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अब नहीं आयेगी बेटी

बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे, 
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे... 


क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे... 

आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां, 
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे... 

जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर, 
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे... 

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां, 
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे... 

देखो क्या उसूल है मुजरिम की भी होती पैरवी ,
ऐसे माहौल में तो बस मुजरिम बढ़ाते जाओगे...

निकली थी बेख़ौफ़ सी घर से वोह जीने जिंदगी,
लुट गयी अब कैसे उसे जीने की राह दिखाओगे... 

अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है, 
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे... 

अब न आयेगी कभी इस जमीं पर बेटियां, 
अपनेपन ममता को एक दिन तरस जाओगे...

मौलिक एंव अप्रकाशित 

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Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:43pm

दिव्या जी 

लड़कियों पे जितने अत्याचार कम करने की बात चलती है अत्याचार ओर भी बढते जा रहे है .. न जाने कब ये आग बुझेगी ओर मासूम कब चैन से जियेगी 

आपके विचारों एक लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:42pm

एक बार फिर से धन्यवाद जितेंदर जी ... आभार 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 12:36pm
"सादर आभार " आदरणीया रोशनी जी, आपने सच कहा ' यही बिडम्वना ही है..लोग अपनी बेटियों के लिए हर तरह के सुख, सुविधा का ख्याल रखते है, परन्तु जो दूसरों की बेटी है ,वो भी तो वैसे ही है जैसे आपकी बेटी है।...सीधी बात " हम अनमोल, दूसरा बिनमोल का...।"शक्रिया आदरणीया ..हार्दिक शुभकामनाऐं
Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 12:35pm

रौशनी जी, 
लड़कियों पे बढते अत्याचारों पे करारी चोट करती रचना 
जाने जन  चेतना कब आएगी 
अच्छी रचना के लिए साधुवाद 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:25pm

धन्यवाद श्याम नारायण जी 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:24pm

आ० जवाहर जी 

चाहे लड़कियां कितने भी आसमान छु ले मगर बेटे की चाह की जो हमारे समझ की सोच है वोह नहीं बदल सकती ... फर्क कल भी था ओर आज भी है .. ओर आज जिस तरह की घिनोनी हरकत लड़कियों के साथ हो रही है .. ऐसे में कौन बेचारी को ऐसी डर भरी जिंदगी देना चाहेगा ... समस्या बढती जा रही है .. इतनी तरक्की होने के बावजूद भी ..

आपके अमूल्य विचारों के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:20pm

आ० आबिद जी नमस्कार 

मानसिकता बदले बिना कुछ अच्छा होना मुश्किल है .... रचना पर सहमति के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:19pm

आ ० गीतिका जी 

तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:19pm

आ ० कुंती जी नमस्कार 

आज हम सब बस मोमबती लेकर विरोध कर रहे है .. मगर क्या इस विरोध को कोई परिणाम निकला है कभी ... मोमबती जलना आसान है मगर अपनी मानसिकता को बदलना शायद मुश्किल ... काश की अब भी सब जागे ओर बेटियों के प्रति होते जुल्म को रोके 

आपके विचार के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:17pm

आ०  जितेंदर जी यही तो आज के समाज की विडम्बना  है अपनी हर चीज़ प्यारी है मगर दूसरों के ऊपर ऊँगली उठाते हम एक पल भी  नहीं सोचते .. अपनी इज्जत प्यारी ओर की मजाक ..रचना की सराहना के लिए आभार 

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