पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत…
Added by savita agarwal on October 18, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
हाथ में कुछ बीज
यूँ ही ले के कागजो
पे बोने आ गयी हूँ
विचारो के बीज
सबको कहाँ मिलते हैं
मुझे भी बस एक ही मिला
एक बाग़ लगाना है
इसलिए मुट्ठी
कस कर बंद हैं
इस बीज को वृक्ष
वृक्ष से फिर बीज
इसी तरह
तो लगेगा बाग़
माली ने बताया था
माली वो जो
सबके भीतर हैं
मुझे मिला था
एक रोज जब
उसी ने दिया था
ये एक बीज
''विचारो का बीज ''
"मौलिक व…
ContinueAdded by savita agarwal on October 16, 2013 at 8:30pm — 15 Comments
चाँद जो आया
रात के आँगन में
तारे चमके
चांदनी की गोद में
ठंडी सी हवा
मन को लहराए
ख्वाबो के साये
नींदों को हैं जगाये
सोच रही हूँ
ख़ामोशी इतनी क्यों
मीठी सी लागे
जो गीत धरा गाये
रात गुदगुदाए .........सविता अगरवाल
Added by savita agarwal on October 8, 2013 at 2:21pm — 9 Comments
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