‘मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना’, यहां भी अन्ना, वहां भी अन्ना’, ‘अन्ना नहीं ये आंधी है, नए भारत का गांधी है’, ऐसे ही कुछ नारों से पिछले दिनों रामलीला मैदान गूंजायमान था। तेरह दिनों तक चले अनशन के बाद अन्ना, गांधी जी के अवतरण कहेे जा रहे हैं। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि दुनिया में दूसरा गांधी, कोई हो नहीं सकता। खैर, अन्ना के आंदोलन के बाद दुनिया में एक अलग लहर चली है, आजादी की दूसरी लड़ाई की।
हमारे अन्ना अब चुनाव लड़ने की नहीं, लड़वाने की बात कह रहे हैं। वे कहते हैं कि ऐसे युवा जिनकी छवि बेदाग हो, वे निर्दलीय चुनाव लड़ें। वे चुनाव प्रचार भी करने जाएंगे। यह तर्क का विषय हो सकता है कि अन्ना टीम के एक सदस्य ने चुनाव से तौबा बात कही थी, फिर राजनीति की गंदगी को साफ करने के इरादे का रहस्य क्या है ? जिन्हें अन्ना से भ्रष्टाचारी नेताओं को डर लग रहा था, वो भी खुश होंगे कि चलो, अब चुनावी कुस्ती एक साथ तो होगी।
मैं इसके बाद यही सोच रहा हूं कि आखिर अन्ना को हो क्या गया है ? अन्ना जी तेरह दिनों तक जुटी अपार भीड़ और समर्थन को हर तरह से अपने पक्ष में मान रहे हैं। जब उनका आंदोलन चला, उस दौरान हमारे कई नेता सठिया जरूर गए थे, लेकिन चुनाव में शातिर दिमाग वाले नेताओं के आगे कोई टिक नहीं सकता। इससे पहले हमारे शरीर दुरूस्ती में अहम भूमिका निभाने वाले ‘बाबाजी’ ने भी चुनाव लड़ाने की सोची थी। वे अपनी योग क्रिया में हर तरह से सफल हुए, मगर चुनाव में वे भोगी बन चुकी जनता के आगे नतमस्तक हो गए। जिन-जिन को उन्होंने समर्थन दिया, वे चुनावी समर से बाहर हो गए। एक ने भी चुनावी नैया पार नहीं लगाई। इन बातों को जानने के बावजूद किस रणनीति के साथ अन्ना चुनाव लड़ाने वाले हैं, वे ही जानें।
अन्ना जी से मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि आपके साथ देश की करोड़ों जनता है। आप इसी तरह से समाज सेवा में लगे रहेंगे, वे आपके हम कदम बने रहेंगे। इतना जरूर है कि जब आप चुनावी दमखम दिखाएंगे, उसमें कितने आपके साथ देंगे, कह नहीं सकते ? मैं बाबाजी से पहले की स्थिति से वाकिफ हूं कि किस तरह ऐन वक्त पर हमारी जनता गुलाटी मार जाती है। हम सोचते रहते हैं कि ये हमारे साथ ही है, किन्तु चुनावी परिस्थिति ऐसी बनती है कि वे अपने पाले से चले गए होते हैं।
अन्ना जी आज की राजनीति को न जाने किस-किस तरह की संज्ञा दी जाती है, फिर भी इसकी सफाई में आप उतरने वाले हैं। आप ये तो जानते होंगे कि काजल की कोठरी में जाने से खुद के भी कपड़ें काले हो जाते हैं। हमारे बहुचर्चित बाबाजी ने जब चुनाव में भागीदारी की बात कही, उसके बाद हमारे चतुर व शातिर राजनीति के पैरोकारों ने उनका जिस तरह चौतरफा मान घटाया। उन्हें न जाने क्या-क्या कहा, कोई उन्हें ठग कहते फिर रहा है, कोई कह रहा है, चतुर सयाना। ये तो मैं जानता हूं कि जब कीचड़ में पत्थर मारा जाता है, उसके बाद कीचड़ की छींटे, खुद पर भी आती हैं। मैं ये भी जानता हूं कि आप इन सब कीचड़ के डर से अपनी बातों से डिगने वाले नहीं है। देश की राजनीति में निश्चित ही गंदगी भर आई है, उसकी सफाई होनी चाहिए, लेकिन आप जिन समाजसेवी कार्यों से लोगों के दिल में समाए हैं, उससे यह तय नहीं हो जाता कि प्रत्येक जनता की आस्था आप पर है।
मैं हर चुनाव के समय देखता हूं कि कैसे, हमारी जनता की आस्था बेसिर-पैर की हो जाती है। जहां पैसों की खनखनाहट सुनाई देती है, उसी की हो लेती हैं। जिन जनता की खातिर, आप तेरह दिनों तक कुछ भी खाए-पीए नहीं, वही चुनाव में आपके समर्थक का खूब खाएंगे-पीएंगे, मगर गाएंगे, कुछ नहीं। ऐसा पहले नहीं होता तो मैं आपके निर्णय को सार्थक मानता, पर जनता के रग-रग से वाकिफ होने के बाद मुझे आप पर तरस आ रहा है कि आप क्यों राजनीति के दलदल में समा रहे हैं। जिन्हें दूसरों पर कीचड़ उछालने की आदत होती है, वही यहां महारत हासिल करता है। बिना तीन-पांच किए चुनावी वैतरणी पार नहीं लगती, कइयों को सबक सीखानी पड़ती है। हमारे गांधी जी जिससे नफरत करते थे, उसे भी छककर पिलानी पड़ती है।
आप तो नए भारत के गांधी हैं, आपको देश की राजनीति की बेवजह फिक्र नहीं करनी चाहिए। बरसों से वंश दर वंश राजनीति चल रही है। इसमें आपको कूदने की जरूरत नहीं है। आप जनता के हमदर्द बने रहें, उन्हें राष्ट्र हित का बोध कराते रहें। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहें, मगर राजनीति में किसी को लड़ाने की खूबी, मुझे आप में नजर नहीं आती है। इसीलिए मैं कही कहूंगा कि अन्ना जी, आप भी...।
राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।
जांजगीर, छत्तीसगढ़
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