कैसे कहूँ? दिल में है जो
छोड़ता हूँ, रहता है वो
ढूंढता हूँ लफ्ज़ कोई
कोई बयाँ, बात कोई
.
कहता हूँ, थोड़ा रुकना
चाँद मेरे! ना छुपना ...
.
चलते हुए आगे-पीछे
तेरी दोनों आँखें नीचे
राह तुझे याद तो है
रात तुझे याद तो है
.
वो भी कोई दिन था
हाँ मैं तेरे बिन था ...
.
कैसे कहूँ? इस दिल में है जो ???
.
कुछ समझ में आता नहीं
औ' बता भी पाता नहीं
देखता हूँ, जानता…
Posted on January 22, 2013 at 3:38pm — 2 Comments
पैबस्त जिस्म में हूँ कि दिल में लगा हूँ मैं
मुझको बनाने वाले ने खंजर बना दिया |
अफ़सोस किसी बात का होता नहीं मुझे
पत्थर की तरह मुझको बंजर बना दिया |
चूसा है लहू इस क़दर दुनिया ने खुद अपना
न जाँ बची न गोश्त, बस पंजर बना दिया |
हक औ' सिला के नाम पर सब इस कदर लड़ें
एक दुसरे को इनने तो कंजर बना दिया |
निकला 'कोई नहीं' मगर सपना हैं देखतें
गीली जगह पे स्याह एक मंजर बना…
Posted on January 22, 2013 at 3:30pm — 2 Comments
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