For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज हर इंसान सोते-जागते, उठते -बैठते विकास की बात कर रहा हैं!चार लोग जुटे नहीं, गली-मुहल्लों, चौक चौराहों,..चाय से लेकर पान कि दुकानों पर विकास कि पाठशाला शुरू हो जाती है | विशेषकर जब मौसम चुनाव का हो, ऐसा लगता है जैसे फिजाओं में ही विकास बह रहा हैं, नेताओं के लाउडस्पीकर से तो विकास कि ब्यार सी बहने लगती है | कहीं विकास के दावे होते हैं..कहीं विकास के वादे होते हैं | वादों और दावों के भंवर में उलझा मतदाता, सिर्फ 'विकास' कि सम्भावनायें बार-बार ढूढ़ने कि कोशिश करता हैं....लेकिन न तो वह सफल होता हैं, और न ही असफल होने का अहसास कर पाता हैं | वास्तव में आज हर आम और खास... चाहें वो नेता हो, अधिकारी-पदाधिकारी, पत्रकार, लेखक-विश्लेषक हो ...या, गांव में रोजी-रोटी को तरसता निर्धन गरीब...सभी इस 'विकास' के लिए दौड़ रहे हैं, सबकी यह चाहत है की एक बार 'विकास' को हासिल कर लिया जाये | लोगों की इस जुनूनी दौड़ को देखकर ...एक सवाल मन के एक कोने में उत्पन्न होता है,...जिस विकास की दौड़ में हम जी-जान से लगे हैं, क्या यही वह 'विकास' हैं, जिसमे सर्वांगीण विकास की अवधारणा पूर्ण होती है? क्या यही वह विकास है, जिसमे मानवीय मूल्यों के साथ सम्पूर्ण जीवनशैली का औचित्य सिद्ध होता है?

                                                        जब भी हम मानव जीवन में साकारात्मक परिवर्तन के साथ सम्पूर्ण मानवीय विकास की अवधारणा को समझने का प्रयास करेंगे ..हमें ज्ञात होगा की विकास के कई पक्ष है, ..जैसे सामाजिक विकास, सांस्कृतिक विकास, शैक्षणिक विकास, आर्थिक विकास, तकनिकी विकास, व्यवहारिक एवं वैचारिक विकास, जीवनयापन हेतु ढांचागत बुनियादी विकास..आदि-आदि | इन सभी खण्डों का सम्मिलित और संतुलित रूप ही सही मायनों में व्यक्ति, समाज, और राष्ट्र के लिए सर्वांगीण विकास की संरचना तैयार कर सकता हैं | इनमे से सिर्फ एक या दो खण्डों पर जोर देकर हम मानव जीवन में असंतुलन ही पैदा करेंगे....और ऐसा होना सम्पूर्ण सृष्टि के लिए विनाशक ही साबित होगा | दुर्भाग्य है, बड़ी तेजी से हमारे समाज में ऐसा हो रहा हैं...क्योंकि हम सभी विकास के एक खंड 'आर्थिक विकास' के लिए दौड़े जा रहे हैं | आज रुपयों के पीछे भागती इस दुनिया के लिए विकास के अन्य पक्ष विलुप्त से हो गए हैं! लगातार हम एक ऐसे वातावरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ पैसों को ही सबकुछ मानने वाली सोच पैदा हो रही हैं और अगर हम आज अपने समाज की सही विवेचना कर सकें ..समझना मुश्किल नहीं होगा कि, इस नकारात्मक सोच के दुष्परिणाम भी दिखने लगे है | आज दिन-प्रतिदिन इंसान का नैतिक पतन हो रहा हैं | लगातार हम अपनी सभ्यता-संस्कृति की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं | पास-पड़ोस के लोगों से अशिष्ट व्यव्हार बढ़ता ही जा रहा हैं | हर गुजरते दिन के साथ हम व्यवहारिक अज्ञानता और मानसिक गुलामी की तरफ बढ़ रहे हैं | शिक्षा का तात्पर्य ज्ञानोपार्जन नहीं..धनोपार्जन हो गया हैं, और सिर्फ प्रमाणपत्रों की प्राप्ति ही विद्यालय जाने का उदेश्य बन गया है | पैसों की इस अंधी दौड़ ने हमारी सामाजिकता, नैतिकता, व्यवहारिक मान-सम्मान, सभ्यता-संस्कृति के साथ-साथ सम्पूंर्ण मानवीय मूल्यों को दांव भी पर लगाने का कार्य किया है | विशेषकर इसकी जद में इस देश और समाज का भविष्य, हमारी युवा पीढ़ी और बच्चे हैं, जो खेलने-कूदने और शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में पैसा कमाने के लिए कुछ भी कर-गुजरने वाली सोच से प्रेरित हो रहे हैं | घर में ज्यादा से ज्यादा पैसा लाने वाले को सर्वाधिक सम्मान मिलता हैं, चाहें वो पैसा चोरी-बेईमानी से ही क्यों न हासिल किया गया हो | ईमानदारी की रोटी खाने वाले लोग लगातार हासिये पर जा रहे हैं,..क्योंकि आज ईमानदारी का मतलब ही 'पागलपन' हो गया है | परिवार और समाज में तिरस्कृत होते-होते, वे अपनी नजरों में भी गिरने लगे हैं....ऐसे में मजबूरन ही सही,अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश में , वे भी इस दौड़ का हिस्सा बनने को विवश हो रहे हैं |                                                                                                                                        

                   उपरोक्त हालत हमारे भविष्य की बेहद भयानक तस्वीर पेश करते हैं | एक ऐसे समाज की परिकल्पना होती है..जिसमे पूंजीवाद ही समाजवाद की जगह लेगा | जहाँ आर्थिक विकास की अवधारणा के साथ फल-फूल रहा 'आर्थिक भ्रष्टाचार' अपने चरमोत्कर्ष पर होगा | चोरी, बेईमानी, ठगी, जालसाजी जैसी अनैतिक घटनाएँ खुल्लेआम होंगी | आर्थिक अपराध के नए-नए तरीके इर्जाद होंगे | परिवारवाले पैसा लाने के लिए हर हद तक जाने को प्रेरित करेंगे..और एक ऐसा समय आएगा जब पुत्र पैसे के लिए अपने परिवार वालों का भी क़त्ल करेगा | इंसान पैसे की न मिटने वाली भूख शांत करने के लिए बार-बार अपने पद- प्रतिष्ठा और मूल्यों का सौदा करेगा | इंसानी सबंध भी व्यापारिक सबंध बन जायेंगे | मित्रता की कसौटी पैसा होगी...और प्रेम भी अपना मूल्य मांगेगा | वास्तव में ऐसे समाज की कल्पना मात्र से ही हमारी रूह कांप जाती है ...लेकिन हकीकत तो यही है की हर निकलते दिन के साथ हम इस भयावह हकीकत को आत्मसात करने की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं |

                                                      आज हम सभी को इस विषय पर गहराई से चिंतन करना होगा, इसके लिए हमें पश्चिमी देशों की जीवनशैली से भी प्रेरणा लेने की आवश्यकता है, जो कहने को विकसित राष्ट्र तो हैं, रुपया-पैसा, धन-दौलत बहुत ज्यादा है..लेकिन सभ्यता-संस्कृति कहाँ है? क्या हम उस भारतीय जीवन की कल्पना कर सकते हैं...जहाँ माता-पिता पैसा कमाने की होड़ में अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों को भूल जाएँ? पश्चिमी देशों की हकीकत तो यही है ..आज माताओं को बच्चा पैदा करना भी घाटे का सौदा लगता है, इसलिए किराये की कोख में बच्चे पैदा करने की कोशिश करने लगी हैं ! समझना मुश्किल नहीं की..जिस माता-पिता के पास बच्चे को जन्म देने का समय नहीं...वह बच्चे को बेहतर पालन-पोषण कैसे दे सकते है? १० दिन के बच्चे को 'पालन घरों' में छोड़ कर दौलत कमाने और अय्यासी करने वाले माता-पिता कभी बच्चे के प्रति संजीदा नहीं हो पाते...जिस कारण वह बच्चा भी बड़ा होकर 'माता-पिता' और 'परिवार' का सही मतलब नहीं समझ पाता है | स्पष्ट है की माता-पिता पैसा कमाते हैं..और पैसा ही बच्चों का पालन-पोषण करता हैं..इसलिए बच्चा भी बड़ा होकर पैसा को ही सबकुछ मांनता है | इससे भी सर्वाधिक दयनीय स्थिति पश्चिमी देशों में परिवार के बुजुर्गो की हैं...बेटा-बहु पैसा कमाने की होड़ में माता-पिता की देख-भाल नहीं करते !शर्मनाक तो यह की, रंग बिरंगी जीवनशैली में बुजुर्ग बोझ बन जाते है...इसलिए शरीर से अस्वस्थ हो चुके माता-पिता को धक्के मारकर घर से बाहर निकल दिया जाता है | आज हमारे कई शहरों में खुल चुके 'वृद्ध आश्रम ' पश्चिमी जीवनशैली की ही उपज हैं......हमें सोचना होगा, क्या हम इसके लिए तैयार हैं?

                                                                             ये सही है की आज के भौतिकवादी युग में एक बेहतर जीवनयापन के लिए पैसा बेहद महत्वपूर्ण तत्व है, लेकिन यह कहना पूर्णतः गलत हैं कि, पैसा ही सबकुछ है | हमे इस देश को ऐसी सोच से बचाना होगा कि...सिर्फ धन की प्राप्ति ही विकास है | इसके लिए हमें एक ऐसी वैचारिक संरचना तैयार करनी होगी ..जिससे हमारी आने वाली पीढी आर्थिक विकास के साथ-साथ शैक्षणिक, मानसिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, और व्यवहारिक विकास का महत्व भी समझ पाये...और इसे अपने जीवन में उतार सके | तभी हम सही अर्थों में सर्वांगीण विकास का लक्ष्य प्राप्त कर, राष्ट्र और समाज को एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर पाएंगे | कहते हैं जब तक परिवर्तन का प्रयास हर स्तर से न हो, यह सिर्फ एक शब्द बन के रह जायेगा | आज जरुरत है की हम सभी 'विकास' की सही अर्थ समझें...और समझाएं | विशेषकर हमारे समाज के बुद्धिजीवी, लेखक-विचारक,पत्रकार, समाजसेवी..जो अब तक विकास की घिसी-पिटी परिभाषा का समर्थन करते रहे हैं....आगे आएं और समाज को सही दिशा दिखायें | साथ ही हमारे माननीय नेतागण अगर संभव हो तो ...अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने के प्रयास में ...अफवाहों की आंच न लगाएं तो समाज पर बड़ी मेहरबानी होगी | हम सभी को मिलकर हर हाल में यह तय करना होगा की.....हम एक राष्ट्र और समाज के रूप में विकास की ऐसी रफ़्तार पकड़ें, जो सभी मानकों के अनुरूप हों और जब हम अपने मंजिल पर पहुंचे ..हमारी मर्यादा, हमारे मूल्य, हमारी सभ्यता और संस्कृति जमापूंजी के रूप में हमारे साथ हो | हम सब मिलकर विकास का ऐसा स्वप्न संजोएं...जहाँ लोगों के पास शिष्टता भी होगी, ज्ञान-विज्ञानं भी होगा, स्वास्थ्य भी होगा, सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ ढेर सारा पैसा भी हो |

::-मौलिक व अप्रकाशित-::                                                !!-प्रेम नमन-!!

                                                                              के. कुमार 'अभिषेक'

Views: 923

Replies to This Discussion

आदरणीय के कुमार अभिषेक जी
आपकी लेख वाकई सत्य है!!

आभार मित्र ! नमन | आप मेरे अन्य आलेखों को पढ़े और बेहतर लेखन हेतु अपनी राय प्रकट करें 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service