*स्वप्न*
क्या ये साकार नहीं होते .
होता है सब कुछ करने से ,
सपने लाचार नहीं होते ..
जीवन पतंग भी उमग चले,
सपनों की डोरी जुड़ने से .
मंजिल तो नहीं मिल पाती है,
पथ पर चल वापस मुड़ने से ..
जीवन में यदि कुछ स्वप्न न हों,
तो क्या विकास हो पायेगा .
कैसे होगी पथ की तलाश ,
यदि मन निराश हो जायेगा..
यदि पथ प्रशस्त न हो फिर भी,
चलने की दृढ़ जिज्ञाशा हो.
जीवन की कठिन तपस्या में,
सपने सजने की आशा हो ..
वो दृग जिसमे सपने न हों,
वह आँख सदा ये कहती है .
जीवन की स्वप्न रहित बगिया,
कब हरी भरी हो खिलती है ..
यदि देखें सपने बंद नेत्र ,
तुम नयन खोल साकार करो.
पग थक जाएँ पर बढ़े चलो ,
मंजिल से अपनी प्यार करो ..
Comment
श्री गणेश सर जी कविता को सराहने के लिए आपका कोटि -कोटि धन्यवाद व वंदन
सत्य वचन शैलेन्द्र जी, यदि सपना ही न हो तो फिर विकास पथ पर कैसे बढ़ सकेंगे , सपना जरुरी है तभी तो उसे पूरा करने हेतु प्रयत्न करेंगे , अच्छी रचना , बधाई स्वीकार करे |
उत्साहवर्धन के लिए आभार
bahut hi sundar bhawon w vishwas se poorn rachna
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