घनाक्षरी :
शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,
ऋतु रंग हरा-भरा, देश को प्रणाम है |
गंगा-यमुना हैं जहाँ, नर्मदा का नेह वहाँ,
पूजें कोटि देव यहाँ, देश को प्रणाम है ||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
कथ्य और शिल्प की दृष्टि से निर्दोष और उच्चकोटि के छंद कैसे रचे जाते हैं यह कोई आपसे सीखे. आपकी यह घनाक्षरी पढ़ कर मन गदगद हो उठा आदरणीय अम्बरीष भाई जी, मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकारे करें.
स्वागत है कुमार गौरव जी ! हार्दिक धन्यवाद अनुज ! सस्नेह
स्वागत है आदरणीय डॉ० सूर्या बाली जी ! आपकी मृदुल सराहना व शुभकामना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ! जय हिंद! जय भारत! जय ओ बी ओ !
अम्बरीष भाई बहुत ही सुंदर वर्णन किया इस देश का आपने इस घनाक्षरी के माध्यम से । कोटि कोटि बधाइयाँ स्वीकार करें !! ऐसे ही आपकी लेखनी का प्रवाह अविरल बहता रहे !! साभार !
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