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सृत्वा सोम सुरेश शिव,नंदीश्वर नटराज।
अनघ अघोर अज्ञेय जी,पूर्ण करें सब काज।।

गंगा जल व् विल्व पत्र,लिए पुष्प मंदार।
हे शेखर अर्पित करूँ,स्वीकारें अभिसार।।

जीवन भर ऐसा रहे ,हो उनका सम्मान।
माता बहना रूप जो,उनको अर्पण जान।।

संगी साथी या सखा,कह दूँ तुमको मित्र।
इक दूजे में यूँ बसे, जैसे छाया चित्र।।

कितना किसने कब दिया,है कितना अनुपात।
स्वार्थ दिखे सम्बन्ध पर,हावी मुझको तात।।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2016 at 2:03pm
आदरणीय भाई केवल जी अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on April 11, 2016 at 2:02pm
रामबली जी हार्दिक आभार।।सादर
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2016 at 9:37pm

आ० शिरोमणि भाईजी,  नमस्कार!  बहुत दिनो के बाद आपकी ऐसी रचना पढ़ रहा हूं. दोहे के भाव अति सुंदर हैं...लगता है जल्दबाज़ी में पोस्ट कर दिया है.  कृपया  प्रथम दोहे के प्रथम व तृतीय चरण में जगण का प्रयोग निषेध माना गया है. इसके साथ ही तृतीय चरण में १४ मात्रा हो रहीं है. दूसरे दोहे के प्रथम चरण में भी १४ मात्रा हो रही है. तीसरे दोहे का प्रथम चरण भी दोष युक्त है. कृपया पुन: देख लें. सादर

Comment by रामबली गुप्ता on April 10, 2016 at 7:03pm
आदरणीय शिरोमणि जी सारे दोहे शानदार हुए हैं।
बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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