कर्तव्य प्रथम इस जीवन का है ,
मात -पिता की सेवा करना।
आशीर्वाद उन्हीं का लेकर ,
जीवन पथ पर आगे बढ़ना।।
कर्तव्य दूसरा जगती पर है ,
मानवता की रक्षा करना।
दया धर्म का भाव सदा ही ,
अपने से छोटों पर रखना।।
कर्तव्य तीसरा यही हमारा ,
देश धर्म के लिये ही जीना।
बलिदानों के पथ पर बढ़कर ,
मातृ -भूमि की सेवा करना।।
"मौलिक व अप्रकाशित "
Added by chouthmal jain on July 7, 2017 at 10:11pm — 3 Comments
एक पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ ,इस रचना का जन्म उस समय हुआ जब कारगिल में युद्ध चल रहा था |
" एक कवि की पाती वीर जवानों के नाम "
देश के वीर जवानों प्यारे , मेरी पाती नाम तुम्हारे |
नहीं पहुँचती कलाम ये मेरी , वहाँ खड़ी बन्दूक तुम्हारी ||
नहीं लिखी है ये शाही से , लिखी गई है जिगर लहू से |
जमी हमारी है ये थाती , हो इस दीपक की तुम बाती ||
देश के दुश्मन आए तो , खून उनका तुम बहा देना |
गोली आए दुश्मन की तो , छाती मेरी भी ले लेना ||
कतरा-कतरा…
Added by chouthmal jain on February 10, 2014 at 11:30pm — 6 Comments
परिश्रम है पारस पत्थर , जीवन को सोना बनाता है।
मेहनत करता जो जीवन में, सबकुछ वह पा जाता है।।
परिश्रम से एक ही पल में ,भाग्य दास बन जाता है।
लक्ष्मी उसके चरण है छूती ,जो मेहनत की खाता है।।
परिश्रम के बल पे टिकी है ,ये दुनियाँ तो सारी।
मेहनत से जिसने आँख चुराई ,ठोंकर उसने खाई।।
गीता के उपदेश ने भी तो ,कर्म की रीत सिखाई।
पाया उसने सभी है जिसने ,कर्म से प्रीत लगाई।।
मेहनत जो भी करता है वो , दुःख नहीं कभी पाता है।
पत्थर खाये यदि मेहनती ,वो भी हजम कर…
Added by chouthmal jain on February 6, 2014 at 3:00am — 3 Comments
"स्वार्थ और प्यार "
मानव बिकाऊ है जमी पर , मानवता की आड़ में।
ईमान बिकता है यहाँ पर , धर्म जाए भाड़ में ।।
भ्रष्टाचार का खू लगा है ,हर मानव की दाड़ में।
ऐसा बिगाड़ा इंसा जैसे ,बच्चा बिगड़ता लाड़ में।।
स्वार्थ की खातिर बेचा देश , दुनियाँ के बाजार में।
वतन किया नीलाम देखो ,मानव के सरदार ने।।
प्यार कभी न बजता यारों ,खुदगर्जी के साज में।
और कभी न स्वार्थ टिकता ,दिलबर के दरबार में।।
इन दोनों का साथ तो जैसे ,जल पावक के साथ…
Added by chouthmal jain on January 14, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
ये कैसा नव शोणित है , जिसमे जीवन रस घोल नहीं |
जीवन बगिया में महके ऐसा , योवन सौरभ का शोर नहीं ||
सरबस लूटे कोई फिर भी , जिस रक्त में कोई उबाल न हो |
वह खून नहीं जल धारा है , जिसमें कोई मलाल न हो |
जो देश धर्म के लिए जिए ,वह जीवन है वह जीवन है |
जो मानवता के लिए मरे , वह मानव है वह मानव है ||
मानवता को मानव से यों , हमने ही तो दूर किया |
दानवता को लाकर के यहाँ , हमने ही मसहूर किया ||
देवत्व इसी से लुप्त हुआ , और दिल भी दया से रिक्त हुआ |…
Added by chouthmal jain on December 6, 2013 at 12:00am — 5 Comments
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