उम्रभर।
मोतबर।।
मुश्किलें।
तू न डर।।
ताकती।
इक नज़र।।
धूप में।
है शज़र।।
वो तेरा।
फिक्र कर।।
रात थी।
अब सहर।।
इश्क़ ही।
शै अमर।।
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on June 19, 2018 at 8:29am — 10 Comments
जो तेरे आस पास बिखरे हैं।।
वो मेरे दिल के सूखे पत्ते हैं।।
काग़ज़ी फूल थे मगर जानम।।
तेरे आने से महके महके हैं।।
याद आती है उनकी जब यारों।
मुझमे मुझसे ही बात करते हैं।।
बदली किस्मत ज़रा सी क्या उनकी।।
वो ज़मीं से हवा में उड़ते है।।
जिनके ईमान ओ अना हैं गिरवी।।
वो भी इज़्ज़त की बात करते है।।
'राम' बच के रहा करो इनसे।
ये जो कातिल हसीन चेहरे है।।
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 29, 2018 at 11:48am — 8 Comments
ख्वाब थे जो वही हूबहू हो गए।
जुस्तजू जिसकी थी रूबरू हो गए।।
इश्क करने की उनको मिली है सज़ा।
देखो बदनाम वो चार सू हो गए।।
फ़ायदा यूँ भटकने का हमको हुआ।।
खुद से ही आज हम रूबरू हो गए।।
बेचते रात दिन जो अना को सदा।
वो ज़माने की अब आबरू हो गए।।
आप कहते न थकती थी जिनकी ज़ुबां।
आज उनके लिए हम तो तू हो गए।।
मौलिक /अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on May 23, 2018 at 12:21pm — No Comments
मुंतजिर हूँ मैं इक जमाने से।
आ जा मिलने किसी बहाने से।।
उनकी गलियों से जब भी गुजरा हूँ।
ज़ख़्म उभरे हैं कुछ पुराने से।।
दिल की बातें ज़ुबां पे आने दो।
कह दो! मिलता है क्या छुपाने से।।
मेरे घर भी कभी तो आया कर।
ज़िन्दा हो जाता तेरे आने से।।
इश्क़ की आग राम है ऐसी।
ये तो बुझती नहीं बुझाने से।।
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on May 21, 2018 at 11:30pm — 8 Comments
मुझे देख उनको लगा,हुआ मुझे उन्माद।।
नयनों से वाचन किया,अधरों से अनुवाद।।1
अभी पुराने खत पढ़े,वही सवाल जवाब।
देख देख हँसता रहा,सूखा हुआ गुलाब।।2
मन को दुर्बल क्यों करें,क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा,आशा का आह्लाद।।3
विविध रंग से हो भरा,भावों के अनुरूप।।
स्नेह इसी अनुपात में ,मैं प्यासा तुम कूप।।4
करुणा प्यार दुलार औ,इक प्यारी सी थाप।
माँ ही पूजा साथ में,है मन्त्रों का जाप।।5
स्वाभिमान को…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 17, 2018 at 3:01pm — 2 Comments
उसकी खातिर करो दुआ प्यारे।।
इस तरह से निभा वफ़ा प्यारे।।
जो हो शर्मिंदा अपनी गलती पे।
उसको हर्गिज न दो सजा प्यारे।।
माना पहुँचे हो अब बुलंदी पर।
तुम न खुद को कहो खुदा प्यारे।।
कत्ल करके वो मुस्कुराता है।
कितनी क़ातिल है ये अदा प्यारे।।
जिनको रोटी की बस जरूरत है।
उनपे बेकार सब दवा प्यारे।।
'राम' बुझने को हैं उन्हें छोड़ो।
दें चरागों को क्यूँ हवा प्यारे।।
मौलिक अप्रकाशित
राम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 13, 2018 at 11:15am — 8 Comments
कभी इसके दर पे कभी उसके दर पे।
सियासत की पगड़ी पहनते ही सर पे।।
वही कुछ किताबें वही बिखरे पन्नें।
मिलेगा यही सब अदीबों के घर पे।।
लगे गुनगुनाने बहुत सारे भौरें।
नया फूल कोई खिला है शज़र पे।।
मुझे प्यार से यूँ ही नफरत नहीं है।।
बहुत ज़ख़्म खाएं है जिस्मों जिगर पे।
बहुत कुछ है अच्छा बहुत कुछ हसीं है।
लगाओ न नफरत का चश्मा नज़र पे।।
जिधर देखो लाशें ही लाशें बिछी है।
मुसीबत है आयी ये कैसी नगर…
Added by ram shiromani pathak on May 9, 2018 at 8:30pm — 4 Comments
मुझको गले लगाती है।
तब जाकर फुसलाती है।।
कितने मरते होंगे जब।
होठ चबा मुस्काती है।।
चूम चूमकर आँखों से।
मेरा दर्द बढ़ाती है।।
जलन चाँद को होती है।
वो छत पे जब आती है।।
छिपकर देखा करती है।
मैं देखूँ छिप जाती है।।
2222222
मौलिक अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on May 8, 2018 at 10:02pm — 9 Comments
मारे घूसे जूते चप्पल बदज़ुबानी सो अलग।
और कहते गाँव को मेरी कहानी सो अलग।।
आये साहब वादों की गोली खिलाकर चल दिये।
कह रहे हैं ये हुनर है खानदानी सो अलग।।
है अना गिरवी मरी संवेदनाये भी सुनो।
ज़िंदा है गर मर गया आँखों का पानी सो अलग।।
घोलकर नफ़रत हवा में वो बहुत मग़रूर है।
चाहिए उनको नियामत आसमानी सो अलग।।
लूटकर चलती बनी मुझको अकेला छोड़कर।
अब कहूँ क्या तुम हो दिल की राजधानी सो अलग।।
ढंग से इक काम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 7, 2018 at 9:53am — 15 Comments
नये वर्ष में लगता है अब
खुद को भी समझाना होगा
कर जय पराजय की समीक्षा
क्या कमीं क्या क्या प्रबल है
तूने जो खोया या पाया
तेरे कर्मों का ही फल है
पूर्व की उनसब गलतियों को
फिर से ना दुहराना होगा
खुद को भी समझाना होगा।
अपने मन की करता है बस
क्या तूने सोचा है क्षण भर
अनायास ही भाग रहा है
अब यहाँ वहाँ किस ओर किधर
पहले यह निश्चय करना है
तुमको जिस पथ जाना होगा
खुद को भी…
Added by ram shiromani pathak on December 31, 2017 at 1:30pm — 8 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:14pm — 10 Comments
Added by ram shiromani pathak on April 16, 2016 at 2:25pm — 2 Comments
Added by ram shiromani pathak on April 8, 2016 at 2:30pm — 4 Comments
Added by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 5:40pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
भूख हो रोटी न हो तो आप हँसकर देखिये।।
मुफलिसी कहते है किसको इक नज़र कर देखिये।।
आशियाँ उजड़ा है उनका और वे बेघर हुए।
उन परिंदों की लिये खुद को शज़र कर देखिये।।
क्यों भटकते हो भला इस तंग दुनियाँ में मनुष।
इक दफे बस आप अपने घर को घर कर देखिये।।
तोड़ता दिन रात पत्थर चंद सिक्को के लिए।
उसके जैसी बेबसी को भी सहन कर देखिये।।
ख़्वाब नींदों को चुरा सकता नहीं इस शर्त पर।
शब को'दीपक'आप भी इक दिन सहर कर…
Added by ram shiromani pathak on February 5, 2015 at 3:00pm — 10 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 31, 2015 at 10:00am — 25 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:55am — 6 Comments
देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।
रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।
मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।
जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 10:30am — 19 Comments
Added by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:17pm — 19 Comments
22 22 22 22
शब ही नहीं सहर भी तू है।
मेरी ग़ज़ल बहर भी तू है।।
मेरे ज़ख्मों पे यूँ लगती।
मरहम साथ असर भी तू है।।
बहुत खूबसूरत है दुनियाँ।
ऐसी एक नज़र भी तू है।।
जीवन के हर पथ में मेरे।
मंजिल और सफ़र भी तू है।।
शाहिल तक पहुचाने वाली।
मेरी वही लहर भी तू है।।
**********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 4:00pm — 18 Comments
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