अपने कोमल कान्धो पर
कचरे की बोरी ढोता बचपन
कहीं चाय के ढाबे पर
झूठे बरतन धोता बचपन
कहीं है भोजन की बर्बादी
कहीं भूख से रोता बचपन
तन पर फटे पुराने कपड़े…
Posted on February 13, 2018 at 1:30pm — 7 Comments
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