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कुछ रुबाइयाँ....(जगदीश तपिश)

(१)

बाँटना तो चाहते हैं हम तेरे रंजो अलम पर,
वक़्त ने पाँव में जंजीर जो पहनाई है |
सो जाते हैं जब--सब--तब हम उठ के देखते हैं,
बरसों से सिरहाने में तस्वीर जो छुपाई है ||

 

(२)

उसने पूछा भी नहीं और हमने बताया भी नहीं,
बस इसी जद्दोजेहद में कट गई है ज़िन्दगी |
मेरे मालिक ये कैसा इम्तिहान ले रहे हो तुम,
वो लौट के आये हैं अब---जब बट गई है ज़िन्दगी ||

 

(३)

जिसकी थी जरुरत हमें वो तो नहीं मिली,
किसको बताते क्या मिला उनके शहर से दोस्त |
जो भी दिया उनने हमें तस्लीम कर लिया हमने,
नफरत सही -- ले लाये हम उनके शहर से दोस्त ||

 

(४)

फूलों की दोस्ती हमें जब रास ना आई,
काँटों से हमने अपना दामन सजा लिया |
फूल तो मुरझा गए ये और बात है,
काँटों ने मगर दोस्तों जीना सिखा दिया ||

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