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समाचार का बनाना

(खुशवंत सिंह का लेख पढने के बाद कि सिक्खों ने पंजाब के समराला शहर में १९४७ में गिरी मस्जिद बनाई ...पर मेंडिया वालो ने इसे समाचार नहीं बनाया .)

कुत्ता ...
जब आदमी को काटे
तो समाचार नहीं बनता
पर ...आदमी
जब कुत्ता को काटे
तो समाचार बन जाता है ॥

जब ..किसी से प्यार से बोलो
तो समाचार नहीं बनता
पर जब बे -अदब से पेश आओ
तो समाचार बन जाता है ॥

शादी की बातें
समाचार नहीं बनती
पर तलाक की हवा भी
समाचार बन जाती है ॥

जब किसी से उधार मांगो
तो समाचार नहीं बनता
पर जब लौटाने की बात आती है
तो समाचार बन जाता है ॥

मस्जिद को बनाओ
तो समाचार नहीं बनता
पर जब मस्जिद को गिराओ
तो समाचार बन जाता है ॥

कोई जन्म ले
तो समाचार नहीं बनता
पर जब कोई खुदकुशी करे
तो समाचार बन जाता है ॥

जब नेता , जनता को धोखा दे
तो समाचार नहीं बनता
पर जब, जनता नेता को धोखा दे
तब समाचार बन जाता है ॥

--------बबन पाण्डेय

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Comment by Admin on June 16, 2010 at 8:34am
जब नेता , जनता को धोखा दे
तो समाचार नहीं बनता
पर जब, जनता नेता को धोखा दे
तब समाचार बन जाता है ॥
बहुत बढ़िया बब्बन जी , बिलकुल धो देने वाली अंदाज मे आपने ये काव्य रचना की है, आप अपने उद्देश्य मे सफल है , जो कहना चाह रहे है वो बड़े ही ससक्त तरीके से कह दिया है, बधाई स्वीकार करे,
Comment by satish mapatpuri on June 14, 2010 at 3:03pm
मस्जिद को बनाओ
तो समाचार नहीं बनता
पर जब मस्जिद को गिराओ
तो समाचार बन जाता है ॥

कोई जन्म ले
तो समाचार नहीं बनता
पर जब कोई खुदकुशी करे
तो समाचार बन जाता है ॥
बब्बन जी, बधाई. पीतपत्रकारिता पर बड़ा गहरा व्यंग है.
Comment by Sanjay Kumar Singh on June 13, 2010 at 8:55pm
wah bahut hi khubsurat kavita baban jee ney likha hai, aur wospar ganesh jee ki chatni soney par suhaga, Thanks,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 13, 2010 at 6:32pm
कुत्ते का काटना,
नेताओ का धोखा देना,
एक जैसी प्रकृति है,

शादी की बाते ,
प्यार की बोली,
बच्चे का जन्म,
नैसर्गिक क्रिया है,

उधार का माँगना,
मस्जिद बनाना,
सामाजिक विधा है,

इसलिये तो यारो ,
खबर नही बनती,

खबर तो बनती है,
नेताओ के कुत्तागिरि से,
धर्म मे नेतागिरी से,
मानव की मजबूरी से,

बहुत बहुत बधाई बब्बन भईया, बहुत सुन्दर लिखे है, अच्छी अभिव्यक्ति है, मैने थोड़ी आप की कविता पर गुस्ताख़ी की है, क्षमा कर दिजियेगा,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 13, 2010 at 5:11pm
Badi sadgi se bilkul satya baat kahi apne Baban bhai. Lekin ek baat hai, aur kisi bhi baat ki khabar banti hai to bana karey - lekin kavita kabhi akhbar ki khabar nahi ban'nee chahiye.

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