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मुझे देख उनको लगा,हुआ मुझे उन्माद।।
नयनों से वाचन किया,अधरों से अनुवाद।।1

अभी पुराने खत पढ़े,वही सवाल जवाब।
देख देख हँसता रहा,सूखा हुआ गुलाब।।2

मन को दुर्बल क्यों करें,क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा,आशा का आह्लाद।।3

विविध रंग से हो भरा,भावों के अनुरूप।।
स्नेह इसी अनुपात में ,मैं प्यासा तुम कूप।।4

करुणा प्यार दुलार औ,इक प्यारी सी थाप।
माँ ही पूजा साथ में,है मन्त्रों का जाप।।5

स्वाभिमान को बेचकर,क्रय कर लाये लोभ।
जानबूझकर ढो रहे,केवल कुंठित क्षोभ।।6

दिल बेचारा कर रहा,प्रिये पुरानी मांग।
नयनो से मदिरा पिला,अधरों से फिर भांग।।7

माला जपने से नहीं,भला हुआ है तात।
सच्ची निष्ठा का रहे,उतना ही अनुपात।।8

नहीं रहा अब गांव में,बूढ़ा पीपल तात।
जिसके नीचे बैठकर,हम करते थे बात।।9

खल को खल खाकर करे,बेमतलब उत्पात।
राजनीति यूँ आजकल ,इतनी है औकात।।10

अपनी गलती को सदा,औरो पर वो डाल।
एक तराज़ू तौलता,कीचड़ और गुलाल।।11

ओह! अज़ब ये भी रहा,नए नए भ्रमजाल।
खुद को मृदुभाषी कहें,घर में विषधर पाल।।12

नैतिकता मत त्यागिये ,मंत्री जी सब भूल।
कुछ तो सार्थक कार्य हो,जनता के अनुकूल।।13

वो अपने घर बो रहा,फिर से नया बबूल।
इसीलिए नाराज़ है,उसके घर के फूल।।14

आपस में लड़ते रहो,परजा और नवाब।
समझो पूरा हो गया,अच्छे दिन का ख़्वाब।।15

वाह सियासत की कृपा,लगा लिया है दाम।
दिखे व्यक्तिगत लाभ में,बिकते सीता राम।।16

और विषैला हो गया,आरक्षण का नाग।
ज्यों ज्यों बढती ही गयी,जाती धर्म की आग।।17

चिंगारी ना बन पड़े,इक दिन भीषण आग।
अभी समय है चेत ले,सोने वाले जाग।।18

अपनी भी कहकर सुने,कुछ दूजे की बात।
तू तू मैं मैं से नहीं,भला हुआ है तात।।19

आरक्षण की वानरी,रही मजे से नाच।।
नेता देते धाप हैं,गाएँ इक दो पाँच।।।20

नेता जी ने कर लिया,जनता से अनुबंध।
जब तक दोगे मत मुझे,तब तक ही संबंध।।21

शाकाहारी का अज़ब,ये भी देखो हाल।
घर में लेकिन रोज वो,मुर्गा रहे हलाल।।22

धरती भी व्याकुल दिखी,लगती लहूलुहान।।
फंदे से लटका मिला,जब मजबूर किसान।।23

बात बात में बात से,ऐसी निकली बात।।
खुले खुले दिखते मुझे, अनसुलझे ज़ज़्बात।।24

बारूदों के संग जब,है तेरा अनुबंध।।
फिर कैसे बचता भला,अपना मृदु संबंध।।25

देख आजकल की दशा,रोता है इतिहास।।
खारापन मजबूत है,गायब दिखे मिठास।।26

कुत्शित भावो ने धरा, जब हिंसा का रूप।
दमन मार्ग ही शेष था,क्या करता फिर भूप।।27

अंदर की आवाज़ है,बहुत मचा है शोर।
सच कहता हूँ मैं प्रिये,तुम हो दिल के चोर।।28

बिन पानी व्याकुल यहाँ, दिखते सब बेहाल।।
बूढ़ा बरगद है दुखी,देख पोखरे ताल।।29

अधरों पे बारूद है,तिरछे नैन कटार।
मुझको तो लगती प्रिये,पूरी शस्त्रागार।।30

उसके इस अंदाज से, मन उठता है झूम।।
हाँथ पकड़कर जब कभी,लेती है वो चूम।31

कतरा कतरा जल रहा,बुझे बुझे जज़्बात।
अब तुम ही कह दो प्रिये,अपने दिल की बात।।32

कुछ आशिक़ कुछ है व्यथित,कुछ तो है बीमार।
कुछ तो हुए शहीद कुछ,होने को तैयार।।33

बदली बदली वृत्तियां,बदले बदले भाव।
फिर कैसे दिखता भला,मेरे उर का घाव।।34

तुमको भी अनुकूल हो,मुझको भी अनुकूल।
कहो पुष्प को पुष्प तुम,और शूल को शूल।।35

तू भी तो इंसान है,मैं भी तो इंसान।
तेरा भी सम्मान हो,मेरा भी सम्मान।।36

कुछ तो उत्तम कार्य हो,जन मानस के हेतु।
सहज सभी हो पार अब,यूँ बन जाये सेतु।।37

फूलों में दिखने लगे,उसको केवल शूल।
उसके अंतर में दिखे,जमीं मलिनता धूल।।38

कभी कभी सुन लो प्रिये, मेरे मन की बात।
तंग कर रहे है मुझे,अनसुलझे ज़ज़्बात।।39

मेरे अपने ख़्वाब हैं,तेरे अपने ख़्वाब।
तू है केवल पृष्ठ तो,मैं हूँ पूर्ण किताब।।40

जिसने जीवन भर किये,हत्या औ व्यभिचार।
गिन गिन कोड़े मारिये,एक नहीं सौ बार।।41

बाबाओ के नाम पर,हैं केवल संताप।।
इनसे दूरी ही भली,बचे रहेंगे आप।।42

अम्बुज हँसता ही रहे,चम चम करता भाल।
कीचड़ हो या मलिन जल,लिपटे हो शैवाल।।43

यद्यपि तुम आये नहीं,इसीलिए बेचैन।
रक्त जम गया साथ में,भीगे भीगे नैन।।44

कुटिल भाव व छद्म भेष, पीट स्वयं के गाल।
ये सिंघों के खाल में,केवल एक शृगाल।।45

मर्यादित रखिये सदा,शब्द भाव परिधान।
कुत्सित कलुषित को भला,कैसे दे सम्मान।46

खुद से भी बाते करो,खुद को दो झकझोर।
स्वतः बंद होगा सखे,व्याकुलता का शोर।।47

कुत्सित जिसके कर्म हो,बाटे वह भी ज्ञान।
मूर्खों के इस भीड़ में,उसका भी सम्मान।।48

मैं तो उलझा रह गया,लगा लगा अनुमान।
कुछ तो सुलझाओ प्रिये,नयनों का विज्ञान।।49

वो कुछ भी सुनता नहीं,जाता है किस ओर।
शायद जीवन में बढ़ा,टूटे दिल का शोर।।50

वचन दे रहा हूँ प्रिये,ले हाथों में हाथ।
मैं शरीर तुम प्राण सम, ऐसा अपना साथ।।51

दलित दलित का राग क्यों,गाते है कुछ लोग।
मानव हो मानव रहो,मत फैलाओ रोग।।52

नेता जी से सीखिये,लूट पाट का मंत्र।
लोकतंत्र के नाम पर,बेमतलब षणयंत्र।।53

रेशम की डोरी नहीं, है बहना का प्यार।।
बाँध कलाई में दिया, नेह भरा उपहार ।।54

मेरी बहना ने कहा, सुन लो भाई आज
नहीं चाहिए और कुछ, रखना मेरी लाज।।55

जीवन में होना सफल,करना कुछ श्रीमान
माता बहना रूप का,करें सदा सम्मान।।56

सदियों से बाकी रही,पूर्ण हुई अब खोज।
उसने जब मुझको दिया,अपने दिल का रोज़।।57

सुबह शाम पैसा जपें,पैसा ही भगवान।
दो कौड़ी में बिक गया,देखो फिर इंसान।।58

विल्व पत्र व् गंगा जल,लिए पुष्प मंदार।
हे शेखर अर्पित करूँ,स्वीकारें अभिसार।।59

सृत्वा सोम सुरेश शिव,नंदीश्वर नटराज।
अनघ अघोर अज्ञेय जी,पूर्ण करें सब काज।।60

भद्र भगाली भालचंद्र,भाल भष्म भुवनेश।
नीलकंठ नीरज कहूँ,या फिर कहूँ महेश।।61

पुष्पित है कुछ स्वप्न अब,आया फिर मधुमास।
नृत्य करू क्या ज़ोर से,या उड़ लूँ आकाश।। 62

स्वप्न सुंदरी ने दिया,इक अनुपम उपहार।
अब तो मैं जपता फिरूँ,प्यार प्यार ही प्यार।।63

स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में,अपनों से हो द्वन्द।
फिर कैसे होंगे नहीं,पैदा यूँ जयचंद।।64

नेता इनको ना कहें,ये लगते बटमार।
तन से उजले है भले,मन से है बीमार।।65

मैं बस इतना कह रहा,सोने वाले जाग।।
फैल रही चारो तरफ,जाति धर्म की आग।66

प्रेम सदा निस्वार्थ हो ,जिसका हृदय पवित्र।
दुख सुख में जो साथ दे,वही सहोदर मित्र।।67

राम शिरोमणि पाठक
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on May 18, 2018 at 2:46pm

आरिफ़ भाई आभार आपका।।सहमत हूँ आपसे गलती से पोस्ट हो गया।।कॉपी पेस्ट करते समय भूल हो गयी।।

Comment by Mohammed Arif on May 18, 2018 at 1:22pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी आदाब,

                          समसामयिक विषयों पर लिखें गए थोकबंद दोहों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । 

    नोट:- एक साथ इतनी संख्या मेंं पोस्ट न करते दो -तीन किश्त के रूप में पोस्ट किए जाते तो बेहतर होता क्योंकि इससे काफी टिप्पणियाँ भी मिल जाती और पाठक भी उबता नहीं । 

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