अधरों बिच बात छुपाय रही इनसे न कही उनसे न कही
पिय प्यार दुलार निहार सखी नयनो बिच धार हमार बही
सब राज कहें नयना पिय से अधरों बिच बात छुपी न रही
यह प्रीतहि रीत अनूठि सखी सब हारहि जीतहि एक सही
चिदानन्द शुक्ल "संदोह "
Posted on November 8, 2012 at 11:30am — 2 Comments
छम छम करे हरी पाँव पैजनि ,, करधनी कटि साजती
चलते ठुमुक नन्द लाल निरखति,, काम कोटिन लाजती
यों लाग माखन देखि मुख हरि ,, काग मन लालच भयो
जूठन मिले जो आज हरि मुख ,, सोच आँगन वह गयो
Posted on November 5, 2012 at 1:42pm — 2 Comments
देह नही सुधि गेह नहीं सुधि ,, छूटि गयो ब्रज धाम जभी से
चैन नही दिन रैन सखे अब ,, शूल लग्यो हिय जोर तभी से
याद सतावत गोपहि ग्वालन ,, माखन खायहु नाहि कभी से
Posted on October 26, 2012 at 10:30am — 3 Comments
नहि भेद लिखे कछु वेद कवी सब गाल बजावत मंचहि पे
निज वेशहि की परवाह करें बस ध्यान धरें धन संचहि पे
अब ब्रम्ह बने सूतहि जब है सब ज्ञान बखान विरंचहि पे
कलि कौतुक देख हसे सुर है गुरु बैठत है अब बेंचहि पे
कलिकाल धरा विकराल बढ़ा सुत मातु पिता नहि मानत है
धन की महिमा सब ओर सखे धनही सबका पहिचानत है
घर की नहि नारिहि मान करे ललचाय पराय अमानत है
सनदोह सहोदर मोह नही अब दारहि का सब जानत है
चिदानन्द शुक्ल "सनदोह"
Posted on October 21, 2012 at 9:00pm — 16 Comments
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