नानी की कमी जीवन पर्यन्त याद आएगी ,
आंखें मेरी क्षण-क्षण अक्षुओं से भर आएंगी
खाये जिनके बनाये गर्मियों में चांवल और दाल,
छोड़ के हम नाती-पोतों को कब दूर चली जाएगी
छत पर जिनकी तोड़ कर खता मिर्च नमक लगा कच्चा आम और जाम,
उस वृक्ष की टहनी कब हम सब से इस तरह यूँ कट जाएगी
सेव,मुरमुरे,प्याज,टमाटर काट के भेल खिलाती थी,
एक पल को यूँ श्वास त्यागकर स्वर्गलोक सिधर जाएगी
ग्रीष्मकाल में विद्यालय के ९ मास जो कलम घीसी ,
बचे मास खुशियों की स्याही जिसने भरी वह स्याही ढुल जाएगी
छत-आंगन पर जिनके समकक्ष गोद में सोये गपशप करके,
पल-भर में हम सबसे यूँ बिछड़ जाएगी
जिनके संग मै रहा साथ , देखी दूरदर्शन में नौक-झौक करती बहुएं और सास,
बिन दर्शन दिए अंतिम क्षण में भवसागर तर जाएगी
माँ तो अपनी देवी हैं पर माँ की माँ तो परमदेवी है,
जो हर एक लोक में स्वेच्छा से मिल जाएगी
सुख-दुःख में जिसने सर पर सदा हाथ फेरकर प्रेम बिछाया,
नानी माँ उस पावन माँ गंगा संग मिल जाएगी
प्रत्येक दिवस में एक बार फोन की घंटी बजा कर हेल्लो से सम्बोधन करती थी,
अब वो छन को श्रुति तरस जाएगी
उनके कोमल हाथों की बनाई और मेरी खाई सब्जी और रोटी को ,
मेरी स्वाद कलिकाओं को तरसा जाएगी
जिनके संग चिडयाघर विचरण , शेर दहाड़ सुन,
उनसे लिपट कर शक्तिमान बन जाता था ,
वह माँ दुर्गा मेरी कब अदृश्य हो जाएगी
हर वार त्यौहार में न्योता देकर स्वाद-पेटभर भोजन खिलाती थी ,
बिन पसंद का खाये-पिए अंतिम क्षण गुज़र जाएगी
जब मेरे जीवन में घोर विपदा आयी थी , मात-पिता के बीच वही त्रिदेवी बन आयी थी ,
नेत्रों के समकक्ष मेरे यूँ अग्नी में प्रविष्ट हो जाएँगी
कलियुग में इस प्रलयकाल में जब जग में घोर अँधियारा है ,
पृथ्वी लोक में माँ सीता की तरह मेरी नानी भवसागर तर जाएगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
अपनी नानी माँ को समर्पित
रोहित दुबे
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