बिन पायल के,
साज बिना ये,
बाज रहा संगीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
राग बसंती, तान-तराने
सुमधुर गायन सकल घराने।
ये सोच रहा अनजाने,
मेरे ही मनमीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
सांझ-सबेरे प्रियतम मेरे
तरसाओ न चित-चोर चितेरे।
नयना बरसे अश्रु मेरे,
बिन प्रियतम ये प्रीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
मधुबन की ये संगत सारी
बिन पायल सब बाजी हारी।
अब कौन कहे मतवारी,
हारकर ये जीत।
देखो कैसे-कैसे गीत।।
"मौलिक व…
ContinueAdded by BS Gauniya on October 8, 2017 at 8:15am — 6 Comments
मेरे घर, मेरे शहर, मेरे लफ्जों को
एक आहट सी लगी,
कि कोई उन्हें छूकर चला गया..
वो ठंडी सी छुवन,
एक भंवर सी कम्पन...
लगा पहाड़ों से कोई
मंदाकिनी आ गयी..
लगा मेरे लफ्जों को,
एक आवाज सी मिल गयी..
जैसे मेरे गीतों को,
कोई छूकर चला गया...
उन्हें कहें भी,
क्या कहें..
किस हक़ से कहें ?
कि दीदार तो जरूरी था..
इन्तजार तो जरूरी था,
या वो ऐतबार भी जरूरी था..
जैसे मेरा कोई अपना हो,
जो छूकर चला…
Added by BS Gauniya on September 10, 2017 at 2:00pm — 5 Comments
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