नये वर्ष में लगता है अब
खुद को भी समझाना होगा
कर जय पराजय की समीक्षा
क्या कमीं क्या क्या प्रबल है
तूने जो खोया या पाया
तेरे कर्मों का ही फल है
पूर्व की उनसब गलतियों को
फिर से ना दुहराना होगा
खुद को भी समझाना होगा।
अपने मन की करता है बस
क्या तूने सोचा है क्षण भर
अनायास ही भाग रहा है
अब यहाँ वहाँ किस ओर किधर
पहले यह निश्चय करना है
तुमको जिस पथ जाना होगा
खुद को भी समझाना होगा।
कर्महीन बस कर मलता है
बिना किए क्या कुछ मिलता है
मंज़िल उनको ही मिलती जो
बिना डरे चलता रहता है
इक ऐसा उद्देश्य बनाओ
खुद को प्रबल बनाना होगा
खुद को भी समझाना होगा।
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Comment
सुन्दर गीत हुआ आदरणीय..सादर
सुरेंद्र जी उत्साह वर्धन हेतु बहुत आभार आपका
आ. भाई राम शिरोमणि जी, अच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
आद राम शिरोमणि पाठक जी सादर अभिवादन। बेहतरीन सृजन। नव वर्ष की शुभकामनाओं संग बधाई कुबूल करें। सादर
उस्मानी साहब बहुत बहुत आभार आपका।।सादर
बहुत बहुत आभार आरिफ़ भाई उत्साह वर्धन हेतु।।सादर
बहुत बढ़िया मंतव्य, संकल्प और अपेक्षायें शाब्दिक करती बढ़िया भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय राम शिरोमणि जी।
आदरणीय राम शिरोमणि जी आदाब,
आशा-अपेक्षा का संचार करती बेहतरीन कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
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