परिश्रम है पारस पत्थर , जीवन को सोना बनाता है।
मेहनत करता जो जीवन में, सबकुछ वह पा जाता है।।
परिश्रम से एक ही पल में ,भाग्य दास बन जाता है।
लक्ष्मी उसके चरण है छूती ,जो मेहनत की खाता है।।
परिश्रम के बल पे टिकी है ,ये दुनियाँ तो सारी।
मेहनत से जिसने आँख चुराई ,ठोंकर उसने खाई।।
गीता के उपदेश ने भी तो ,कर्म की रीत सिखाई।
पाया उसने सभी है जिसने ,कर्म से प्रीत लगाई।।
मेहनत जो भी करता है वो , दुःख नहीं कभी पाता है।
पत्थर खाये यदि मेहनती ,वो भी हजम कर जाता है।।
काँटों पर सोकर भी वह तो ,सुख मखमल सा पाता है।
सूखे चने जो खाये मेहनती , स्वाद आम का आता है।।
भाग्य नहीं है उनका साथी ,जो है आलसी भाई।
नफरत उससे होती जिसने ,बिन मेहनत की खाई।।
आया पास जिसके आलस्य ,नहीं सफलता उसने पाई।
जो चुराए मेहनत से जी ,जीवन नर्क बन जाई।।
मौलिक व अप्रकाशित
चौथमल जैन
Comment
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हार्दिक बधाई आपको////////// सादर
अपने भाव या विचारों को प्रकट करने के लिए कविता लिखना ही जरूरी नहीं होता, उसे गद्य में भी लिखा जा सकता है!
किसी 'लिखे' के कविता होने के लिए उसमें कवित्त होना आवश्यक है!
आपकी इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
परिश्रम है पारस पत्थर , जीवन को सोना बनाता है।
मेहनत करता जो जीवन में, सबकुछ वह पा जाता है।।.....बहुत सुंदर विचार.आदरणीय चौथमल जी. हार्दिक बधाई.
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