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गीत- नेह बदरिया नीर नदी बन

नेह बदरिया नीर नदी बन
आंखों आंखों स्वप्न सधे हैं
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।

नख बन भाव कुरेदें बातें
यादें मोहक धूमिल छवि की
टूट रहे पतवार हृदय के
तूफानी लय है सांसों की

पर्वत से तटबंध दिलों पर
सकुचाते उदगार बंधें हैं।

काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।

मुनरी कंगन छागल बिछुए
सबकी सबसे रार हुई है
गजरे की अनबन बालों से
अबकी पहली बार हुई है

आतुर है श्रृंगार मिलान को
लोक लाज के बांध बंधें हैं।

काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।

'मौलिक व अप्रकाशित'

नीलम दीक्षित.

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Comment

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Comment by Neelam Dixit on July 14, 2020 at 11:55pm

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी सादर नमस्कार

मेरे उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2020 at 5:13pm

आदरणीया नीलम दीक्षित जी सादर नमस्कार 

अच्छा श्रंगार गीत हुआ हुआ  कहीं कहीं टंकण त्रुटि है ठीक कर लीजियेगा 

बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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