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अपनों से जुदा अपने,होते हैं कहां प्रियवर।
अनमोल रतन धन,खोते हैं कहां प्रियवर॥


नजरों से दूरी तो,दूरी ही नहीं होती।
दिल से अलग अपने,होते हैं कहां प्रियवर॥


आंखों में आंसू हैं,अपनों के लिए ही हैं।
गैरों के लिए हम,रोते हैं कहां प्रियवर॥


जीवन के दो राहे पर,मिलते हैं बिछड़ते हैं।
सदियों के लिए कोई,मिलते हैं कहां प्रियवर॥


तुम्हें याद सुनो मेरी,आये या न आये।
तेरे याद में हम शब भर,रोते हैं कहां प्रियवर॥


राह का इक पत्थर,समझो न मुझे फेंको।
पारसमणि सबको,मिलते हैं कहां प्रियवर॥


आज सजी महफिल,स्वागत है सबका।
ऐसे हंसी महफिल,सजते हैं कहां प्रियवर॥


बन फूल सदा महको,हो जग में नाम तुम्हारा।
पतझर के लिए गुल,खिलते हैं कहां प्रियवर॥

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 4, 2012 at 1:00pm

Vindhyeshvari ji mere khayaal se yadi bahar dosh aa raha hai to vyaakaran dosh door karne ke liye aap paras mani shabd ko badal kar paaras nag kar sakte hain main bhi koi ghazal ki ustaad nahi hoon parantu thodi is truti par dhyaan gaya isliye kah rahi hoon baaki yahaan manch par to ghazal ke sammaaniye guru baithe hain unse paramarsh karen to meri shanka bhi door ho jaayegi.main bhi aajkal inse bahut kuch seekh rahi hoon.  

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 4, 2012 at 12:09pm
आभार संदीप जी।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 4, 2012 at 12:07pm
आभार राजेश कुमारी जी!अभी सीखने की
प्रक्रिया में हूं।लेकिन अगर मैं
"पारसमणि सबको मिलते है कहां प्रियवर"
में 'मिलते' को 'मिलती' कर लूं तो क्या
गजल में बह्र का दोष नहीं आएगा।
ठीक ऐसे ही-
"ऐसे हंसी महफिल सजते हैं कहां प्रियवर"
में भी 'सजती' करने पर क्या बह्र दोष नहीं
आएगा।और अगर बह्र दोष आता है तो कैसे
दूर किया जा सकता है,क्योंकि लाइव
मुशायरे में प्रभाकर जी ने कहा था कि
अगर मैं गजल बह्र में कह रहा हूं तो बाकी
के मिशरे बह्र में कहने पर विवश होता हूं।
जैसे-
'अपनों से जुदा अपने होते हैं कहां प्रियवर।
अनमोल रतन धन खोते हैं कहां प्रियवर॥'
में बह्र 'होते','खोते' लिख रहा हूं तो बाकी के
मिशरों में 'सोते','रोते','होते', आदि में गजल
कहने के लिए मजबूर हूं।
कृपया प्रबोध देने का कष्ट कीजिएगा।
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 4, 2012 at 10:07am

भावनाओं का सशक्त सम्प्रेषण त्रिपाठी जी| बधाईयां|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 4, 2012 at 8:20am

राह का इक पत्थर,समझो न मुझे फेंको।
पारसमणि सबको,मिलते मिलती  हैं कहां प्रियवर॥(kyunki parasmani ko aap striling me lenge)
आज सजी महफिल,स्वागत है सबका।
ऐसे ऐसी  हंसी महफिल,सजते सजती  हैं कहां प्रियवर॥(kyunki upar ki laain ke anusaar ek vachan mahfil me yesi aur sajti aayega yadi aap mahfil ko bahuvachan me kahna chahte hain to mahfilen aayega.)

aapke ashaar aur bhaav bahut sundar hain bas thode se sudhaar kar lijiye .

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