छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात लक्ष्मणेश्वर की नगरी खरौद में सावन सोमवार पर श्रद्धालुओं का तांता लगता है। भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन के लिए प्रदेश से अनेक जिलों के अलावा दूसरे राज्यों से भी दर्शनार्थी भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां सावन सोमवार के दिन सुबह से श्रद्धालुओं की लगी कतारें, देर रात तक लगी रहती हैं और भक्तों के हजारों की संख्या में उमड़ने के कारण मेला का स्वरूप निर्मित हो जाता है। भगवान लक्ष्मणेश्वर स्थित ‘लक्षलिंग’ में एक चावल चढ़ाया जाता है और श्रद्धालुओं में असीम मान्यता होने से दर्शन करने वालों की संख्या में दिनों-दिन इजाफा होता जा रहा है। प्रत्येक सावन सोमवार में हजारों लोग भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन करते हैं और पुण्य लाभ के भागी बनते हैं। 11 वीं शताब्दी में बने लक्ष्मणेश्वर मंदिर की अपनी विरासत है और यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए छग ही नहीं, वरन् देश भर में जाना जाता है। कई बार यहां विदेशों से भी इतिहासकारों का आना हुआ है। खासकर, खरौद में एक और मंदिर ‘ईंदलदेव’ है, जहां की ‘स्थापत्य कला’ देखते ही बनती है। इसी के चलते दूर-दूर से इस मंदिर को लोगों का हुजूम उमड़ता है, वहीं इतिहासकारों व पुराविदों के अध्ययन का केन्द्र, यह मंदिर बरसों से बना हुआ है। दूसरी ओर खरौद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर में सावन सोमवार के अलावा तेरस पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। साथ ही ‘महाशिवरात्रि’ पर हजारों लोग भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन के लिए उमड़ते हैं। उड़ीसा, मध्यप्रदेश, झारखंड समेत अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में दर्शन के लिए लोग पहुंचते हैं। अभी सावन महीने में हर सोमवार को हजारों श्रद्धालु लक्ष्मणेश्वर नगरी की ओर कूच करते हैं। सुबह से ही ‘बोल-बम’ के नारे के साथ मंदिर परिसर व पूरा नगर गूंजायमान हो जाता है, क्योंकि दूर-दूर से कांवरियों का जत्था पहुंचता है। श्रद्धालुओं की भीड़ के चलते उन्हें भगवान के दर्शन पाने घंटों लग जाते हैं और वे कतार में लगकर अपनी मनोकामना पूरी करने भगवान से प्रार्थना करते हैं। मंदिर परिसर के बाहर कुछ सामाजिक संगठनों के द्वारा भक्तों को नीबू पानी पिलाया जाता है और नाश्ता की भी व्यवस्था की जाती है। भगवान शिव के दर्शन के लिए रविवार की शाम को ही दूर-दूर से आए श्रद्धालु पहुंच जाते हैं। साथ ही धार्मिक नगरी शिवरीनारायण में भी भक्त ठहरे रहते हैं। इसके बाद महानदी के त्रिवेणी संगम से कांवरिए जल भरकर खरौद पहुंचते हैं। इस दौरान पूरे मार्ग में बोल-बम का नारा गूंजता रहता है। मंदिर परिसर में भी गेरूवां रंग पहने कांवरिए पूरे उत्साह के साथ भगवान के दर्शन करते हैं। वे पैदल ही दूर-दूर से आते हैं और उनके पांव में छाले भी पड़ जाते हैं, मगर उनकी आस्था कहें कि भगवान लक्ष्मणेश्वर की असीम कृपा, किसी के पग नहीं रूकते और न ही, किसी तरह के दर्द का अहसास होता है। इस बारे में मंदिर के पुजारी सुधीर मिश्रा ने बताया कि 11 वीं सदी में बना यह मंदिर आज भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र है। साथ ही भक्तों में भगवान लक्ष्मणेश्वर के प्रति असीम मान्यता है, क्योंकि यहां सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है, वह पूरी होती है। लिहाजा छग ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों से भी दर्शनार्थी आते हैं। सावन सोमवार के दिन सुबह से मंदिर में लंबी कतारें लग जाती हैं, इससे पहले रात्रि से ही कांवरियों का जत्था का धार्मिक नगरी में आगमन हो जाता है और वे भगवान के गान कर रतजगा भी करते हैं। उन्होंने बताया कि लक्ष्मणेश्वर में जो लक्षलिंग स्थित है, वैसा किसी भी शिव मंदिर में देखने को नहीं मिलता। यही कारण है कि लोग, भगवान के एक झलक पाने चले आते हैं। कई श्रद्धालु ऐसे भी होते हैं, जो हर अवसरों पर आते हैं और भगवान के आशीर्वाद के कृपापात्र बनते हैं। पुजारी श्री मिश्रा ने बताया सावन सोमवार के अलावा तेरस में भी इतनी ही भीड़ होती है। महाशिवरात्रि तो छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पर्व यहीं होता है और मेला का माहौल होता है, क्योंकि हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि के दिन महिला व पुरूषों की अलग-अलग कतारें होती हैं, फिर भी दर्शन पाने में घंटों लग जाते हैं।
जमीं से 30 फीट उपर
भगवान लक्ष्मणेश्वर मंदिर में जो लक्षलिंग स्थित है, जिसमें एक लाख छिद्र होने की मान्यता है। वह जमीन से करीब 30 फीट उपर है और इसे स्वयंभू लिंग भी माना जाता है। लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चले जाने की भी मान्यता है, क्योंकि कुण्ड कभी सूखता नहीं।
क्षयरोग होता है दूर
ऐसी भी मान्यता है कि भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन मात्र से क्षयरोग दूर हो जाता है। बरसों से लोगों मे मन में यह आस्था कायम है और इसके कारण भी भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं।
संतान प्राप्ति की भी मान्यता
भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन से निःसंतान दंपती को संतान प्राप्ति की भी मान्यता है। इसी के चलते दूर-दूर से ऐसी दंपती भगवान के द्वार पहुंचते हैं और मत्था टेकते हैं, जो संतान से महरूम हैं। उनमें ऐसी मान्यता है कि भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन से यह मुराद पूरा होता है।
राजकुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ़
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