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क्या कहूँ साथ अपने वो क्या ले गई

आँधी थी सायबाँ ही उड़ा ले गई

 

मैंने बस एक ही गाम उठाया मुझे

रहनुमा बन के तेरी दुआ ले गई

 

काम आये सितारे अँधेरो में रात

जब चिरागों की लौ को हवा ले गई

 

मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला

गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई

 

जीने की कोशिशें उसकी बेजा नहीं

क्या हुआ गर खुशी वो चुरा ले गई

 

रात के ख़्वाब बाकी थे आँखों में कुछ

सुब्ह की बेरहम धूप उठा ले गई

(मौलिक तथा अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:54pm

आदरणीया कुन्ती जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:54pm

आदरणीय वीनस भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 8:52pm

भाई गुमनाम जी आपका शुक्रिया। कोई शंका हो तो खुल के प्रश्न करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 22, 2014 at 11:17am

आदरणीय शिज्जु भाई जी अच्छे अशआर हुए हैं बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by vijay nikore on January 22, 2014 at 7:46am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय शिज्जु जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 21, 2014 at 11:51pm

वाह बढ़िया ग़ज़ल भाई शिज्जु जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:55pm

आदरनीय शिज्जू भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है भाई , आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥

काम आये सितारे अँधेरो में रात

जब चिरागों की लौ को हवा ले गई - ---बहुत बढ़िया  , बधाइयाँ ॥

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 20, 2014 at 7:18pm

अच्छी गज़ल , बधाई आदरणीय शिज्जु भाई ।

Comment by coontee mukerji on January 20, 2014 at 3:20pm

मुझको लहरों से क्यूँ हो शिकायत भला

गल्तियों को मेरी वो बहा ले गई...........बहुत खूब

 

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 2:48am

काम आये सितारे अँधेरो में रात

जब चिरागों की लौ को हवा ले गई ... वाह जनाब बहुत खूब 

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