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इस तरह से तेरी मुहब्बत दिल में समाई है
यूं जिन्दगी मेरी है पर तेरी लगे परछाई है

चाहे शमा की रोशनी चाहे नूर आफताब की
बगैर तेरे हरसू ता़रीकी हर जगह सियाही है

दौलत शोहरत आगोश में रहे सियासत दुनिया का
जब तुं नहीं दिल में हर मोड़ पर तन्हाई है

तुझे यकीं हो न शायद है दिल को एहसास मगर
बदले करवट मेरे जज़्बात जब लेती तुं अंगराई है

धड़कन तेरे दम से है बरकरार सांस सीने में
वजूद मेरी निशां तेरी उल्फत की खुदनुमाई है

और क्या कहे शरद तुझे अफसाना उल्फत का
उतनी मोहब्बत तुमसे जितनी दिल में गहराई है

सुबोध कुमार शरद

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Comment by Subodh kumar on September 14, 2010 at 2:19pm
धन्यबाद बागी जी

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2010 at 9:34am
बहुत खूब शरद बाबु , अच्छी ग़ज़ल निकाली है आपने, सुंदर अभिव्यक्ति,

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