For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुँह छोटा पर बात बड़ी है।

पेट बडा है, भूख  बड़ी  है,

लोभ भरा है, सोच सड़ी है।

 

सत्ता में हो,  अपनी  सोचो,

जनमानस की किसे पड़ी है।

 

अपराधी को सजा नहीं है,

फ़ासीं जनता को ही पड़ी है।

 

जब तुम चाहो, आग लगा दो,

देश नहीं जैसे फ़ूलझड़ी है।

 

धन्धे तुमने बदल दिए पर,

 ठीए वहीं है, वो ही थड़ी है।

 

एक माल के दो-दो भाव,

कहीं किलो तो कहीं धड़ी है।

 

 सत्ता जब भी अतिवादी थी,

जनता उससे स्वयं लड़ी है।

 

 

नेता जी ये ग़ाँठ बाँध लो,

मुँह छोटा पर बात बड़ी है।

-सुभाष-

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 5:53pm

दिल से निकली ग़ज़ल कही है,
लोक क्रांति की यही कड़ी है |

नेता सबको मूर्ख बनाते,
आश्वासन की लगी झड़ी है |

बहुत बधाई तुमको भाई,
राजनीति पर चली छड़ी है|

Comment by Abhinav Arun on October 2, 2011 at 1:23pm

 

एक सशक्त हस्तक्षेप ..ताज़ा दौर की शानदार बयानी करती ग़ज़ल... बधाई !!

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2011 at 6:48pm

भावों के संदर्भ में कहते हैं कि जब उसकी सांद्रता बढ़ जाती है तो यथोचित माध्यम का लबादा ओढ़े कुछ न कुछ बरबस निकल आता है, जो अनुशासित और सधा हुआ हो तो स्वीकार्य चमत्कार पैदा करता है. 

सुभाषजी,  आपकी इस छोटी बह्र की ग़ज़ल के साथ ऐसा ही कुछ है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें.  प्रत्येक शे’र सहजबयनी करते हुए दीखते हैं और बड़े ठठे हुए-से हैं. पुनश्च बधाई व शुभेच्छाएँ. 

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 27, 2011 at 11:55pm
//पेट बडा है, भूख बड़ी है,
लोभ भरा है, सोच सड़ी है।//
वाह बहुत खूब, शानदार मतला निकाला है, सही कहा मित्र यह भूख बहुत बड़ी है शायद पेट से भी बड़ी |

//सत्ता में हो, अपनी सोचो,
जनमानस की किसे पड़ी है।//
बिलकुल यथार्थ, अधिकतर राजनेता अब ऐसे ही है, और जनता हर बार ठगी जाती है, ठगने वाले बदलते रहते है |

//अपराधी को सजा नहीं है,
फ़ासीं जनता को ही पड़ी है।//
सही बात, किसी न किसी बहाने आम आदमी तो रोज मरता है और रोज जिता है |

//जब तुम चाहो, आग लगा दो,
देश नहीं जैसे फ़ूलझड़ी है।//
भाई हाथ तो इसी आग में सेकना है, खुबसूरत शेर |

//धन्धे तुमने बदल दिए पर,
ठीए वहीं है, वो ही थड़ी है।//
वाह वन्धु वाह !

//एक माल के दो-दो भाव,
कहीं किलो तो कहीं धड़ी है।//
बुलंद शेर |

//सत्ता जब भी अतिवादी थी,
जनता उससे स्वयं लड़ी है।//
चरम पतन का कारण है, शायद अभी चरम नहीं पंहुचा |

//नेता जी ये ग़ाँठ बाँध लो,
मुँह छोटा पर बात बड़ी है।//
आय हाय हाय, अंतिम शे'र में आपने पूरी ग़ज़ल का निचोड़ रख दिया भाई जी,

सुभाष तेरहान जी छोटी बहर पर अपेक्षाकृत कठिन काफिया ड़ी को बहुत ही कुशलता से निभाया है, सभी शेर बुलंद ख्यालात से लबरेज है, दाद कुबूल करे |
Comment by Anwesha Anjushree on September 27, 2011 at 4:42pm

Kya baat..yatharth ka darshan...keep writing :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service