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पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित दोहे

वृक्षों को मत काटिए, वृक्ष धरा शृंगार.

हरियाली वसुधा रहे, बहे स्वच्छ जलधार..

 

नदियाँ सब बेहाल हैं, इन पर दे दें ध्यान.  

कचरा निस्तारित करें, बन जाएँ इंसान..

 

जैविक खेती है भली, धरती हो आबाद. 

गोबर को अपनाइए, बचे रसायन खाद..

 

अदरक गमलों में उगे, उगें टमाटर लाल.

छत पर खेती भी करें, जीवन हो खुशहाल..

 

इसे आज ही त्यागिये, कभी न होती नष्ट.

पोलिथिन या प्लास्टिक, धरती को दे कष्ट..

 

कीट नाशकों का ज़हर, वार करे यह गुप्त.

पशु पक्षी बेहाल हैं, आज हुए कुछ लुप्त..

 

दूध पिलाते जो हमें, वही बने आहार.

इनसे कैसी दुश्मनी, क्यों होता संहार..

--अम्बरीष श्रीवास्तव  

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Comment

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Comment by ganesh lohani on September 17, 2012 at 3:33pm

Comment by ganesh lohani on August 9, 2012 at 1:45pm


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 8, 2012 at 8:57pm

भाई गणेशलोहानी जी के चित्र ने साबित कर दिया कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत .. !!

वाह ! बहुत ही प्रेरणादायी चित्र हैं साथ ही साथ दोहों को संतुष्ट करते हुए भी हैं. भाई गणेशजी बहुत खूब ! 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 8, 2012 at 8:26pm

स्वागत है आदरणीय गणेश लोहानी साहब ! आपका हार्दिक आभार मित्र ! खूबसूरत चित्र पोस्ट करने के लिए हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 8, 2012 at 8:25pm

स्वागत संजय आपका, सुंदर अपना देश.

हरी भरी धरती रहे ,  सुधरे यह परिवेश.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 8, 2012 at 8:22pm

स्वागत है भाई संदीप जी ! हार्दिक आभार मित्रवर !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 8, 2012 at 8:22pm

प्रणाम ! आदरणीय लक्ष्मण  प्रसाद जी ! हार्दिक आभार मित्र !

Comment by ganesh lohani on August 8, 2012 at 1:53pm

अदरक गमलों में उगे, उगें टमाटर लाल.

छत पर खेती भी करें, जीवन हो खुशहाल

आदरनीय अम्बरीश जी सादर नमस्कार बहुत सुन्दर दोहों की रचना आपका पर्यावरण प्रेम तो झलक ही रहा साथ ही बहुउपयोगी भी हैं | आपके आदेश का पालन कर मेनें भी अपने छत की छोटी बगिया में

भिन्डी तोरी गमले में उगाये , लौकी बेंगन होरही तेयार

हर रोज पुदीना मिलता घर है खुशहाल

Comment by ganesh lohani on August 8, 2012 at 1:42pm

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on August 2, 2012 at 7:04pm

धरती खोती जा रही, पल पल अपना वेश.

हर दोहा है दे रहा, हितकारी सन्देश

खुबसुरत छंदमय आह्वान में आपके साथ आदरणीय अम्बरीश भईया...

सादर.

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