For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे(प्रेम पियूष)22

प्रेम सुमन का है गहन ,हवा चल रही मंद।
मैं अलि सम पीता फिरूँ,मधुर-मधुर मकरंद।।

तुम बिन किससे हो प्रिये,अपने दिल की बात।
नहीं बीतता दिवस अब,नहीं बितती रात।।

अधरों पर फिर से खिली,मृदुल मौन मुस्कान।
सच कहता हूँ हे प्रिये,लोगी मेरी जान।

ढाई आखर प्रेम का,लिए हाथ में हाथ।
जीवन भर चलना प्रिये,हरदम मेरे साथ।।

खुद को मीरा कह रही,मुझको माखनचोर।
दिखता मैं उसको सदा,कण कण में चहु ओर।।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 592

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2016 at 9:08am

सुधीजनो ! 

नहीं बीतता दिवस अब,नहीं बितती रात  के प्रथम चरण का अन्त क्यों सही लगा कि किसी ने चर्चा नहीं की है ?

संदर्भ, दिवस का उच्चारण दि+वस होता है. 

तथा, चहु की जगह चहुँ होना चाहिए. 

बाकी दोहे अपने प्रवृतिगत भाव के समीचीन संप्रेषण के करण रुचिकर लगे हैं. हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ ..

शुभेच्छाएँ

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 18, 2016 at 11:41pm

आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी सादर, सुंदर दोहे रचे हैं आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. बाकी आदरणीय लड़ीवाला जी ने कह ही दिया है. सादर.

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 15, 2016 at 7:43pm
आदरणीय श्री राम जी सुन्दर दोहा रचना के लिए हार्दिक बधाई । सादर ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 5:18pm

बहूत सुन्दर दोहे ..बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on September 15, 2016 at 5:14pm
सुझाव व् अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय।।सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2016 at 5:11pm

सुंदर दोहे रचे है | कुछ कमियाँ रह गई जैसे  - "नहीं बितती रात"

 

ढाई आखर प्रेम का,लिए हाथ में हाथ।
जीवन भर चलना प्रिये,हरदम मेरे साथ।। - इस दोहें को अगर इस पारकर कहे -

जीवन भर चलना प्रिये, लिए हाथ में हाथ

ढाई आखर प्रेम का, बोलों मेरे साथ  ।।

Comment by ram shiromani pathak on September 15, 2016 at 3:49pm
समर भाई आदाब।।आभारी हूँ आपका
Comment by ram shiromani pathak on September 15, 2016 at 3:48pm
आदरणीया मीना जी हार्दिक आभार ।।सादर
Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 3:33pm
जनाब राम शिरोमणि पाठक जी आदाब,बहुत सुंदर दोहे रचे आपने दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Meena Pathak on September 15, 2016 at 3:32pm

बहूत सुन्दर दोहे ..बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
7 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
8 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service