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वसंत का मधुरस टिकता नहीं

पीयूष सावन का क्षणिक है
समय का प्रवाह रुकता नहीं
सुख का सागर  भी तनिक है ।
दिवसावसान की रक्तिमा देखो
जीवन का गूढ़ तत्व बतलाता है
एक - एक क्षण  पकड़ कर रखो
पर रेत सा मुट्ठी से फिसल जाता है ।
जिजीविषा बनी रहे चंद साँसों में
जिंदगी गुजर रही मेरे सामने से
उन्माद कम न हो देदीप्यमान आसों में
कुछ और कर गुजर जाऊँ ज़माने से ।

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 2, 2012 at 2:27pm

आदरणीय कविता जी  , सादर 

कुछ  कर गुजरने की तमन्ना. सुन्दर भाव.
बहुत  सुन्दर रचना. बधाई. 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 2, 2012 at 10:17am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति है कविता विकास जी, अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 5:18pm
जिजीविषा बनी रहे चंद साँसों में
जिंदगी गुजर रही मेरे सामने से
बहुत ही अच्छी रचना, हार्दिक बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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