For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पीड़ा तू आ (कविता) : कांता रॉय

पीड़ा तू आ
आ तेरा श्रृंगार करूँ
शब्दों के फूलों से
टूटे अंतरंगों को सजा लूँ
पीड़ा तू आ
तुझे हृदय में बसा लूँ

बौने मन की कद- काठी पर
प्रीत की लम्बी बेल चढ़ाई
लतर - चतर कर उलझ गई
ये कैसी मैने खेल रचाई
पीड़ा तू आ
तुझे पलकों पर बिठा लूँ

गर्द -गर्द धूमिल- सी चाँदनी
चाँद का रूप कितना मैला
रौंद कर सपनों को
टिड्डों का देखो दल निकला
पीड़ा तू आ
तुझे अधरों का सुख दूँ

सागर की उन्मुक्त लहरें
बदली का यूँ ही घिरना
पत्थर जो गल कर बर्फ बने
गर्म उँसासों का जम जमकर जमना
पीड़ा तू आ
तुझे मन महुए का नशा करा दूँ

वह कदंब का फूल शस्त्र-सा
शूल सा चुभता भ्रष्ट बसंत
गर्मी है अब सर्द-सर्द-सी
धुप झुलस कर हो गई पस्त
पीड़ा तू आ
तुझे इच्छाओं का माँस खिला दूँ

हड्डियों के ढाँचे में
कर्ज़ कर्ज़ डूबा स्वार्थ
अंधेरों का बढ़ता आकार
घट कर पलछिन हुआ उजास
पीड़ा तू आ
तुझे वाणी की आँख दूँ ॥

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1080

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:47pm
//कास प्रभु कीजै तोरी सेव
21 11 22 21 21 =15 मात्रा

क्या यह मात्रा गणना सही है?//---- जी हाँ, यह मात्रा की गिनती सही हुआ है आपके द्वारा।( प्र =१ ) की मात्रा एक ही गिनी जाती है।सादर।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:44pm
आभार आपका आदरणीय सुरेश जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:44pm
आभार आपका हृदय से आदरणीय शिज्जु "शकूर"जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:43pm
आभार आपका आदरणीय ब्रजेश जी रचना पर उपस्थिती के लिये।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:42pm
आदरणीय रामबली जी,यहाँ अतुकांत का ही प्रयास किया है मैने। रचना का भाव को पसंद करने के लिये हृदय से आभार व्यक्त करती हूूँ।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:40pm
आदरणीया राजेश जी,आपके द्वारा सराहना और उचित मार्गदर्शन पाना ,दिल को सुख दे जाता है।आपने बहुत बढ़िया मार्गदर्शन दिया है, मै संशोधन करती हूूँ।ऐसे ही सदा साथ बनाये रखियेगा। आभारी रहूँगी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:36pm
पीड़ा जीवन का श्रृंगार है बिना पीड़ा किसका संसार है? आपने पीड़ा के मर्म को ग्रहण कर प्रतिक्रिया दिये है जो मेरे मनोबल को बढ़ा गया है। आभार आपका हृदय से आदरणीय विजय जी।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:34pm
आपको तहेदिल आभार आदरणीय केवल जी। आपको रचना अच्छी लगी,रचनाकर्म सार्थक हुआ।
Comment by kanta roy on September 4, 2016 at 2:32pm
रचना के मर्म को संदर्भित करने के लिये हृदय से आभार आपका आदरणीया प्रतिभा जी।
Comment by kanta roy on August 4, 2016 at 12:16pm
मेरा उद्वेलित मन रचनाकर्म के लिये सदा से कारण बना है और आपने इस पीड़ा के मर्म को जाना है। मेरी रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर जीवित हुई है। आभार आपका आदरणीय सुशील जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय जयहिंद  जयपुरी जी सादर नमस्कार जी।   ग़ज़ल के इस बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई…"
20 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। वाह वाह बेहद शानदार मतला के साथ  शानदार ग़ज़ल के लिए दिली…"
24 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी सादर नमस्कार जी। क्या ही खूबसूरत मतला हुआ है। दिली दाद कुबूल कर जी।आगे के अशआर…"
28 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतनी बारीकी से ग़ज़ल को देखा  आपकी इस्लाह…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब! ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई हो। मतला यूँ देखिए…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service