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आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.

 

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

 

घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,

आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.

 

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी, 

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 4:42pm

धन्यवाद भाई सत्य जी !

Comment by satya upadhyay on September 21, 2011 at 7:51pm

good kya bat hai

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2011 at 1:12pm

स्वागत है भाई वीनस जी !
आप जैसे विद्वान की सराहना पाकर यह श्रम सार्थक हो गया है ! आपका हार्दिक आभार !

Comment by वीनस केसरी on September 13, 2011 at 12:34am

अम्बरीष जी

सुन्दर  ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2011 at 12:12am

स्वागत है आदरणीया सुनीता जी ! आपका तहे दिल से शुक्रिया ! वैसे ग़ज़ल की समझ तो मुझको भी नहीं है फिर भी ओ बी ओ मित्रों की संगति में यह सब हो ही जाता है ..इस लिए इस जिन्दादिली का सम्पूर्ण श्रेय मैं ओबीओ को ही देना चाहूँगा !...:-)

Comment by सुनीता शानू on September 12, 2011 at 11:56pm

मुझे समझ नही है अभी गज़ल की मगर  समझती हूँ जो बहुत अच्छा लगा शेर वही कह रही हूँ...

जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,

खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.

बहुत खूब!

शुक्रिया

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2011 at 1:40pm

आदरणीया आराधना जी आपने बिलकुल सच कहा है!  ग़ज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !

सादर, अम्बरीष श्रीवास्तव 

Comment by Aradhana on September 12, 2011 at 10:18am

aadarneey ambreesh ji,

ye ghumaan hi sab le doobta hai...'hum' aur 'aham' se pare jo dekh sakein wo aankhein bahut kam logon ko mayassar hain...

aap aise hi likhte rahein...bahut sundar,

saadar,

aradhana

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 7, 2011 at 12:05am

स्वागत है भाई मापत पुरी जी ! आपका हृदय से आभार मित्र!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 7, 2011 at 12:03am

धन्यवाद कल्पना जी !

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