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ग़ज़ल -कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

 १२२२      १२२२     १२२२       १२२२

हमें माझी की आदत है उसी के ही सहारे हैं

डुबो दे बीच में चाहे, वो चाहे तो किनारे हैं

मिटाने को हमें अब जा मिला घड़ियाल से माझी

कि साज़िश के निशाने पर ही हमने दिन गुजारे हैं

चमकती चीज ही मिलती रही सौगात में हमको

समझ बैठे ये धोखे से कि किस्मत में सितारे हैं

सियासत जो हमारे घर में ही होने लगी है अब

तभी हर बात में कहने लगे वो  हम तुम्हारे हैं

अदावत घर में ही होने लगे तो क्या करें साहिब

बताएं क्या कि हर सूरत हमी अपनों से हारे हैं

संजू शब्दिता  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 8:14pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपके उम्दा शेर प्रस्तुत ग़ज़ल का मनोबल बढ़ा रहे हैं ... शानदार प्रतिक्रिया  हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद। 

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 8:01pm

आ0 कुंती जी आपके स्नेहसिक्त आशीष के लिए आपका हृदय से धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:59pm

आ0 कल्पना दी आपका अनुमोदन पाकर लिखना सार्थक हुआ ॥ बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:58pm

आदरनिया महिमा जी हार्दिक आभार आपका

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:57pm

आदरणीय गुमनाम जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:56pm

आदरणीय वीनस जी बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने....  इसके लिए आपका हृदय से आभार ।  ग़ज़ल पर आपके पुनः आने की प्रतीक्षा रहेगी । आपकी सदाशयता के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद .  सादर

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:52pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:51pm

आदरणीय विजय शंकर जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:50pm

आ0 गीतिका जी आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से मन खुश हो गया .... हार्दिक आभार

Comment by sanju shabdita on June 20, 2014 at 7:49pm

आ0 राजेश जी ग़ज़ल आपको पसंद आई ,लिखना सार्थक हुआ । ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हेतु हृदय से आभार .

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