वह अलग थी अब कहानी और है
आज कल की निगहबानी और है
है जगह तो ठीक वैसी ही मगर
बह रही जो पवन पानी और है
वीरता की चरम सीमा है यहाँ
ईश की भी महरबानी और है
चढ़ रहे मंजिल…
ContinueAdded by PRAMOD SRIVASTAVA on October 11, 2016 at 12:00am — 6 Comments
मित्र !
आओ जीवंत बने|
देहधारी चेतना हम
कार्य-कारण को समझ
प्रत्येक क्षण-
स्मित-अधर या
सजल नयन हो
माने
'परम' प्रदत्त है
हर क्षण का सामंत बने|
गत क्षण से
आगत क्षण तक
यूँ गुथ
क्षण मणिमाल आत्म बल जाग्रत करें
कि
अंतर-जलद
संवेदना झर
प्यास हर
उर शांत बने|
आत्म कल्याण करें
क्षण-क्षण लोकहिताय रत
कर्मनिष्ठ जीवन-पर्यंत बने|
मित्र !
आओ जीवंत बने|
प्रमोद श्रीवास्तव, लखनऊ|
(मौलिक और…
Added by PRAMOD SRIVASTAVA on March 28, 2014 at 11:30pm — 4 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |