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Subodh kumar
  • Male
  • PATNA, BIHAR
  • India
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Subodh kumar's Blog

इंसानियत बगैर इंसान हैं! '' लोग ''

मतलब कठिन शब्दों काः-

1.तुर्बत = कब्र, 2.इख़्तिलात = मेलजोल, 3.इशरत = अहसास,

4.निस्बत = लगाव



ये कितना खुदगर्ज हुआ जरूरत में आदमी

जिस कदर बेखबर रहे तुर्बत1 में आदमी



इख़्तिलात2 किसी से न पेशे खिदमतगारी है

बेखुदी का परस्तिश है वहशत में आदमी



रहे सबको इशरत3 फकत् अपने सांसो की

नहीं सिवा इसके अब फुर्सत में आदमी



काटे सर गैरों की इलत्तिजाये ज़िन्दगी में

करे है दरिंदगी अपने निस्बत4 में आदमी



ढुंढ़े नहीं मिले नियाजे5 अदब वफाये… Continue

Posted on September 27, 2010 at 2:00pm — 4 Comments

हम कौन से भले हैं....

न सोंच दिल कि तुम्हारी खता कहाँ थी

कर ले ख़्याल इतना हमारी वफा कहाँ थी



भड़कती नहीं चिंगारियां संग और आब से

रंजिश में तेरी भी दिलक़श ब्यां कहाँ थी



गै़र की बदसुलूकी से आज तुं क्यूं परेशां

बेअदबी पर खुद की शर्मो हया कहाँ थी



गै़र की करतुतो पर दिलों में शुगबूगाहट

अपनी ख़ता का दिल में चर्चा कहाँ थी



औरों से चाहत तेरी तमन्ना तहजीब की

ईमानदारी तेरी पेशगी में जवां कहाँ थी



इक वजह अदावत की दुनिया में खुदगर्जी

जब बनी थी कायनात… Continue

Posted on September 25, 2010 at 4:53pm — 4 Comments

क्या होगी जिन्दगी तेरे बगैर....

न मिलेगा सुकूने दिल सियाह चाहे रोशनी में

खलबली सी फ़कत रहेगी तेरे बगै़र जिऩ्दगी में



तुम से बिछुड़कर हाल हमारा कुछ ऐसा होगा

तेरे तस्सवुर में उम्र कटेगा हर पल बेबसी में



बहारों का क्या फायदा गर एहसास में खि़जा

माहताब भी गर्क हो जाये सबे ता़रीकी में



नजरें दरिचा बन जाये दिल ख़्यालों का मकां

दफ्न हो जाये वजूद तन्हाई के आरसतगी में



ओ रूखसत होने वाले देता जा तदवीर कोई

दिलबस्तगी का बहाना होगा तेरे नामौजुदगी में



मुश्किल से मिलता… Continue

Posted on September 24, 2010 at 8:00pm — 2 Comments

हाले बेबसी ....

शबनम नहीं बरसते आसमां से आग अब तो

जज़्बों से ब्यां हो दिल के दा़ग अब तो



इतने शौले उमड़ पड़े नाउम्मीदी के आतिश का

जलता नहीं दिल में उम्मीदों के चि़राग अब तो



सोचूँ तो दर्द बोलूँ तो दर्द हरसू दर्द दिखाई दे

काटों की तरह चुभने लगा गुलाब अब तो



जिऩ्दगी से नफरत होने लगी कज़ा से उल्फत

टूटे हुऐ दिल में सजता नहीं है ख़्वाव अब तो



जीने की तमन्ना में हम क्या क्या करते गये

हर सांस मागें जिऩ्दगी का हिसाब अब तो



क्या सोंचा जिन्दगी से… Continue

Posted on September 22, 2010 at 5:00pm — 5 Comments

Comment Wall (7 comments)

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At 11:56am on August 20, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...

At 12:50pm on August 20, 2011,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 10:30am on September 4, 2010, आशीष यादव said…
सुबोध जी प्रणाम,
आप की दो ग़ज़ल मैंने पढ़ी| बहुत ही अच्छी लगी||
At 9:16pm on September 3, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 9:15pm on September 3, 2010, Admin said…

At 7:59pm on September 3, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 4:12pm on September 3, 2010,
सदस्य टीम प्रबंधन
Rana Pratap Singh
said…

 
 
 

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"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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