मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं
साहिल से अभी तूफां टकराने हज़ारों हैं
इस उम्र में भी मरता है तुमपे कोई मुझसा
कहते थे कभी हमसे दीवाने हज़ारों हैं
मैंने हैं सजा रक्खे सब दिल में करीने से
जो ग़म के दिये तुमने नज़राने हज़ारों हैं
इस शहर मे भी तेरे हमदर्द तो हैं अपने
अपने तो हैं कम लेकिन बेगाने हज़ारों हैं
कितने हैं…
Posted on April 10, 2015 at 8:30am — 1 Comment
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया
था रब्त मुझसे भी कभी वो मान तो गया
आवारगी वही रही है आशिकी वही
दीवानेपन की इन्तहा को जान तो गया
दिल थे जिगर भी थे कभी वो और ही थे दिन
अब तो मशीनें रह गई इन्सान तो गया
कट तो रहा है वक्त यूं तेरे बगैर भी
जीने का जिंदगी से वो सामान तो गया
मज़हब भी चल रहे हं सियासत की राह पर
ईमान से पहले सा वो ईमान तो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on March 27, 2015 at 7:00am — 1 Comment
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आपका ओबीओ परिवार में हार्दिक स्वागत है.