्द्र है।
सेन्ड स्टोन से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता और शहर का प्रमुखतम स्मारक है। एक ऊचे पठार पर बने इस किले तक पहुंॅचने के लिये एक बेहद ऊॅंची चढ़ाई वाली पतली सड़क से होकर जाना होता है। इस सड़क के आसपास की बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जैन तीर्थंकरों की विशाल मूर्तियांॅ बेहद खूबसूरती से और बारीकी से गढ़ी गई हैं। किले की पैंतीस फीट ऊॅंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं। गूजरी महल, जो राजा मानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है।आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहांॅ दुर्लभ प्राचीन मूर्तियांॅ रखी गई हैं। दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं।
मानमंदिर महल
1486 से 1517 के बीच राजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया था। इसके आन्तरिक व बाह्य हिस्सों में इन नीली, पीली, हरी, सफेद टाइल्स द्वारा बनाई उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेष अब भी इस किले के भव्य अतीत का पता देते हैं। इस किले के विशाल कक्षों में अतीत आज भी स्पंदित है। यहाॅं जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष है, जिनके पीछे बने जनाना कक्षों में राज परिवार की स्त्रियां संगीत सभाओं का आनंद लेतीं और संगीत सीखतीं थीं। इस महल के तहखानों में एक कैदखाना है, इतिहास कहता है कि औरंगजेब ने यहांॅ अपने भाई मुराद को कैद रखा था। जौहर कुण्ड भी यहांॅ स्थित है। इसके अतिरिक्त किले में इस शहर के प्रथम शासक के नाम से एक कुण्ड है।
सूरज कुण्ड
नवीं शती में प्रतिहार वंश द्वारा निर्मित एक अद्वितीय स्थापत्यकला का नमूना विष्णु जी का तेली का मन्दिर है, जो कि 100 फीट की ऊंचाई का है। यह द्रविड़ स्थापत्य और आर्य स्थापत्य का बेजोड़ संगम है। भगवान विष्णु का ही एक और मन्दिर है सास-बहू का मन्दिर।यहांॅ एक सुन्दर गुरूद्वारा है जो सिखों के छठे गुरू, गुरू हरगोबिन्द जी की स्मृति में निर्मित हुआ।


जयविलास महल और संग्रहालय
यह सिन्धिया राजपरिवार का वर्तमान निवास स्थल ही नहीं एक भव्य संग्रहालय भी है। इस महल के 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है। इस महल का ज्यादातर हिस्सा इटेलियन स्थापत्य से प्रभावित है। इस महल का प्रसिद्ध दरबार हॉल इस महल के भव्य अतीत का गवाह है, यहां लगा हुए दो फानूसों का भार दो-दो टन का है, कहते हैं इन्हें तब टांगा गया जब दस हाथियों को छत पर चढा कर छत की मजबूती मापी गई। इस संग्रहालय की एक और प्रसिद्ध चीज है, चाॅंदी की रेल जिसकी पटरियां डाइनिंग टेबल पर लगी हैं और विशिष्ट दावतों में यह रेल पेय परोसती चलती है। और इटली, फ्रान्स, चीन तथा अन्य कई देशों की दुर्लभ कलाकृतियां यहां हैं।

तानसेन स्मारक
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के स्तंभ महान संगीतकार तानसेन जो कि अकबर के नवरत्नों में से एक थे, उनका स्मारक यहां स्थित है, यह मुगल स्थापत्य का एक नमूना है। तानसेन की स्मृति में ग्वालियर में हर वर्ष नवम्बर में तानसेन समारोह आयोजित होता है।

रानी लक्ष्मीबाई स्मारक यह स्मारक शहर के पड़ाव क्षेेत्र में है। कहते हैं यहांॅ झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की सेना ने अंग्रेजों से लडते हुए पड़ाव डाला और यहांॅ के तत्कालीन शासक से सहायता मांगी किन्तु सदैव से मुगलों और अंग्रेजों के प्रभुत्व में रहे यहांॅ के शासक उनकी मदद न कर सके और वे यहांॅ वीरगति को प्राप्त हुईं। यहांॅ के राजवंश का गौरव तब संदेहास्पद हो गया। इसी प्रकार यहां तात्या टोपे का भी स्मारक है।

विवस्वान सूर्य मन्दिर
यह बिरला द्वारा निर्मित करवाया मन्दिर है जिसकी प्रेरणा कोणार्क के सूर्यमन्दिर से ली गई है।

शिवपुरी ग्वालियर से 112 कि मि दूर स्थित शिवपुरी सिन्धिया राजवंश की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था।यहांॅ के घने जंगल मुगल शासकों के शिकारगाह हुआ करते थे। यहांॅ सिन्धिया राज की संगमरमर की छतरियां और ज्योर्जकासल, माधव विलास महल देखने योग्य हैं। शासकों के शिकारगाह होने की वजह से यहां बाघों का बडे पैमाने पर शिकार हुआ। अब यहां की वन सम्पदा को संरक्षित कर माधव नेशनल पार्क का स्वरूप दिया गया है।

माधव राव सिन्धिया की छतरी शिवपुरी
ओरछायह शहर मध्यकालीन इतिहास का गवाह है। यहां के पत्थरों में कैद है अतीत बुंदेल राजवंश का।

चतुरभुज मन्दिर

ओरछा की नींव सोलहवीं शताब्दी में बुन्देल राजपूत राजा रुद्रप्रताप द्वारा रखी गई। बेतवा जैसी निरन्तर प्रवाहिनी नदी बेतवा और इसके किनारे फैली उर्वर धरा किसी भी राज्य की राजधानी के लिये आदर्श होती।स्थापत्य का मुख्य विकास राजा बीर सिंह जी देव के काल में हुआ, इन्होंने मुगल बादशाह जहांगीर की स्तुति में जहांगीर महल बनवाया जो कि खूबसूरत छतरियों से घिरा है।इसके अतिरिक्त राय प्रवीन महल तथा रामराजा महल का स्थापत्य देखने योग्य है और यहां की भीतरी दीवारों पर चित्रकला की बुन्देली शैली के चित्र मिलते हैं।राज महल और लक्ष्मीनारायण मन्दिर और चतुरभुज मन्दिर की सज्जा भी बडी कलात्मक है।ओरछा एक देखने योग्य स्थान है और ग्वालियर से 119 कि मि की दूरी पर है।

ग्वालियर, शिवपुरी और ओरछा के इस दर्शनीय त्रिकोण से जुडे कुछ और दर्शनीय बिन्दु हैं चन्देरी और दतिया।
बीर सिंह जी देव का महल

दतिया दिल्ली मद्रास मार्ग पर स्थित है। दतिया का महत्व महाभारत काल से जुडा है। राजा बीर सिंह जी देव द्वारा विकसित इस क्षेत्र में उनके बनवाए कुछ ऐतिहासिक महल और मन्दिर हैं। चन्देरी की स्थापना और विकास मालवा के सुल्तानों और बुन्देला राजपूतों द्वारा हुआ। चन्देरी पहाड़ों, झीलों से घिरा एक सुन्दर स्थान है । यहांॅ के देखने योग्य स्थान र्हैं कोषाक महल, बादल महल गेट, जामा मस्ज्दि, शहजादी का रोजा, परमेश्वर ताल आदि। वैसे चन्देरी का महत्व एक प्रमुख शिल्प कला केन्द्र के रूप में अधिक है, यहां की चन्देरी साड़ी और ब्रोकेड विश्वभर में प्रसिद्ध है।

शहडोल के अमरकंटक क्षेत्र में नर्मदा नदी पर स्थित प्रसिद्ध कपिल धारा कुण्ड .जलप्रपात. डिण्डौरी जिले में आता है। कपिल धारा क्षेत्र में पर्यटकों की सुविधा के कपिल धारा कला एम्पोरियम, कैफेटेरिया, जलपानगृह, के साथ घुड़सवारी की सुविधा प्रारंभ की है।
कपिल धारा जलपानगृह में पर्यटकों की रूचि के अनुरूप जलपान की गुणवत्तापूर्ण व्यवस्था कराई है, पर्यटकों को आकर्षित करने एवं उनकी सुविधा के लिये कपिल धारा से नर्मदा प्रपात तक घुड़सवारी की सुविधा भी उपलब्ध करायी गयी है। इससे पर्यटकों का आकर्षण कपिलधारा पर्यटन स्थल में तेजी से बढ रहा है और आमदनी में वृद्धि हो रही है।

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Replies to This Discussion

Bahut hi parichayatmak parytan aalekh.... jaise khud hamane unake sath dhara me bah gaye.... magar aise aalekho me PHOTOGRAPHS kyu nahi? Tanik hamko kaha hota..... ! Abhinandan

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

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