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चरित्रहीन (लघु कथा)

धीरज दूध की डेयरी पर खड़ा दोस्तों के साथ गप्प मार रहा था. किसी भी लड़की को बात ही बात में चरित्रहीन कर देना उसकी बुरी आदत थी.  अभी किसी बात पर बहस हो ही रही थी कि सामने से एक लड़की आती हुई दिखी. धीरज अपनी आदतानुसार शुरू हो गया, " पता है कल्लू वो जो सामने से लड़की आ रही है न. उससे मेरी दोस्ती करीब एक साल तक रही. हम दोनों ने साथ-२ खूब मस्ती की." "पर धीरज वो लड़की तो देखने में बहुत शरीफ लग रही है फिर तेरे जैसे इंसान से उसने दोस्ती कैसे कर ली?" कल्लू ने हैरान हो पूछा. धीरज खिसियाते हुए बोला, "अबे साले वो देखने में ही सीधी लगती है लेकिन है बिलकुल चरित्रहीन. जाने कितनों से उसका याराना है."  तभी बगल में खड़े एक नौजवान ने धीरज का कॉलर पकड़ लिया, "वो लड़की ऐसी नहीं है. मैं उसे बचपन से जानता हूँ." धीरज घबराते हुए अकड़ा, "अबे कौन है तू और उस लड़की को कैसे जानता है.'' धीरज बेहोश होने से पहले केवल इतना सुन पाया, "मैं उस लड़की का सगा भाई हूँ."

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Comment by SUMIT PRATAP SINGH on June 9, 2012 at 7:17pm

शुक्रिया महिमा श्री जी...

Comment by MAHIMA SHREE on June 8, 2012 at 11:08pm

सुमित जी नमस्कार .. बहुत बढ़िया ...  सच्चाई बयाँ किया है  इस कथा में बधाई आपको

Comment by LOON KARAN CHHAJER on December 20, 2011 at 8:08pm

किसी के बारें मे कुछ जाने बिना ही कोई फबती कस देना अपराध की श्रेणी मे आता है इस कहानी से पार्तिदिन कही जाने वाली फबती को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है. बधाई .

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on December 9, 2011 at 1:36pm

mrs.kavita verma जी आभार...

Comment by Kavita Verma on December 1, 2011 at 7:05pm

yuva varg me ghar banati chhichhali mansikta ko bakhoobi ubhara hai aapne..

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on December 1, 2011 at 10:43am

LOON KARAN CHHAJER आप मेरी लघु कथा पर प्रतिक्रिया दे रहें हैं या अपनी गाथा गा रहे हैं कृपया बताइयेगा.

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on December 1, 2011 at 10:41am

सौरभ पाण्डेय जी, गणेश जी, राज जी व श्याम बिहारी जी आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार...

Comment by Shyam Bihari Shyamal on December 1, 2011 at 6:27am

रचना का संदेश स्‍वागतेय। बधाई... 

Comment by राज लाली बटाला on December 1, 2011 at 12:50am

बहुत खूब है जी! 

Comment by LOON KARAN CHHAJER on November 30, 2011 at 6:38pm
जब मैं खुश होता हूँ, मुझे दूसरों में खुशी दिखाई देती हैं. जब मैं उदास होता हूँ, तो मैंने लोगों की आँखों में उदासी को देखा . जब मैं थका हुआ होता हूँ, मैं उबाऊ और बदसूरती के रूप में दुनिया को देखता हूँ .

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