रख्त -ऐ -सफ़र तक़दीर को कब मिले महोलत घबरानेसे
अबस कुँजश्क तर्स खाये है इक आफताब के बेबक्त डूब जाने से
कटरा-ब -कतरा-ओ-गिरया हाथ में लेकर दरया बनाता हूँ
जब आती है पुर्सिश गर्म सांसोकी खनक तेरे अफ़साने से
यह सबा ये फ़िज़ा-ओ-तहरतुष बुलाती है शायर-ऐ -फितरत को
फिर मिलाती है दिल-ओ-दीद-ओ-जान आशिया कोई बसाने को
गर वक़्त ज़ालिम है तो तक़दीरभी संग-ओ-दिल सनम है
ऐसे जंगजू-ओ-हालातमें कौन बचाये किसको तड़पानेसे से
बा-गर्दिशे …
ContinueAdded by Preeti Manekar on October 31, 2013 at 8:47pm — 3 Comments
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