पता नहीं क्यों मेरा मन॥ फ़िदा हुआ है आप पे॥
कर सिंगार मै कड़ी सामने॥ आप क्यों नहीं ताकते॥
देखो कलियाँ खिल रही है॥ ताक रही है आप को॥
बातो को कैसे सुन रही है॥ समझ रही है बात को॥
अब तुम भी तो समझ गए हो॥ क्यों नहीं फिर भापते॥
आँखों में अब तुम बसे हो॥ तुम ही मेरी जुबान हो॥
तुम तमन्ना हो मेरी॥ तुम ही मेरी शान हो॥
पा के मौसम की आहट॥ दिल को नहीं रोकते॥
Added by shambhu nath on February 15, 2012 at 12:30pm — No Comments
Added by shambhu nath on December 10, 2011 at 3:16pm — 1 Comment
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