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यूँ तो बस एक रवायत है दोस्ती !
मगर खुदा की इबादत है दोस्ती !

दिल दरिया में जैसे एक कंकर आ गिरा,
कुछ ऐसी ही तो शरारत है दोस्ती !

लोग ढूँढ़ते हैं इस में नफा ही नफा,
उनके लिए बस कोई तिजारत है दोस्ती !

इश्क क्या आशिक क्या, हम क्या जाने,
हमारी तो इकलौती मोहब्बत है दोस्ती !

दोस्तों से धोखे बहुत खाए मगर,
क्या करें हमारी तो आदत है दोस्ती !

तू बस हमारा ही क्यूँ इम्तिहान लेती है,
तुझ से बस इतनी सी शिकायत है दोस्ती !

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 29, 2010 at 10:40am
वाह वाह आदरणीया अर्चना सिन्हा जी, काफी अची ग़ज़ल कही है आपने खास कर यह शे'र ............
दोस्तों से धोखे बहुत खाए मगर,
क्या करें हमारी तो आदत है दोस्ती !
बहुत खूब , एक बेहतरीन ख्यालात , मेरी दाद कुबूल करे ,

कृपया ध्यान दे...

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