दिल मेरा यह हाल देख घबराता है
शहर का अब मजदूरों से क्या नाता है।
खून पसीने से अपने था सींचा जिसको
बुरे दौर में दामन शहर छुड़ाता है।
आया संकट कोरोना का देश में जबसे
सड़कों पर लाचार मनुज दिख जाता है।
जिसने चमकाया शहरों को हो लथपथ
आज वही शहरों से फेंका जाता है।
देख दर्द होता है दिल में अब अवनीश
दुनियां को रचता क्या एक विधाता है।
मेहनत करने वाला क्यूँ दर दर भटके
क्यूँ नेता साहब सेठ ऐंठ दिखलाता…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 31, 2020 at 10:34pm — 4 Comments
हम वाणी जन हैं वाणी के
कवि लेखक हैं कलमकार।
मन जिनके निर्मल कोमल से
बहती निर्झर करुणा अपार।
हर तप्त हृदय की तपनक्रिया
का करते हैं सम्मान सदा।
जो दीन-हीन दुखियारे हैं
वे अपने हैं अभियान सदा।
जिनकी वाणी में द्रवित यहाँ
होता है बल नित अबला का।
जिनकी चर्चा में दुःख रहता
है मातृशक्ति हर विमला का।
जिनकी कलमों की धार सदा
निज संस्कृति का सम्मान करें।
जिनकी चिन्ता नित बाबू जी
की परिचर्चा का ध्यान…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 9, 2020 at 7:06pm — 1 Comment
यह हैरत यहाँ ही सम्भव है।
भारत में क्या असम्भव है।
जो लोग यहाँ रोटी को तरसें।
मन उनका भी बोतल से हरषे।
जो राशन फ्री का लाते हैं।
वे दारू पर रकम लुटाते हैं।
कुछ ने तो हद इतनी कर दी।
पूड़ी तक दश में धर दी।
जो कुछ था कमाया रोटी का।
उसको दारू पर लुटा दिया।
क्या खूब है हिम्मत जज़्बा भी
इन अतिशय भूखे प्यासों का।
इन विषम दिनों में भी सबने।
क्या देश हेतु है काम…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 7, 2020 at 7:00pm — 3 Comments
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