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आईना टूट न जाए मग़र ये ध्यान रहे----------ग़ज़ल

2122 1122 1212 112

तुम हसीं हो ये भले ही तुम्हें गुमान रहे
आईना टूट न जाए मग़र ये ध्यान रहे

पाँव मन्ज़िल की तरफ रख सँभल सँभल के ज़रा
एक दिल भी है तेरी राह में ये ध्यान रहे

तू ज़माने से रहे बे-ख़बर नहीं कहता
किन्तु इस दिल के भजन पर भी तेरा कान रहे

तेरी साँसों के हर-इक गीत में रहूँ शामिल
ताल सुर नाद ये पंकज ही तेरी तान रहे

पूछ मत नींद सुकूँ का हिसाब आशिक़ से
आशिक़ी कैसी अगर ध्यान में ज़ियान रहे

जान का यार न पूछो हिसाब सैनिक से
आशिक़ी कैसी अगर ध्यान में ज़ियान रहे

यूँ ही मुनियों नें विधाता नहीं लिखा तुम को
शेष जब कुछ न रहे तब भी तू नदान रहे

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 9, 2019 at 11:19am
आदरणीय बाऊजी प्रणाम
सुधारता हूँ
Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 11:29am

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'यूँ ही मुनियों नें विधाता नहीं लिखा तुम को
शेष जब कुछ न रहे तब भी तू नदान रहे'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष देखें 

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