For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या तुम आज स्कूल आओगे?

अब ये नही होगा.......... कल मुझसे मेरे छोटे भाई ने कहा की दीदी अब तुझसे ये कोई नही कभी कहेगा की आज स्कूल क्यो नही आई या क्या तुम आज स्कूल आओगी? बात बिल्कुल साधारण सी थी पर मे सारा दिन सोचती रही की ये बात कितनी सच हे . बचपन के साथ साथ ये सारे पल भी तो बीत गये जब सारी सहेलिया साथ स्कूल जाती और हर दिन एक दूसरे से पूछती थी की क्या कल स्कूल आओगी?

 

हमारी वो दुनिया ही निराली थी. लूका छुपी का खेल खेलने के लिए हर शाम भगवान जी से बोलना की प्लीज़ भगवान जी लाइट चली जाए ताकी मम्मी हमे बाहर खेलने की इजाज़त दे दे क्योकि तब घर पर इनवेर्टर की व्यवस्था नही थी सो मम्मी के पास कोई रास्ता नही होता था. मम्मी के हाथ के आलू के पराठे और नींबू का आचार जो मुझे कभी खाने नही मिलता था सब मेरी सहेलियो के नाम कुर्बान और होस्टल मे मम्मी के हाथ के बेसन के लड्डू मगर यहा भी रूम मेट के साथ शेयर करना मजबूरी थी. स्कूल जाने और आने के समय अगर बारिश हो गई तो १५ मिनट का रास्ता भी १ घंटे मे तय होता था .

 

घंटो सहेलियो के साथ बैठकर गप्पे मारना और भविष्य की योजनाए बनाना. सहेली का जन्मदिन होने पर उससे हलवे का केक कटवाना ( उस समय केक इस तरह आसानी से नही मिल पता था) . मम्मी पापा का प्यार और फटकार . सुबह देर से  उठने  पर पापा का लंबा लेक्चर और उनका समाचार पत्र पढ़ते हुए चश्मे से तिरछी निगाहो से गुस्से से देखना और कुछ देर बाद मुस्कुरा देना. आस पास के कंपनी बाग मे हमारी पिकनिक और वहा जब मेरी सहेली का टिफिन एक कुत्ता खा गया तो हम सब हंस हंस कर ओंदे हो गये थे.

 

एसी कितनी ही मीठी यादे हे जिनका यदि सिलसिले वार ज़िक्र करने लगे तो कभी ख़त्म ही न हो. सच कितनी मधुर यादे हे जो जिंदगी मे जब भी हम हौसला हारे या जीवन से थकने लगे तो हमारा हौसला बढ़ाती हे .

 

यही तो जिंदगी हे खट्टी और मीठी . आज भाई की एक बात ने मुझे मेरे बचपन की सेर करा दी और मन फिर से पहुच गया उसी मासूमियत और भोली नटखट दुनिया मे जहा सब कुछ अच्छा ही अच्छा था बुरा कुछ भी नही .

और मे खुद को तरो ताज़ा महसूस करने लगी तो सोचा क्यो ना आपको भी इसी ताज़गी का अहसास कराया जाए तो जनाब बचपन की दुनिया की खुश्बू ने आपको भी महका ही दिया आख़िर?

   प्रेषक

मोनिका भट्ट (दुबे)

 

Views: 598

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRAVIN KUMAR DUBEY on July 11, 2011 at 4:42pm
Thanks Monika Aapka sansmaran bahut sentimental hai.
Comment by Shanno Aggarwal on July 11, 2011 at 2:12am

मोनिका जी, आपने बहुत अच्छा बचपन का संस्मरण लिखा है. 

 

बचपन की यादों से गुदगुदी होने लगती है :))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service