अनेकानेक देशो की संस्कृति में शिक्षकों क़े सम्मान में पूरी दुनिया झुकती हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ शिष्य अपने गुरु के पैर धोते हैं वही दक्षिण कोरिया में शिष्यों के पैर शिक्षक घुटने के बल बैठकर धोते हैं। शिक्षक ज़िंदगी की पाठशाला में सबक पढ़ाने- सिखाने और व्यवहारिक जीवन में उतारने वाले,हर अक्षर को शब्द मूल्यो में सार्थक कर कामयाबी की सीढ़ी पार कराते हैं। जीवन जीने की कला सिखाने वाला शिक्षक बच्चे को सामाजिक बनाने में अहम् भूमिका निर्वहन कर आने वाले समाज का निर्माण कर्ता हैं। हालांकि जीवन संघर्ष पथ के हर मोड़ पर शिक्षा देने वाला व्यक्ति शिक्षक बन जाता हैं।
भारत को भारत की पह्चान दिलाने वाले शिक्षक सर्वंपल्ली राधाकृष्णन,जाकिर हुसैन,अन्ना साहब कर्वे,सी.वी.रमन, तिलक, टैगोर, प्रेमचन्द जी हैं तो जिन्होने भारत को विश्वगुरु बनाया वो हैं- प्रकांड पण्डित,अर्थशास्त्री चाणक्य ने विचार को व्यवहार में बदलने की सीख दी। पंचतंत्र कहानियो के रचयिता ने शिक्षा को कहानी के रूप में बदला। दुनिया को शून्य देने वाले गणितज्ञ, खगोल शास्त्री आर्यभट्ट, चार हजार प्रमेय के जनक श्री निवास रामानुज जिंका कह्ना था कि जो भी करे जुनून के साथ करे तो सफलता अवश्य मिलेगी। शास्त्रार्थ की परम्परा को सम्मान दिलाने वाले धर्माचार्य आदि शंकराचार्य जी,दोहो द्वारा कुरीतियो पर कटाक्ष करने वाले संतकवि कबीर,बुद्ध शिक्षा प्रचार-प्रसार करने वाले अशोक या अहिंसा का मार्ग अपनाने वाले वर्धमानजी।शिक्षा के महत्व पर महिला और दलितों के लिये काम करने वाले ज्योतिबा फुले का क्हना था कि बिना शिक्षा के बुद्धि नष्ट हो जाती हैं। बिना बुद्धि के नैतिकता और बिना नैतिकता विवेकहीन।विधवा पुनर्विवाह पारित करने वाले स्त्री शिक्षा के समर्थक ईश्वर चंद विद्या सागर जी की वाणी से ही बिगड़े हुये छात्र सुधर जाते थे। और महानुभाव सवाई गंधर्व जी जहाँ पर शिष्य मिलते वही उनकी गल्तियाँ सुधारने जुट जाते थे।
एक ओर अपने से बड़ी कक्षा के बच्चों को पढ़ाने वाले सत्येंद्र्नाथ बोस आधुनिकता के समर्थक थे वही दूसरी ओर मानव विकास में बाधक परंपरागत सोच को निरर्थक परंपराओं को छोड़ने पर जोर देने वाले सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेजी पर जोर दिया वरना पिछड़ जाओगे। परिवार संस्था पहली पाठशाला के पश्चात जीवन के सही-गलत के सबक सिखाने वाली दूसरी पाठशाला के प्रेरणास्पद शख्स शिक्षक होते हैं जिनका कोई स्थान नहीं ले सकता हालांकि संघर्षपथ पर हर शिक्षा देने वाला व्यक्ति शिक्षक बन जाता हैं। फिर चाहे आजादी की लड़ाई में लोगों के हृदय में संघर्ष करने के लिये भारत छोड़ो आंदोलन का नारा देने वाले गांधीजी हो या फिर लोगों को अपने अधिकारों के प्रति सजग करने वाले बालगंगाधर तिलक जी। एक तरफ विघटित होती मानव सभ्यता के संकट को अपने भाषणों में उम्मीद जलाने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर जी तो दूसरी तरफ शिकागो सम्मेलन में सनातन का प्रचार-प्रसार करने वाले विवेकानंदजी जिन्होने पश्चिमी देशों को परिचित कराया।
जीवन के किसी भी मोड़ पर व्यक्ति कोई अनुभव सीख देने में भूमिका निर्वहन करते हैं। पाठशाला ने शिक्षा देने के अलावा जीवन में सीख देने वाले और भी शिक्षक होते हैं। कहते हैं कि एक चींटी से शिक्षा ली जा सकती हैं। शिक्षा वही हैं जिससे हम किसी भी प्रकार की कोई शिक्षा ले सकते हैं। शिक्षा और शिक्षक की परिभाषा की सार्थकता केवल दिवस बनाकर इतिश्री न कीजिये। बल्कि हर दिन दिवस मनाईये। क्योकि जनसामान्य के जीवन को सही दिशा देने वाले शिक्षकों की गरिमापूर्न भूमिका व्यवहारिक या आधिकारिक तौर पर भव्य परम्परागत रही हैं। जीवन की सीख देते शिक्षक से औपचरिक ही नहीं सामाजिक रिश्ता भी होता हैं। लक्ष्य प्राप्ति पथ कर्मठता की फसल में संकटों की खरपतबार को उखाड़ने में शिक्षक की सीख का हल से जोतना सिखाता हैं।जैसा कि अलबर्ट आइंसटीन का कथन हैं- स्कूल में सीखी चींजे भूल जाने के बाद भी शेष रह जाता हैं, वही शिक्षा हैं,हमारे जीवन की दुनिया की पढ़ाई होती हैं। इसलिये हम जीवन में कितना भी गुरुत्तर स्थान ग्रहण कर ले पर गुरु का स्थान सर्वोपरि हैं....रहा हैं.....हमेशा रहेगा.....।विवेकानंद जी का कथन हैं कि मैं जीवन देने के लिये अपने पिता का ऋणी हूँ लेकिन अच्छे जीवन के लिये अपने गुरू का जो जीवन को बनाने में अमूल्य योगदान देता हैं। जीवन के मोड़ पर कठिन परिस्थितियों में यही दिशा दिखाते हैं।
स्वरचित व अप्रकाशित
बबीता गुप्ता
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नमस्कार, महोदया, प्रेरक आलेख है, गुरु की महत्व पर ! लेकिन माननीया आलेख शोध परक विधा है, तथ्य सौ फीसदी सही होने चाहिए! विधवा-विवाह की सर्वप्रथम पैरवी करने वाले और स्त्री-शिक्षा हेतु आंदोलन का बिगुल फूंकने वाले बंगाल में स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने वाले परम आदरणीय राजा राम मोहन रायथे, ईश्वर चंद्र विद्यासागर बहुत बड़े शिक्षाविद विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे! बेजोड़ स्मरण शक्ति
के लिए जाने जाते है ं ! साभार
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