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लोभ कपट को त्यागकर ,रखो परस्पर नेह !
शुद्ध विचारों से करो ,शीतल अपनी देह !!१

याचक भी राजा बना ,राजा मांगे भीख !
काल चक्र से भी तनिक ,ले लो भाई सीख !!२

इतना तुम क्यूँ रो रहे ,भाई घोंचू लाल !
किसने पीटा आपको ,गाल दिखे हैं लाल!!३

अधर तुम्हारे पुष्प से ,मेरे प्यासे नैन !
जिस दिन तुम दिखती नहीं ,रहता हूँ बेचैन !!४

उन्हें देख जलने लगा ,मन का बुझा चिराग !
शनै: शनै: अब फैलती ,पूरे तन में आग !!५

विरह आग में जल रही ,नयनों में था नीर !
अपलक राह निहारती ,विरहन तृषित अधीर !!६

चंचलता जिसमें भरी ,खुजली करता जाय !
वानर का बस काम ये, छीन झपट कर खाय !!७
*********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by विजय मिश्र on October 26, 2013 at 4:41pm
सभी दोहे एक से बढकर एक हैं मगर छः का मिज़ाज जुदा है और हर तरह से खास है . आभार राम शिरोमणिजी .
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 26, 2013 at 3:20pm

सुंदर दोहे बधाई राम शिरोमणिजी। भावपूर्ण दोहों के बीच  तीसरे  दोहे की जरूरत क्या थी । 

Comment by Sarita Bhatia on October 26, 2013 at 12:08pm

अलग अलग सन्देश लिए सुन्दर दोहे भाई राम जी ,हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 26, 2013 at 11:20am

लोभ कपट को त्यागकर ,रखो परस्पर नेह !
शुद्ध विचारों से करो ,शीतल अपनी देह !!१..........सुंदर संदेशप्रद दोहा

अधर तुम्हारे पुष्प से ,मेरे प्यासे नैन !
जिस दिन तुम दिखती नहीं ,रहता हूँ बेचैन !!४...........प्रेम को समर्पित

विरह आग में जल रही ,नयनों में था नीर !
अपलक राह निहारती ,विरहन तृषित अधीर !!६..........विरह वेदना भी

चंचलता जिसमें भरी ,खुजली करता जाय !
वानर का बस काम ये, छीन झपट कर खाय !!७...........मजेदार

आदरणीय रामभाई, मजा आ गया, स्वादिष्ट खिचड़ी हुयी :))))))))))))))  बधाई स्वीकारें

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