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नई अदा से, मुहब्बत, जता रहा है कोई |
उन्हीं से उनके लिए, ख़त लिखा रहा है कोई ||

कहा गया न, जुबां से, जो रूबरू उनके |
बिठा के पास उन्हें, सब सुना रहा है कोई ||

वो पूछते भी हैं, उल्झा के, बातों-बातों में |
अदा से नाम उन्हीं का, बता रहा है कोई ||

हसद ज़बीं पे नुमायाँ है, दिल पे क्या जाने |
उन्हें यूँ खून के, आँसू रुला रहा है कोई ||

मिलेगा ख़त, तो वो, खुश होंगे या खफा होंगे |
नसीब अपना 'शशि', आजमा रहा है कोई ||  

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Comment by Vipul Kumar on June 25, 2012 at 9:52pm

हसद ज़बीं पे नुमायाँ है, दिल पे क्या जाने |

उन्हें यूँ खून के, आँसू रुला रहा है कोई ||
waah
 
behad umda ghazal hai bhai. bahut hi meyaari takhayyul.
bas aapne type karte waqt huroof ka khayaal nahiN rakkha hai. jaise ख़,ख,ज,ज़ ityadi meN lagbhag har jagah Galati hai. shayad ye typing mistake hogi......
ghazal k liye ek baar phir se daad

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