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बहुत सताया हमको अब वो दिन अंधियारे चले गये,

हमको गाली देने वाले गाली खाकर चले गये।

 

बहुत मचाई गुंडागर्दी तुमने शहरों-गावों में,

बहुत चुभाए कांटे तुमने धूप से जलते पांवों में,

आंधी जब हम लेकर आए तिनके जैसे चले गये।

 

जाने कितनों को रौंदा-कुचला था अपने पैरों में,

कितनों की इज्जत लूटी थी सामने अपने-गैरों में,

जब हमने हुंकार भरी तो पूंछ दबाकर चले गये।

 

बहुत विनतियां कीं थीं हमने लाख दुहाई दी तुमको,

रो रो कर फ़रियादें कीं थीं जी तो लेने दो हमको,

जरा सी टेढ़ी अंगुली की तो नजर चुरा कर चले गये।

 

कितनी बार कहा था जिस दिन हम जागेंगे सुनलो तुम,

हाथ मलोगे रगड़-रगड़ कर पछताओगे भरसक तुम,

हाथ में लाठी क्या पकड़ी तुम जान बचाकर चले गये।

 

’सरन’ ये दुनिया जूते की है, भैंस है डंडे वाले की,

ये दुनिया है ताकत की, ना गोरे की ना काले की,

कितने हिटलर और सिकंदर, बस आए और चले गये।

 

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Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 3:23pm

kya khoob kha aapne ek ek pankti sateek w lazwab hai 

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